पत्रकार मतलब चौथा स्तंभ है। हर घटना को प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित करना पत्रकार को मौलिक अधिकार है। जबकि बड़ी शर्म की बात है वर्तमान में पत्रकार का स्तर काफी नीचे गिर चुका है। अब पत्रकारों की अधिक संख्या येलो जर्नलिज्म ( ब्लैकमेल) , जैसी प्रवृत्तियों में संलिप्तता सामने आ रही है। समाज में पत्रकार की परिभाषा , अब यह होने लग पड़ी है कि पैसे देकर पत्रकार को खरीदा जा सकता है। नौबत तो यहां तक आ चुकी है कि अब छोटा मोटा नेता भी पत्रकार को अब अपनी जेब में रखने लग पड़ा है। बड़ी ही चिंता का विषय है, इस बात पर गंभीर रूप से मंथन करना वर्तमान तथा भविष्य के समय के लिए काफी आवश्यक है।
शराब माफिया, बड़े-बड़े नेता, गैंगस्टरों , पुलिस के मुखबिर का काम पत्रकार का एक वर्ग करने लग पड़ा है। पत्रकार का चोला पहनकर, समाज में ईमानदार, बेबाक, निडर पत्रकारों की कलम को बदनाम किया जा रहा है। इनकी गंदी छवि की वजह से अच्छे पत्रकारों की पहचान भी धूमिल हो रही है। लोग इनकी करतूत का ठीकरा, ईमानदार पत्रकारों की परिभाषा के साथ फोड देते है। खैर समय के मुताबिक इस प्रकार के लोगों को अपनी सोच में कुछ बदलाव करने की भी जरूरत है।
समाज में रह कर हर वर्ग को इस बात को भली भांति समझ लेना चाहिए कि पांच उंगलियां एक जैसी नहीं होती है। इसी प्रकार पत्रकार में भी कई अच्छे लोग, जिनकी कलम को हर कोई ठोक कर सलाम करता है। इस प्रकार के पत्रकारों के साथ समाज को भी चलने की जरूरत है। वर्तमान में भी किसी घटना से लेकर समाज के लिए आवाज उठाने तक का जोखिम तो सिर्फ तो सिर्फ एक बेबाक पत्रकार ही कर सकता है। बेबाक पत्रकार कभी भी अपने जहन में इस बात को नहीं सोचता कि अगले पल , उसके साथ क्या होने जा रहा है।
फिर एक बात को दोहराना इसलिए जरुरी समझा जा रहा है कि क्योंकि कुछ सौदेबाज पत्रकारों की उपस्थिति को कम होनी चाहिए। इसके लिए कुछ कायदे कानून होना भी जरूरी है। चूंकि, डॉक्टर तथा एडवोकेट के लिए शिक्षा की योग्यता को प्रमुख रखा गया। इसी प्रकार पत्रकारिता में भी कम से कम शिक्षा बीए तक अनिवार्यता होना बहुत जरूरी है। शर्म की बात है कि आठवीं पास लोग पत्रकार बन चुके है।
खबर किस प्रकार तथा किस एंगल से शुरू करनी है। इसका अनुभव है नहीं, बस धौंस बाजी जमा कर पैसे कैसे कमाने है, उसकी पूरी-पूरी योग्यता हासिल कर रखी है।
वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पत्रकारिता के स्तर को काफी नीचे गिरने में अहम भूमिका निभाई है। इसके पीछे, इनमें अब वह लोग घुस चुके है जो कि समाज को लूटने का काम कर रहे है। पैसे लेकर खबर चल रही है तथा पैसे लेकर ही उसे रोका जा रहा है। कहने का मतलब पत्रकारिता जैसे सच्चे प्रोफेशन को बदनाम किया जा रहा है। जो भी हो रहा है, यह सब कुछ गलत हो रहा है। इसके परिणाम, भविष्य में और गंभीर हो सकते है।
इन लोगों की आदतों तथा छवि की वजह से ईमानदार पत्रकारों को धमकी मिलना आम बात हो चुकी है। नहीं तो एक समय था ईमानदार, बेबाक पत्रकार की कलम से देश का प्रधानमंत्री से लेकर हर वर्ग सलाम करता था। मन में सम्मान के साथ-साथ प्यार तथा भयं भी था। पत्रकार को हर विभाग तथा कार्यक्रम में पूरा सम्मान मिलता था। अब परिस्थितियां, इसके बिल्कुल प्रतिकुल है। अब नेता से लेकर प्रशासनिक दायरा पत्रकार की पहचान को ही गलत करार देते हुए उनके प्रति सम्मान की नजर से देखने की बजाय , उन्हें घृणा की नजर से देखता है। ऐसा संभव , इसलिए हो रहा है क्योंकि पत्रकार का एक वर्ग पैसे के लालच में अपने ईमान को बेच चुका है।
समय के मुताबिक, बदलाव आना अति जरूरी है। ऐसा नहीं है कि इस लाइन में कुछ शिक्षित पत्रकार है। उनका एक स्वप्न है कि कैसे समाज में हो रही बुराई की आवाज उठाई जाए, कैसे गरीब को उसका अधिकार दिलाया जाए। कैसे भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं का पर्दाफाश किया जाए। मुमकिन तब हो सकता है, जब समाज में पत्रकारिता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रभावी कदम की तरफ ध्यान दिया जाए।
युवा प्रवृति से जुड़े पत्रकारिता की पीजी तक पढ़ाई करने वाले , इस पेशे में आने को तैयार नहीं, बड़ा कारण यह है कि वह देख रहे है कि इस पेशे में अब धक्का-मुक्की तथा बदनामी ज्यादा हो चुकी है। इससे बेहतर विकल्प ढूंढ कर पीआर या फिर कंटेंट राइटर की नौकरी करने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे है।
पत्रकारिता में उन्नति , उन लोगों की हो रही है, जिनके ऊपर हाथ नेतागण का है। चाहे वह लोग शिक्षित कम है। मगर, इनके आर्शीवाद से वह दायरे के मालिकों तथा अपने घर आबाद करने में काफी हद तक कामयाब हो रहे है। एक गरीब की आवाज उठाने में पत्रकार की दिलचस्पता काफी कम हो चुकी है। एक समय था पत्रकार की कलम से लिखने के बाद सरकार हिल जाती थी, अब खबर इस प्रकार से लिखी जाती है कि उसमें लिखा कंटेंट बिल्कुल ही हल्का होता है। पढ़ने वाले को कुछ पता नहीं चल पाता तथा कार्रवाई करने वाला भी नजरअंदाज कर देता है।
समाज में क्यों नहीं समस्याएं या फिर बुराई दूर नहीं हो रही है। यह एक प्रकार से सोचने के लिए मजबूर होने का बड़ा विषय है। इसके पीछे बड़ा कारण, पत्रकारिता के बड़े-बड़े दायरे पैसे के समक्ष बिक चुके है। उन्होंने सिर्फ तो सिर्फ अपने आपको विज्ञापनों तक ही सीमित रखा है। खबरें तो सिर्फ छोटी-मोटी ही उन पन्नों में प्रकाशित हो रही है। सरकार तथा राजनीति का बुरा काम भी उन्हें अब अच्छा लगने लगा है। रही कसर, उनके पत्रकार पूरा कर रहे है। एक साथ रात को शराब का जाम लगाते है। सुबह एक-दूसरे के प्रति तारीफ के फूल बांध देते है। इन लोगों से समाज कैसे इच्छा रख सकता है कि यह लोग,उनके लिए कुछ अच्छी सोच मुताबिक काम कर सकते है।
अतीत के समाज में उन पत्रकारों की उदाहरण वर्तमान में भी मिसाल हैं। जिन्होंने अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर आतंकवाद के काले दौर में अपनी कलम को जारी रखा। गोली सीने पर खाकर हमेशा-हमेशा के लिए शहीद हो गए। वह लोग अपनी कलम चलाते थे तो शाति के साथ कड़वे शब्दों में लिखा करते थे। बिना जान की परवाह किए, उन्हें सिर्फ तो सिर्फ बुराई के खिलाफ आवाज उठाना ही उनका मेन मकसद था। राजनीति से लेकर प्रशासन तक इनकी कलम की कदर करता था। इन्हें किसी नेता तथा प्रशासन के बड़े बाबू के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ती थी, ब्लकि खुद वह लोग इनके पास मुलाकात करने के लिए उतावले होते थे।
लंबे दौर की सोच मुताबिक , पत्रकारिता को जीवित रखने के लिए कई बड़े सुधार की आवश्यकता है। ईमानदारी तथा कुछ भ्रष्टाचार के जननी पत्रकारों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार तथा बड़ी कार्रवाई की जरूरत है। कुछ कानून में बदलाव होना भी जरूरी है, ऐसा तब संभव हो सकता है, जब अच्छे पत्रकार एक प्लेटफार्म में इकट्ठा होकर एकजुटता का संदेश देने की क्षमता को इच्छा शक्ति से जाहिर करें।
प्रधान संपादक-विनय कोछड़ (एसएनई न्यूज़)।