वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़।
3 वर्षीय बेटी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पिता को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपी अपराध के समय कानूनी रूप से मानसिक अस्वस्थ था।
गला घोंट की थी हत्या
अभियोजन पक्ष के अनुसार धन्ना राम की पत्नी ने 2011 में उसे अपनी 3 वर्षीय बेटी का गला घोंटते देखा और रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुका। धन्ना राम का दावा था कि उसकी बेटी डायन है और उसके बेटे को नुकसान पहुंचाएगी। उसने बच्ची के सिर पर तवे से वार किया, जिससे उसकी मौत हो गई। घटना के बाद वह मौके से फरार हो गया। इस मामले में पंचकूला की कोर्ट ने 22 मार्च 2013 को उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिसके बाद उसने सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
याचिका डालते समय वकील ने दी यह दलील
याची के वकील ने अदालत में दलील दी कि वह गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित था और उसे अपनी हरकतों का अहसास नहीं था। कोर्ट में प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट्स और गवाहों के बयानों के अनुसार याची को पिछले 2 सालों से भ्रम और मतिभ्रम (डिल्यूजन और हैलुसिनेशन) हो रहे थे। परिवार ने उसे डॉक्टर के पास ले जाने के बजाय एक तांत्रिक के पास झाड़-फूंक के लिए भेजा था। गिरफ्तारी के बाद उसे मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने पुष्टि की कि वह मनोवैज्ञानिक विकार (साइकोसिस) से पीड़ित था।
कोर्ट ने इस धारा का दिया हवाला
हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 84 का हवाला दिया, जो मानसिक विकार से ग्रसित व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से मुक्त करती है। कोर्ट ने कहा कि किसी अपराध के लिए अपराध करने की मानसिक स्थिति का होना जरूरी है, लेकिन याची की मानसिक स्थिति ऐसी थी कि वह सही और गलत में अंतर नहीं कर पा रहा था।