लेखक विनय कोछड़.नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट अदाणी मामले पर विशेषज्ञ समिति का गठन करने जा रहा है, जो अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और उसके प्रभाव की जांच करेगी। निःसंदेह इसकी तह तक जाने की आवश्यकता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कितनी सत्यता है, क्योंकि उसने भारतीय शेयर बाजार पर गहरा प्रभाव डाला है। इस रिपोर्ट के चलते जहां अदाणी समूह को हानि उठानी पड़ी, वहीं शेयर धारकों को भी। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह अपने अनुसार विशेषज्ञ समिति का गठन करेगा। आखिर जब सरकार स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने के सुझाव से सहमत थी, तब फिर उसका सहयोग लेने से मना क्यों किया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह विशेषज्ञ समिति गठित करने में सरकार का सहयोग लेने से इनकार किया, इससे उसने उस पर अविश्वास ही प्रकट किया। इसके साथ-साथ उसने सरकारी एजेंसियों पर भी अविश्वास प्रकट किया। उसके रवैये से ऐसा कुछ ध्वनित होना स्वाभाविक है कि वह पारदर्शिता के नाम पर समानांतर व्यवस्था बनाना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट का मंतव्य कुछ भी हो, लेकिन सरकार और उसकी एजेंसियों पर अविश्वास प्रकट करना ठीक नहीं। पता नहीं, सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित होने वाली विशेषज्ञ समिति में कौन सदस्य होंगे, लेकिन प्रभावी जांच के लिए उसमें नियामक एजेंसियों के लोग होने ही चाहिए।
अदाणी मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की जाने वाली समिति से केवल यही अपेक्षित नहीं है कि वह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और उसके प्रभाव का आकलन करे, बल्कि यह भी अपेक्षित है कि वह ऐसे उपाय सुझाए, जिससे शेयर बाजार पर निवेशकों का भरोसा बढ़े और भविष्य में हिंडनबर्ग जैसी कोई रिपोर्ट किसी भारतीय कंपनी और हमारे शेयर बाजार पर नकारात्मक प्रभाव न डाल सके। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह आशंका बढ़ गई है कि भविष्य में हिंडनबर्ग सरीखी संस्थाओं की ओर से अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए भारतीय कंपनियों को निशाना बनाया जा सकता है।
यह आशंका इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि हाल में अमेरिका के अरबपति निवेशक जार्ज सोरोस ने नए सिरे से मोदी सरकार पर निशाना साधा है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने आलोचक हैं। इसमें हर्ज नहीं, लेकिन यह चिंता की बात है कि वह भारत में हस्तक्षेप करने के इरादे से लैस नजर आ रहे हैं। कई देशों में अनुचित हस्तक्षेप करने और वहां की सत्ताओं को अस्थिर करने के आरोपों का सामना कर रहे जार्ज सोरोस के इरादे ठीक नहीं, इसका पता इससे चलता है कि उनके हालिया बयान की निंदा कांग्रेस को भी करनी पड़ी। अब जब सुप्रीम कोर्ट अदाणी मामले में जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने जा रही है, तब उचित यह होगा कि कांग्रेस संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की अपनी मांग का परित्याग करे।