वरिष्ठ पत्रकार अमित मरवाहा.तरनतारन/चंडीगढ़।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) मोहाली की अदालत ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए 1993 में हुए तरनतारन के एक मुठभेड़ मामले को फर्जी करार दिया। मामले में अदालत ने 2 पूर्व पुलिस अधिकारियों शमशेर सिंह और जगतार सिंह को दोषी करार दिया है। यह फैसला सीबीआई की विशेष न्यायाधीश हरिंदर सिद्धू ने सुनाया।
क्या था पूरा मामला
मामला वर्ष 1992 का हैंं। 30 वर्ष इस पुरानी मुठभेड़ में बताया गया था कि एक अज्ञात आतंकवादी के साथ उबोके निवासी हरबंस सिंह पुलिस गोलीबारी में मारा गया । निचली अदालत ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताया था। मामले में (दोनों पुलिस अधिकारियों, शमशेर सिंह और जगतार सिंह को अपराधी माना गया। इनके खिलाफ धारा 120-बी आर/डब्ल्यू 302, 218 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
पुलिस ने क्या दावा किया था, जानिए, इस रिपोर्ट में…?
उल्लेखनीय है कि 15 अप्रैल 1993 को सदर तरनतारन की पुलिस द्वारा यह दावा किया गया था कि सुबह 4:30 बजे तीन आतंकवादियों ने पुलिस पार्टी को रोका जब वह उबोके निवासी हरबंस सिंह को ले जा रहे थे। हरबंस सिंह एक मामले में उनकी हिरासत में था। पुलिस ने बताया था कि चंबल नाले के क्षेत्र में क्रॉस फायरिंग के दौरान हरबंस सिंह और एक अज्ञात आतंकवादी मारा गया।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर शुरू हुई थी जांच
मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई द्वारा हरबंस सिंह के भाई परमजीत सिंह की शिकायत पर प्रारंभिक जांच की गई। सीबीआई ने मुठभेड़ की कहानी को संदिग्ध पाया गया और फिर इस जांच के आधार पर 25 जनवरी 1999 को नियमित मामला दर्ज किया गया। पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 34 आईपीसी r/w 364-302 आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया।
वर्ष 2002 को पेश की गई चार्जशीट
इस मामले में 8 जनवरी 2002 को आरोपी पूरन सिंह, तत्कालीन एस आई/एसएचओ पीएस सदर तरनतारन, एसआई शमशेर सिंह, एएसआई जागीर सिंह और एसआई के खिलाफ धारा 120-बी आर/डब्ल्यू 302 और 218 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए चार्जशीट पेश की गई थी।
जगतार सिंह तब सदर तरनतारन में तैनात था और 13 दिसंबर 2002 को सीबीआई कोर्ट द्वारा उसके खिलाफ आरोप तय किए गए थे। उच्च न्यायालय के आदेश पर 2006 से 2022 तक मुकदमा चला। इस दौरान आरोपित पूरन सिंह और जागीर सिंह की मौत हो गई। मामले में 17 गवाहों ने निचली अदालत में अपने बयान दर्ज कराए और आखिरकार करीब 30 साल बाद मामले का फैसला सुनाया गया।