एसएनई नेटवर्क.चंडीगढ़।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि एक पिता अपनी बेटी का सबसे बड़ा रक्षक होता है। बेटी उसकी छत्रछाया में अपने को सबसे सुरक्षित समझती है। अगर पिता ही भक्षक बन जाए और अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म करे तो इससे बड़ा जघन्य अपराध और कोई नहीं हो सकता।
फैसले को हाई कोर्ट में दी गई थी चुनौती
एक पिता द्वारा अपनी ही नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने के मामले से आहत हाई कोर्ट की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यह तो खजाने की रक्षा करने वाले के डाकू बनने और जंगल की रक्षा करने वाले द्वारा शिकारी बनने जैसा है।
हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस नरेश शेखावत की खंडपीठ ने यह आदेश जालंधर के रहने वाले एक व्यक्ति द्वारा सजा के दायर अपील को खारिज कर दिया है। उसे जनवरी, 2010 में जालंधर की एक अदालत ने अपनी नाबालिग बेटी से दुष्कर्म के लिए दोषी ठहराया था। इसके बाद 14 साल की सजा सुनाई थी। पिता शिकायत दर्ज होने के दो महीने पहले से बच्ची के साथ बार-बार यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म कर रहा था। आरोपी के खिलाफ 23 जुलाई, 2008 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। सजा के खिलाफ अपील में कहा गया था सात साल की नाबालिग के साथ संभोग करना असंभव था, क्योंकि लड़की का अंग पूरी तरह से विकसित नहीं था। ऐसे में दुष्कर्म का आरोप उचित नहीं है और यह सजा गलत है।
चिकित्सा विशेषज्ञ ने अपनी राय दी थी
इस मामले में चिकित्सा विशेषज्ञ ने अपनी राय दी थी, जिसमें कहा गया कि पीड़िता एक छोटी लड़की है और यह मामला पीड़िता के निजी हिस्से में पुरुष का निजी अंग डालने का नहीं है, लेकिन उसके बाहरी अंगों पर वीर्य के सबूत मिल सकते हैं। कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता के निजी हिस्से में पुरुष का निजी अंग पूरी तरह से, आंशिक रूप से या प्रवेश करने की कोशिश करना भी दुष्कर्म है। कोर्ट ने कहा कि यह जघन्य अपराध है और इसमें राहत देने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।