धौंस जमाकर विरोध करना किसानों का अच्छा संदेश नहीं….पीछे कर रहा कोई बड़ी राजनीति

घायल भाजपा वर्कर

देश का पेट भरने में अन्नदाता किसान का अहम रोल है। गर्मी, सर्दी, आंधी, तूफान की बेपरवाह करने वाला पंजाब का किसान धौंस जमाकर विरोध करने की नीति पर उतर आया है। राजनीति करने वाली बड़ी पार्टियां वोट बैंक की वजह से इन्हें समझाने की बजाय संरक्षण देकर माहौल खराब कर रही है। शायद, उन्हें इस बात की बिल्कुल भनक नहीं है कि यदि ऐसा करके अपने आपको को वे लोग अपनी जीत समझ रहे है तो उनकी सबसे बड़ी पराजय तथा भविष्य की एक बड़ी भूल है।

किसान हमेशा से ही अपने अधिकार के लिए शांतिमय ढंग से विरोध करने के लिए जाना जाता रहा है। इनकी मिसाल देश ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व देता रहा है। जबसे दिल्ली संघर्ष में किसानों को जीत हासिल हुई है, तब से शायद, उनके (पंजाब के किसान) के मन में एक सवाल आ चुका है कि वे लोग अब हर सही बुरी बात को मनवा सकते है। ऐसा सब कुछ पंजाब में देखने भी लगा है। पिछले दिनों, किसानों ने रेल पटरियों पर बैठकर रेल गाड़िया बंद करा दी। उसके बाद राज्य सरकार को उनके समक्ष झुकने के लिए भी मजबूर कर दिया।  

अब यह लोग राजनीति की राह पर चलने लग पड़े है। इन्होंने खुद ही देश में अपनी पकड़ बनाने के लिए राजनीति का संरक्षण लेना शुरु कर दिया। देश में राजनीति पार्टी का गठन कर दिया गया। जबकि, देश के मेन किसान संगठन , इनके राजनीतिक संगठन बनाने को लेकर स्वीकार नहीं करता है। उनका विचार है कि संगठन में रह कर ही किसानों की मांगों को सरकार के समक्ष स्वीकार कराया जा सकता है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पंजाब दौरा से पूर्व ही किसानों का ऐलान था कि वह रैली में बाधा डालेगें। इसका विरोध किया जाएगा। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया के माध्यम से पूर्व में ही प्रधानमंत्री की रैली का विरोध करने की बात को कह दिया था। विरोध  शांतिमय तरीके से किया जाना कोई बुरी बात नहीं। जब  धौंस जमाकर, विरोध किया जाए तो वह बिल्कुल गलत है। आज के विरोध में आई कुछ तस्वीरों ने इस बात का पक्के तौर पर प्रमाण दे दिया। ट्रालियां तथा डंडो के साथ सड़कें अवरुद्ध की गई। भाजपा कार्यकर्ताओं का पूर्ण रूप से विरोध किया गया। इतना ही नहीं, उन्हें आगे जाने के लिए रोक लिया गया। बाद में पुलिस को मौका मिला तो उसने डंडे बरसाने शुरु कर दिए।

इस दौरान भाजपा के कई वर्कर घायल होने की बात भी सामने आई। एक वर्कर का तो सिर, इतनी बुरी तरह से फोड़ा गया कि उसके शरीर पर खून बह रहा था। आनन-फानन में अस्पताल लेकर जाया गया। इस पूरे प्रकरण में प्रदेश की एक राष्ट्रीय पार्टी की सुनियोजित तरीके की गंदी राजनीति भी सामने आई। उसके सत्ता के मुखिया ने तो इतना तक कह दिया कि बेचारे किसान शांतिमय तरीके से अपना आंदोलन कर रहे थे। उनसे पूछा जाए, फिर किसानों के हाथ में डंडे कैसे आ गए। आपकी पुलिस वहां पर खड़ी कर क्या रही थी। 

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अगर देश के प्रधानमंत्री ने तीन कृषि सुधार को रद्द ही कर दिया है तो अब पंजाब के किसानों का गुस्सा करना कोई औचित्य ही नहीं है। इन सबके पीछे राजनीति की बड़ी साजिश सामने आ रही है।  कोई राजनीतिक पार्टी जानबूझकर , किसानों के बाजुओं पर पिस्तौल रखकर, उनसे केंद्र के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मजबूर कर रहा है। वह पार्टी शायद सोच रही है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में उनका (किसान) समर्थन हासिल कर लिया जाए। मगर, यह उसके लिए बड़ी भूल तथा विनाशकारी नीति बन सकती है।

देश में अन्य राज्य के किसान भी है, मगर उनमें इस प्रकार का संघर्ष करने का मामला सामने नहीं आया। वह सब अब सरकार के तीन कृषि कानून रद्द किए जाने के फैसले उपरांत अपने-अपने क्षेत्र में शांत होकर बैठ गए। चाहे तो वे लोग भी इस प्रकार का काम कर सकते है। मगर उनकी सोच है कि किसानी क्षेत्र में उन्नति की राह की तरफ  आगे बढ़ना। 

वैसे किसानों का आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ था। उसमें घी तथा आग का काम तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया था। अब चाहे उनका गठबंधन भाजपा के साथ हो गया। मगर आग की चिंगारी तो कैप्टन ने लगाई थी। अगर वाक्य में वह सच्चे है तो किसानों को समझाकर अपनी नई रणनीति का परिचय दें। क्या, अब उन्हें डर सताने लगा है कि कही किसान उनके विरुद्ध न हो जाए। 

आज की राजनीति को लेकर हंसी भी आती है कई राजनीति पार्टियों ने इतना तक कह दिया कि किसानों ने तो विरोध प्रदर्शन ही नहीं किया। कुछ शरारती तत्व हिंसा का हिस्सा हो सकते है। इनसे पूछा जाए कि हिंसा करने वाले खुद अपने आपको किसान का परिचय दे रहे थे। तो इस सच्चाई को कैसे झूठलाया जा सकता है। हां, वोटबैंक की राजनीति की वजह से आप लोग गंदी राजनीति का इस्तेमाल कर रहे है।

कांग्रेस के कई राजनीतिज्ञों ने गंदी राजनीति का परिचय दिया। सांसद से लेकर मंत्री एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता ने तो आज हद ही कर दी। सोशल मीडिया पर धड़ा धड़ा बयान दिए कि प्रधानमंत्री तथा भाजपा की रैली फेलियर होने की वजह से उन पर आरोप लगाए। एक सांसद ने इतना तक कह दिया कि मोदी जी एक वर्ष तक पंजाब के किसान ठंड , गर्मी, तूफान के दौरान तीन कृषि कानून रद्द करने को लेकर संघर्ष करते रहे। यहीं सांसद थे जिनको किसान आंदोलन दौरान दिल्ली के बॉर्डर में धक्का-मुक्की तथा मारपीट का सामना करना पड़ा। तब , इन्हें किसानों का आंदोलन गलत लगाने लग पड़ा था। अब आज गंदी राजनीति करने पर उतर आए।  

देश का प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं बल्कि हम सब का होता है। उस पर पूरे देश का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी होती है। अगर पंजाब में आने का अवसर मिला तो राजनीति से ऊपर उठकर माहौल को सौहार्दपूर्ण बनाने की सत्ताधारी सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी बनती थी। किंतु ऐसा बिल्कुल नहीं किया। आज का दिन देश के इतिहास में काले पन्नों में लिखा जाएगा। जिसकी  जिम्मेदारी सरकार को लेनी होगी।

प्रधान संपादक (एसएनई न्यूज़) विनय कोछड़ की कलम से। 

100% LikesVS
0% Dislikes