शुरु से ही स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों को भगवान रुपी का दर्जा दिया गया। खासकर, कोविड-19 जैसी महामारी में दिन-रात लोगों की सेवा कर, इस बात का इन्होंने साबित भी कर दिखाया। जबकि, पंजाब में अब स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित कर्मचारियों ने कुछ दिन से राज्य सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोल रखा है।
इस आंदोलन का सबसे अधिक नुकसान मरीज वर्ग को उठाना पड़ रहा है। उन्हें जबरन अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जा रहा है। इनकी कार्रवाई को लेकर अस्पताल प्रबंधन खामोश है तथा अपने हाथ खड़े कर रहा है। इस प्रकार से मरीजों को दरकिनार करना बिल्कुल ठीक नहीं है। इस भगवान रुपी स्वास्थ्य सेवादारों पर अब दाग लगना शुरु हो चुका है। ठीक आम लोग तथा इलाज के लिए तड़पते मरीजों की नजरो में।
उनके मुताबिक, सरकार के साथ उनकी नाराजगी, उन पर क्यों बरसाई जा रही है। सरकारी अस्पतालों का रुख सिर्फ तो सिर्फ निर्धन , बेसहारा मरीजों का होता है, वह एक उम्मीद के साथ अस्पताल में इलाज के लिए आते है कि शायद, उनके दर्द को यह लोग समझ सके तथा इलाज सही ढंग से कर, उन्हें राहत दे सके।
चूंकि, वर्तमान के आंदोलन ने इस बात को साबित कर दिया है कि अब उनके भीतर के आग में हर कोई जलने से पीछे नहीं रह सकता। जबकि, सबसे अधिक नुकसान रोगियों को उठाना पड़ रहा है। यह रोगी एक सुर में उनके समक्ष हाथ जोड़ कर मांग कर रहे है कि आप लोग रोगियों को तो न नजरअंदाज करे, आप उनकी नजरों में हमेशा ही भगवान रुपी चेहरा है। अगर आप वाक्य ही गुस्से में है तो सरकार को घेरा जाए , जिसमें हम लोगों के साथ आम जनता का साथ मिलना संभव है।
पंजाब के जालंधर, अमृतसर, बठिंडा, पटियाला जैसे जिलों में तो स्वास्थ्य सेवादारों ने तो सभी सीमाएं लांघ दी। उनका गुस्से का शिकार तो रोगी वर्ग हो रहा है। इलाज के लिए आए रोगियों को अस्पताल में जबरन छुट्टी देने की बातें सामने आई। इन रोगियों के आंखों में आंसू, इस बात के छलक रहे थे कि इनमें उनका क्या कसूर है। सरकार का गुस्सा , उन पर क्यों टूट रहा है।
अधिकतर देखने में आया है कि सरकारी मुलाजिमों का सरकार के प्रति आंदोलन का नुकसान हमेशा ही आम वर्ग को उठाना पड़ा है। रोगियों के मुताबिक, अगर आपको गुस्सा या रोष सरकार के खिलाफ है तो क्यों नहीं उनके आवास को निरंतर घेरा जाता है, या इसका मतलब है कि आप लोगों की आवाज को वहां पर दबा लिया जाता है या फिर आपके गुस्से की आग को ठंडा कर दिया जाता है।
आप लोगों में अगर एकता या जुनून की आग है तो शायद आपकी जायज मांगों के आगे बड़ी-बड़ी सरकारे झुक सकती है। सरकार को झुकाना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके लिए आपकी तरफ से मापदंड का तरीका सही होना चाहिए।
इस पूरे प्रकरण में सरकार भी कुछ अच्छा कर दिखाने में सफल नहीं हो पाई। सरकार वादे तो लाखों कर देती है, जबकि सच्चाई में वह जीरो दिखाई देती है। इन स्वास्थ्य सेवादारों ने मोर्चा पिछले 10-12 साल से समय-समय की सरकार के खिलाफ समय-समय पर खोला। हर किसी ने इनके खिलाफ चुनावों दौरान अपना उल्लू सीधा किया।
इनमें स्वास्थ्य सेवादारों की यूनियनों में भी कुछ कमियां सामने आई। वे लोग सरकार जुबानी वादे पर कुर्बान होकर लाखों मुलाजिमों की जिंदगी को एक झटके में दांव पर लगा देते है। अगर सही हो तो सरकार के समक्ष बैठकर,. उनके वादे को लिखित में लेकर ही अपने आंदोलन को समाप्त करे।
उनकी (यूनियन के पदाधिकारी) कोशिश से इस बात की आहट से समझ आती है कि उन्हें शायद समय-समय की सरकार लालच देने में कामयाब रहती है। जिससे वे लोग (राजनीतिक पार्टियां)फायदा ले लेते है, जबकि आम मुलाजिम सिर्फ तो सिर्फ नारे लगाता ही रह जाता है।
इसमें आम मुलाजिम को समझना होगा कि उन्हें अपना अधिकार किस प्रकार से कानून के दायरे में रह कर हासिल करना है। शायद, इस तरीके को सही व भली-भांति तरीके से अपना ले तो उनकी मूल समस्या ही दूर हो जाएगी।
एसएनई न्यूज़….संपादकीय