पंजाब विधानसभा चुनाव-2022 का प्रचार अंतिम दिन तक जोरशोर से संपन्न हुआ। किसी पार्टी के नेता ने चुनाव आयोग के नियमों की पालना नहीं करते हुए 18 फरवरी शाम 6 बजे चुनाव प्रचार थमने के उपरांत भी सभी राजनीति पार्टियों ने अपना चुनाव प्रचार जारी रखा। कई नेताओं की तस्वीरें शाम छह बजे के उपरांत अपने-अपने विधानसभा हल्का में रैली तथा रोड शो निकालते दिखाई दिए। नेताओं की इस दौरान खूब लाटरी लगी रही, जबकि पिसता दिखाई दिया आम-आदमी तथा व्यापारी वर्ग। क्योंकि, शाम 6 बजे मास बेचने वाले छोटे-दुकानदारों को दुकानें पुलिस ने अपने डंडे के बल पर बंद करा दी। इसके उल्टा बड़े-बड़े मास बेचने वाले दुकानदार अपनी-अपनी दुकान में सरेआम शराब पिलाते हुए दिखाई दिए। इतना ही नहीं, उन्हें संरक्षण पुलिस ने पूरी दी। खुद आप पुलिस जवान ड्युटी दौरान शराब में टुली होते दिखाई दिए। इससे एक बात साबित हो जाती है कि देश में बड़े वर्ग के लिए कोई कानून नहीं है, जबकि माध्यम एवं छोटे वर्ग पर कानून लागू हो जाता है।
इस समय देश में कानून व्यवस्था काफी चरमा गई है। खासकर, चुनावी राज्यों में हालात कुछ अच्छे नहीं दिखाई दिए। चुनाव आयोग सख्ती के लाख वादे करता रहा, जब 18 फरवरी के छह बजे का समय गुजारा तो चुनाव आयोग की सुरक्षा टीमें , नियम तोड़ने वालों के खिलाफ किसी प्रकार से कार्रवाई करती नज़र नहीं आई। यह हालात पंजाब के बड़े जिला, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, बठिंडा, पटियाला के सामने आए। सवाल खडे होते है कि चुनाव आयोग ने कैसे , इन गतिविधियों को नजरअंदाज कर दिया या फिर पुलिस प्रशासन ने चुनाव-आयोग तक इन हालातों के पहुंचने से पूर्व ही पूरी प्लेनिंग कर अपना जाल बिछा दिया।
हैरान करने वाली बड़ी बात यह रही कि पुलिस की गड़िया सरेआम चक्कर लगाती नजर आई। लेकिन, किसी पुलिस अधिकारियों ने प्रतिबंधित दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं, इसे बिल्कुल ही नजरअंदाज किया गया। देश का नेता ही इस समय सिस्टम को बनाता है तथा उस सिस्टम को उल्ट भी खुद ही कर रहा है। इन चुनावों में व्यापारी वर्ग को खासा प्रतिकुल असर पड़ा।
शायद, इस बात को बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए कि व्यापारी वर्ग के साथ कई परिवारों की रोटी जुड़ी हुई है। काम बिल्कुल ठप्प पड़े है। आर्थिक तौर पर इतना नुकसान हुआ कि कई व्यापारी तो अपना काम धंधा ही छोड़ गए। लेकिन नेतागण को इस बात से क्या लेना देना , उसे तो सिर्फ अपनी चुनावी पारी जीतना है तथा विधानसभा तक पहुंचना है।
शायद लगता है यह नेतागण लोगों की नाराजगी का अंदाजा नहीं लगा सकते है। क्योंकि, अगर यह जनता ने मन बना लिया तो नेताओं को खाक करने में भी बिल्कुल समय नहीं लगाएंगे। इस बार के चुनाव में एक बात बिल्कुल ही अलग रही है। लोग खामोश होकर बैठे है। कुछ लोग बोलने वाले यहीं बात कहते है कि इन नेताओं ने आज तक जनता तथा व्यापारी वर्ग के लिए क्या कुछ खास किया है।
प्रदेश में आर्थिक व्यवस्था बिल्कुल खराब है। लोग प्रदेश से पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे है। इस बात के पीछे भी यहीं नेता लोग है। इस बार लगता है कि चुनाव में नोटा का काफी संख्या में इस्तेमाल होने जा रहा है। क्योंकि, मतदाता की खामोशी कुछ बड़ा करने की ओर संकेत दे रही है। अगर ऐसा संभव होता है तो चुनाव में किसी पार्टी की सरकार नहीं बनने वाली है।
कयास , इस बात के भी लगाए जा रहे है कि पंजाब में राज्यपाल शासन लागू भी हो सकता है। क्योंकि, चुनाव नतीजे त्रिशुक की ओर संकेत दे रहें हैं। फिलहाल, बात चल रही है सिस्टम की। जिसमें सुधार होना वक्त की सबसे बड़ी मांग है। बदलाव तभी हो सकता है, जब लोग एकजुट होकर फैसला कर लें।
प्रधान संपादक एसएनई न्यूज़-विनय कोछड़।