पीएम मोदी,सीएम मान, डीजीपी यादव से पीड़ित महिला अधिवक्ता की पुकार……मैं भी, किसी मां की बेटी हूं, बलात्कारी पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों से दिलाया जाए मुझे इंसाफ…..।

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केंद्र-पंजाब की सरकार हमेशा ही इस बात का दावा करती है कि उनकी सरकार हमेशा ही महिलाओं के लिए सदैव खड़ी है। हमेशा कहा जाता है कि आपको किसी प्रकार की असुविधा हो तो घबराओ मत, एकदम सरकारी अधिकारी आपके पास पहुंच कर आपकी समस्या का समाधान प्राथमिकता से कर दिया जाएगा। लेकिन, ये दावा तथा वादा उस समय फेल साबित हुआ, जब पंजाब प्रांत के अमृतसर क्षेत्र में रहने वाली अधिवक्ता महिला के साथ आम जनता के रक्षक कहलाए जाने वाले सीआईए स्टाफ के पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों ने लगभग 6 घंटा हिरासत में रख कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। जिन-जिन के खिलाफ आरोप लगा, उनके खिलाफ मामला तो दर्ज कर लिया गया, जबकि, एफआईआर भी प्रदेश की उच्च न्यायालय के आदेश पर हुई। फिलहाल, पुलिस पर अपने कथित अपराधी अधिकारियों-कर्मचारियों को बचाने का संगीन आरोप लग रहा है। 

इस बीच महिला का एक वीडियो भी सोशल मीडिया में खूब तेजी से प्रसारित हो रहा है। जिसमें महिला अपने साथ हुए गैंगरेप से लेकर अब तक पुलिस की ढीली कार्रवाई को लेकर पीएम मोदी,सीएम मान, डीजीपी यादव से यही पुकार कर रही है कि ……मैं भी, किसी मां की बेटी हूं, बलात्कारी पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों से उसे इंसाफ दिलाया जाए …..। परिवार में वह खुद अकेली है, एक भाई जोकि दिमागी-मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं है। पिता का इंतकाल हो चुका है। पुलिस मुझे झूठे केस में फंसाकर थाना ले गई थी। वहां पर जो-जो उन लोगों ने किया, उसे शायद एक महिला का बयान करना इतना आसान नहीं होगा। बताया जा रहा है कि पीड़ित महिला के साथ हुए यौन उत्पीड़न की तस्वीरें भी सामने आई है, जो कि पुलिस के खिलाफ एक बहुत बड़ा प्रमाण है। महिला ने इतना भी कहा कि जिस उसे झूठी हिरासत में लिया गया। उस दिन की फोन लोकेशन को भी चेक कर लिया जाए। उसमें साफ साबित हो जाएगा कि कौन सच है या कौन झूठ है। 

जानिए, क्या था पूरा मामला

दरअसल, 23 फरवरी की शाम लगभग 6 बजे पीड़ित अधिवक्ता के घर पुलिस की गाड़ी पहुंचती है।  वह अपनी पहचान सीआईए स्टाफ नंबर 3 की बताते हैं। उस पर आरोप लगाया जाता है कि आप चोरी की कारें बेचने का धंधा करते है। इसमें आपका भाई भी शामिल है। पुलिस पूछताछ में उसने आपका नाम कबूल किया। कहा है कि चोरी की कारें आपके घर छुपाई जाती है। पूछताछ के लिए उसे पुलिस अपने साथ ले जाती है। पीड़ित अधिवक्ता के मुताबिक, वहां पर पुलिस के बड़े अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा बारी-बारी सामूहिक बलात्कार किया जाता है। रात्रि 11-12 बजे उसे घर छोड़ दिया जाता है। 

किसी ने नहीं सुनी फरियाद

पीड़ित अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि वह इस मामले को लेकर पुलिस के सभी उच्च अधिकारियों के पास गई। उन्हें लिखित शिकायत भी दी गई। किंतु किसी ने उनकी फरियाद को नहीं सुना। आखिरकार उसने पंजाब एवं हरियाणा (उच्च-न्यायालय) में एक याचिका दायर की। अदालत ने इस मामले पर कड़ा संज्ञान लेते हुए पुलिस को आदेश जारी किया कि तत्काल आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। लेकिन, विडंबना इस बात की है पुलिस ने सिर्फ 4 पुलिस अधिकारियों तथा कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया। जबकि, पीड़ित अधिवक्ता के मुताबिक, उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वालों की कुल संख्या लगभग दर्जन थी। 

पुलिस ने बनाई थी झूठी कहानी

पुलिस विभाग के विश्वसनीय सूत्र, यह बताते है कि पुलिस ने महिला अधिवक्ता को झूठे केस में फंसाया था। दरअसल, महिला का एक भाई पुलिस के लिए काम करता है, जबकि, अधिवक्ता को उसका यह काम पसंद नहीं था। हालांकि, आपराधिक मामलों की वजह से वह जेल में बंद है। महिला अधिवक्ता का उसके साथ कोई लेनदेन नहीं है। इसलिए सीआईए स्टाफ 3 ने महिला अधिवक्ता का नाम पिछले समय कार चोरी गिरोह में जोड़ दिया था। हालांकि, पीड़ित अधिवक्ता को इस मामले में स्थानीय अदालत ने जमानत दे दी है। उसे जांच का हिस्सा बनने के लिए भी आदेश जारी किए गए। 

पुलिस पर यह भी लगा आरोप

महिला ने पुलिस पर संगीन आरोप लगाया है कि वह पिछले 3 दिन से पुलिस जांच में हिस्सा लेने के लिए जा रही है, जबकि, उसके आने से पहले बाहरी गेट को बंद कर दिया जाता है। ऐसे में वह पुलिस जांच में कैसे शामिल हो सकती है। इसके लिए पुलिस के उच्च अधिकारियों को एक शिकायत दी गई। फिलहाल, अब तक उसका कोई रिप्लाई नहीं आया है।  

….शर्म की बात मेडिकल तक नहीं होने दिया गया, अदालत से लिया आदेश

समाज शर्मसार तब हो जाता है जब पुलिस अधिकारियों द्वारा पीड़ित महिला का मौलिक अधिकार (दुराचार पीड़ित का मेडिकल टेस्ट) को भी नहीं होने दिया गया। जब मामले के लिए पीड़ित महिला अधिवक्ता को अदालत की शरण लेनी पड़ी तब जाकर उसका सरकारी अस्पताल में मेडिकल टेस्ट के लिए स्वीकृति प्राप्त हुई। फिलहाल, उसकी मेडिकल रिपोर्ट आना शेष है। रिपोर्ट में साफ हो जाएगा कि पीड़ित अधिवक्ता के ऊपर कितनी दरिंदगी दिखाई। 

….यह भी एक प्रकार से जांच का विषय

दुख भरी कहानी बयां करती महिला अधिवक्ता में कितनी सच्चाई है, यह तो निष्पक्ष जांच पड़ताल में सब कुछ साबित हो जाएंगा। लेकिन, एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि पुलिस को किसने अधिकार दे दिया कि वह एक महिला को हिरासत में लेकर उसके साथ दुष्कर्म करने का। हर एक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, जिसे हमारे संविधान से लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने हर वो नागरिक (जिनमें पुरुष-महिला) शामिल होते है, उन्हें दी गई है। ऐसे में मानवाधिकार की गाइडलाइन में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि पुलिस हिरासत में वह किसी के साथ थर्ड डिग्री तथा घिनौने अपराध से जुड़ी प्रताड़ना नहीं दे सकता है। ऐसा करने वाले के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने का प्रावधान भी रखा गया। कानून-संविधान के मुताबिक, महिला की शिकायत के आधार पर सभी पुलिस अधिकारियों तथा कर्मचारियों के खिलाफ एक सिटिंग जज की देखरेख में जांच होनी चाहिए। क्योंकि, यह मामला एक प्रकार से घिनौने अपराध से जुड़ा हुआ है। 

 सरकार से लेकर पुलिस को देना होगा जवाब

चूंकि, यह मामला काफी तूल पकड़ चुका है। अब तक पीड़ित महिला अधिवक्ता की दुख भरी दास्तां सभी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म में  सुर्खियों का हिस्सा बन चुकी है। कई राष्ट्रीय अखबार से लेकर चैनल ने पीड़िता की खबर को प्रकाशित-प्रसारित कर दिया। पुलिस के पास तो पूर्व में ही इस मामले की शिकायत कापी से लेकर कथित अपराधियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कॉपी उपलब्ध है। लेकिन, हैरान करने वाली बात यह है कि अब तक इस मामले को लेकर किसी पुलिस के बड़े अधिकारी का कोई बयान तक नहीं आया। इससे यह बात तो साफ हो जाती है कहीं न कहीं पुलिस अपने अधिकारियों-कर्मचारियों की साख बचाने में लगी है। अब बात आ जाती है सरकार के खेमे में, देखना होगा कि वह इस मामले को लेकर कितनी गंभीरता दिखाती है। इंतजार इस बात का रहेगा कि सरकार-पुलिस के आदेश पर घिनौने अपराध को अंजाम देने वाले कब सलाखों के पीछे होते है।  

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