अंतिम सांसे गिन रही पंजाब में संस्कृति…सूबे में 41 वर्षों में 83 सरकारी और गैर सरकारी संस्कृत कॉलेज पूर्ण रूप से बंद

एसएनई न्यूज़.चंडीगढ़।

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के दावों के विपरीत पंजाब में संस्कृत अब अंतिम सांसें गिनने लगी है। सूबे में 41 वर्षों में 83 सरकारी और गैर सरकारी संस्कृत कॉलेज पूर्ण रूप से बंद हो चुके हैं। सरकारी कॉलेजों में प्रोफेसर के महज 17 ही पद बचे हैं, जिनमें 13 पद खाली रिक्त चल रहे हैं। 1980 से पहले सूबे में 90 सरकारी और गैर सरकारी संस्कृत संस्थानों में शिक्षण कार्य किया जाता था।
कई भाषाओं की जननी संस्कृत पंजाब में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भले ही राज्य में इसे बढ़ावा देने की घोषणाएं जरूर कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही हैं। बंदी के कगार पर पहुंचे संस्कृत कॉलेजों में दो वर्षों से कोई दाखिला नहीं हुआ है, इतना ही नहीं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भी संस्कृत अध्यापकों के पद खत्म कर दिए गए हैं। राज्य के स्कूलों में संस्कृत की पढ़ाई का विकल्प भी खत्म किया जा रहा है। संस्कृत के कोई भी अध्यापक की भर्ती नहीं किए जाने से महज 7 अध्यापक ही बचे हैं। जबकि हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने ऐलान किया है कि रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता पर शोध केंद्र स्थापित किया जाएगा। साथ ही स्कूलों में संस्कृत भाषा पढ़ाई जाएगी।
आतंकवाद के दौर में ज्यादा हुआ नुकसान
पंजाब में 1980 से पहले अधिकतर स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती थी। 1980 के बाद आतंकवाद के दौर में इस भाषा को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा। हैरानी की बात यह है कि 2009 के बाद से संस्कृत कॉलेजों के लिए पंजाब सरकार और स्कूल शिक्षा विभाग (डीपीआई) से कोई ग्रांट नहीं दी गई।
शास्त्री, प्रभाकर, आचार्य की होती थी पढ़ाई
कभी अमृतसर जिले में ही संस्कृत पढ़ाने वाले 20 संस्थान थे, जो अब सिर्फ दो ही रह गए हैं। इन कालेजों में शास्त्री, प्रभाकर और आचार्य की पढ़ाई होती थी। अभी गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग तो है, लेकिन यहां विद्यार्थी नाममात्र ही हैं। जीएनडीयू में एमए संस्कृत व पीएचडी की व्यवस्था है, लेकिन विद्यार्थी नहीं हैं।
स्वयंसेवी उठा रहे कालेजों का खर्च
पंजाब में अमृतसर में दो, दीनानगर में एक, होशियारपुर में एक, खन्ना में एक, सरहिंद (फतेहगढ़ साहिब) में एक और करतारपुर में एक कॉलेज है, जिसका खर्च स्वयंसेवी संगठन उठा रहे हैं। अखिल भारतीय संस्कृत विकास परिषद के प्रयास से शास्त्री को स्नातक और आचार्य को परास्नातक के बराबर मान्यता मिल गई है, लेकिन विद्यार्थियों का इस ओर कोई रुझान नहीं है, क्योंकि रोजगार के अवसर नहीं हैं।
बीएएमएस के लिए संस्कृत जरूरी
आज बीएएमएस की मेडिकल पढ़ाई करने के लिए संस्कृत जरूरी होती है, लेकिन विद्यार्थियों को संस्कृत का पूरा ज्ञान न होने के कारण उनको आयुर्वेद में डिग्री हासिल करने में मुश्किल आती है।

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