एसएनई न्यूज़.चंडीगढ़।
आम आदमी पार्टी (आप) का गठन आम लोगों तथा आम जनता के जज्बातों को समझने के कारण हुआ ता। खैर, लगता है कि अब पार्टी अपने असली मुद्दों से भटक चुकी है। इसके पीछे का बड़ा कारण दिल्ली आप का पंजाब की राजनीति में पूर्ण रूप से हस्तक्षेप है। परिस्थितियां इस प्रकार की पैदा हो चुकी है कि पंजाब में आप के 20 विधायकों की संख्या सिमट कर 11 हो चुकी है। अंदर की आग को लेकर हर कोई चाहता है कि दिल्ली (आप) पंजाब में अपना हस्तक्षेप बंद कर दें, अन्यथा इसकी संख्या 1 तक पहुंच सकती है।
दो दिन के भीतर पंजाब के दो आप विधायक पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे एक बात तो साबित हो गई है कि आम आदमी पार्टी में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। कोई भी फैसला लेने से पहले दिल्ली हाईकमान का निर्णय लेना पड़ता है। कहने का मतलब यहां के विधायक सिर्फ दिल्ली की कठपुतली बन कर रह गए।
भीतर ही भीतर पंजाब के आप विधायकों में पार्टी की नीतियों को लेकर रोष भी है। किंतु विद्रोह , इस बात को लेकर नहीं हो पा रहा है कि क्योंकि वे दरअसल अभी चुप है। इनकी चुप्पी टूट गई तो आप को पंजाब में लेने के देने पड़ सकते है। अंदर की यह भी खबर है कि आधा दर्जन से अधिक आप के विधायक कांग्रेस के संपर्क में है। हालांकि, इस बात का आधिकारिक रूप से दावा दोनों ही तरफ से नहीं किया गया।
कयास, इस बात के लगाए जा रहे है कि आने वाले दिनों में पंजाब की राजनीति में बड़ा धमाका हो सकता है। फिलहाल आम आदमी पार्टी की पंजाब से चिताएं बढ़ चुकी है। क्योंकि , विधानसभा चुनाव सिर पर है। पता इस बात का चला है कि चुनाव की तैयारियों को लेकर उनकी टीम टूटनी शुरु हो चुकी है। यहीं , टीम चुनाव में अहम रोल निभाने का दम रखती थी।
पंजाब में एक के बाद एक आप संयोजक का दौरा, लोगों को चुनावी वादे करना, उस समय मिट्टी हो जाती है जब परिवार का कौंबा ही ढहने लग पड़ता है। केजरीवाल को तो आप सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आगे की टीम को कैसे बचाया जाए। क्या कुछ किया जाए, जिससे उनकी टीम टूटने से बच सके।
आप को सबसे बड़ा नुकसान , इस बात को लेकर भी हो रहा है कि अभी उनके पास सीएम का चेहरा नहीं है। भगवंत मान जैसे आप नेता पंजाब के सीएम बनने के सपने देख रहे है, जबकि केजरीवाल उनकी उम्मीदों पर पानी फेर कर यह साबित करना चाहते है कि उनका विश्वास अभी तक उन पर कायम नहीं हो पाया।
सिद्धू जैसे, नेता के खिलाफ कोई भी बयानबाजी नहीं करके , केजरीवाल कुछ अलग करने की सोच बना कर बैठे है। फिलहाल सिद्धू भी अपने पत्ते नहीं खोल रहे है। इतना जरूर कह देते है कि वह तो कांग्रेस सिपाही है, इसलिए उनका अन्य पार्टी में जाने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। हालांकि, सिद्धू कांग्रेस में सीएम बनने का सपना ले रहे है, जबकि, हाईकमान चन्नी को हटाकर सिद्धू को सीएम चेहरा घोषित करने में जोखिम नहीं लेना चाहती है।
राजनीतिक जानकार, इस बात को लेकर पंजाब की राजनीति में आने वाले दिनों में भूचाल आने का भी संकेत दे रहे है। उनके मुताबिक, आप-सिद्धू के बीच कभी भी मुलाकात या फिर आप में शामिल होने का मन बना सकते है। क्योंकि जिस प्रकार से भीतर ही भीतर दोनों के बीच गुप्त तरीके से खिचड़ी पक रही है, उससे इस बात की ओर बल मिल जाता है कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है।
केजरीवाल के लिए भी अब सुनहरी अवसर है। क्योंकि वह अपनी पार्टी में सिद्धू को शामिल कर सिद्धू को आप के लिए सीएम चेहरा घोषित कर देते है तो पार्टी के लिए पंजाब विधानसभा में चुनाव जीतने का रास्ता खुल सकता है। क्योंकि, सिद्धू के पास चमत्कारी भाषण तथा मतदाताओं को प्रभावित करने की पूरा अभ्यास तथा अनुभव है। फिलहाल, इस बात पर अभी दोनों तरफ से सस्पेंस जारी है।