वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़।
किसानों की समस्या का समाधान निकालने में केंद्र सरकार अब तक कामयाब नहीं हो पाई। शंभू सीमा पर तनाव की स्थिति काफी पैदा हो चुकी है। किसान-पुलिस के बीच रुक-रुक कर हमला हो रहा है। अब तक कई किसान तथा पुलिस कर्मचारी घायल हो चुके है। इतना ही नहीं, पुलिस के आंसू गैस गोले दागने की वजह से एक किसान पिछले दिनों अस्पताल में दम तोड़ चुका है। अब किसानों के समर्थन में उनकी गृहणियाँ भी इस जंग के मैदान में जुट चुकी है। उनके लिए खाना-बनाने तथा हर प्रकार की रणनीति में साथ दे रही है। इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बहुत बड़ा ऐलान कर दिया। बैठक में इस बात की सहमति बनी कि 22 फरवरी तक पंजाब के सभी टोल-प्लाजा को एकदम फ्री किया जा रहा है। इससे सरकार के आर्थिक नुकसान बहुत अधिक होने के अभी से अनुमान लगाया जाने लगा है। थोड़ी देर तक किसानों के प्रमुख पत्रकारों से बातचीत कर सकते है। सभी फैसलों पर आम सहमति के उपरांत मोहर लग चुकी है।

पिछले करीब एक सप्ताह से चल रहा पंजाब-हरियाणा का शंभु बार्डर, इस बात का साक्षी बन चुका है कि यह आंदोलन लंबे समय तक चलने वाला हैं, क्योंकि, सरकार-किसानों के बीच अब तक चल रही वार्ता किसी परिणाम तक नहीं पहुंच पाई। किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी तथा किसानों की पेंशन व किसानों के खिलाफ दर्ज किए मामले पर लगता है कि सरकार विचार करने तथा उन्हें अमल में लाने के लिए अब तक वचन बंद नहीं दिखाई दे रही है। यहीं बड़ी वजह है कि दोनों (किसान तथा सरकार) बीच सहमति नहीं बन पाई। समझौता कराने के लिए प्रदेश के सीएम भगवंत मान अपनी भूमिका को सक्रियता से दिखा रहे है। लेकिन, अब तक वह नाकाम ही दिखाई दे रहे है। वह भी किसानों के बीच अपनी अलग छाप छोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। इसके लिए केंद्र सरकार को उनकी मांगों को मान लेने के लिए अपील तक कर चुके है। लेकिन, बात किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाती है। लगभग 6 दौर की बैठक किसान एवं केंद्रीय मंत्रियों के बीच हो चुकी है।

उधर, किसानों को रणभूमि से उखाड़ने के लिए हरियाणा सरकार ने सरहद पर केंद्रीय रिजर्व बल से लेकर कई विशेष टीमें लगा रखी है। बीच-बीच में दोनों तरफ से तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है। किसानों पर आंसू गैस के गोले दागने के अलावा प्लास्टिक की गोलियों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। कई किसानों को लगने से बुरी तरह घायल हो चुके है। पंजाब सरकार किसानों के इलाज का खर्च खुद वहन कर राजनीति करने का भी सबूत छोड़ रही है। कांग्रेस को भी किसान आंदोलन राजनीति भुनाने का मुद्दा मिल चुका है।
राहुल गांधी एक्स पर इन दिनों काफी सक्रिय नजर आ रहे है। किसानों को अन्नदाता का दर्जा देकर विपक्ष की मोदी सरकार को खूब घेर रहे है। इतना ही नहीं, सरकार सत्ता में आने पर किसानों की हर बात मान लेने का भी प्रमाण दे रहे है। इतना ही नहीं, पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की एक बड़ी फौज को किसानों के बीच छोड़ दिया। उनसे मुलाकात कर राहुल से सीधे फोन पर बात कराई जा रही है, ताकि किसानों को लगे कि वह उनके लिए काफी हमदर्द है। सूत्रों से इस बात का भी पता चला है कि कोई न कोई किसान आंदोलन को हाईजैक करने का भी प्रयास कर रहा है। कुछ शरारती तत्व किसान आंदोलन को बदनाम करने का पूरी तरह से प्रयास कर रहे है। कईयों को किसानों ने पकड़ लिया तथा उनसे पूछताछ में इस बात का खुलासा भी हुआ। इसके लिए किसानों को समझना होगा कि अगर वे अपने आंदोलन को कामयाब करना चाहते है तो उन्हें हर तरफ अपनी नजर को तीखा रखना होगा। किसी पर विश्वास करने से पूर्व अपनी टीम के साथ विमर्श कर लेना भी जरूरी होगा। क्योंकि,यह फैसला उन्हें आगे बढ़ाने में काफी फायदा पहुंचा सकता है।

किसान आंदोलन में एक खास बात सामने आई कि अब किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बड़ा फैसला लेते जंग में कूद पड़ी है। संगत से लेकर अपने परिवार सहित के लिए खाना बनाने का काम कर रही है। देखा जाए तो आंदोलन में एक प्रकार से नई जान फूंकने का प्रयास कर रही है। याद रखें कि दिल्ली किसान आंदोलन में भी महिलाओं ने खास सहयोग दिया था। कई महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी दिखाई दिए। लेकिन, एग्जाम नजदीक होने की वजह से उनके हाथ में किताब दिखाई दी। वह आंदोलन के साथ-साथ पढ़ाई भी पूरी कर रही है। लगभग 100 के करीब देश की किसान जत्थेबंदियां धीरे-धीरे इस आंदोलन में कूद पड़ी है। अब तक यह आंदोलन 3 प्रमुख जत्थेबंदियों का नहीं रहा है। आंदोलन देश की सरकार को किसानों के समर्थन में फैसला लेने के लिए एक प्रकार से मजबूर भी कर रहा है। आम-चुनाव सिर पर है। किसी भी समय चुनाव आयोग तय समय घोषित कर सकता है। आंदोलन की चिंगारी वर्तमान सरकार की भुजाओं को हिलाने में बड़ा काम कर सकता है। क्योंकि, विपक्ष तो चाहता है कि किसी प्रकार से भाजपा को सत्ता से बाहर किया जाए।
मालूम हुआ है कि किसानों ने इस बीच सरकार से वार्ता जारी रखने के लिए अब तक अपने सभी दरवाजे खुले रखे है। सरकार का प्रयास है कि किसी भी तरह से इस आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म किया जाए। इसके लिए केंद्र के 3 मंत्री किसानों को समझाने का प्रयास कर रहे है। नई बैठक में कोई न कोई बीच का रास्ता निकालने के लिए विमर्श होता है। लेकिन, किसान इस बार अपनी मांगों को लेकर लिखित नोटिफिकेशन जारी करने से कम कोई बात नहीं मान रहे हैं। यहां आकर सरकार-किसानों के बीच की वार्ता बेनतीजा रह जाती है। अब आगे यह देखना होगा कि सरकार किसानों को मना पाती है या फिर विफल रह जाती है।