बिक चुके है मीडिया के बड़े-बड़े घराने….विज्ञापन लेकर दब जाती है बड़ी खबरें

प्रतीकात्मक तस्वीर

पिछले दिनों एक खबर पक्के साक्षय के आधार पर सामने आई तो इलेक्ट्रानिक मीडिया के बड़े चैनलों ने उसे अपनी सुर्खियां बनाकर चलाया। जबकि बड़ी शर्म वह हैरान करने वाली बात तब सामने आई, जब प्रिंट मीडिया के बड़े-बड़े अख्बारों के घराने ने सुबह अपने पेपर से ही इस खबर को पन्ने पर ही नहीं प्रकाशित किया, या फिर कह सकते है, उसे गायब कर दिया गया। चर्चा , इस बात की चल रही है कि जिसकी खबर थी , उसने प्रिंट मीडया के बड़े घरानों को विज्ञापन देकर, उनकी मंशा को ही खरीद लिया।

सोशल मीडिया से लेकर जितने टीवी चैनल थे, उन्होंने प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया। सबूत दिखाकर सार्वजिनक किया। सिर्फ तो सिर्फ एक हिंदी पेपर ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर सच्ची पत्रकारिता की जिंदा मिसाल कायम रखी। अपने-अपने प्रिंट मीडिया में कुछ अख्बारों के घराने वैश्विक स्तर पर सच्ची पत्रकारिता तथा नंबर एक होने का ढोंग रचाने वालों की अब सच्चाई बाहर आ चुकी है। कैसे एक प्रत्याशी तथा उसकी हाइकमान से विज्ञापन लेकर खबर को ही खत्म कर दिया।

शायद, यह उनके लिए बड़ी भूल हो सकती है। क्योंकि सच्चाई को कभी दबाया नहीं जा सकता। सच्चाई का मूल्य भी नहीं होता। वर्तमान में सोशल मीडिया, इतना तेज हो चुका है कि हर एक के मोबाईल में सच्चाई सामने आ जाती है। लोगों की पसंदीदा भी सोशल मीडिया हो चुकी है। मान कर चले तो सोशल मीडिया में कुछ बाते सच भी होती है।इनके दम पर ही वर्तमान में प्रिट मीडिया का काम चल रहा है। बड़े-बड़े पत्रकार होने का दावा करने वाले खुद सोशल मीडिया से खबर लेकर अपने दायरे के पास पहुंचाते है।

उन्हें मालूम है कि अगर उनके पास चल कर ही खबर आ रही है तो बाहर मैदान में निकलने की क्या आवश्यकता है। मगर, कुछ दिन पहले की खबर को दायरे के पत्रकारों ने लिखकर अपने सीनियर को भेजा। किंतु, अगले दिन खबर को नहीं प्रकाशित कर उनकी मंशा पर उंगली उठाने का आम जनता को जरुर अवसर दे दिया। 

कोविड-19 के उपरांत प्रिंट मीडिया अपनी सर्कूलेशन को लेकर पछड़ रहा है। इस बात को लेकर, उसे बिल्कुल भी नहीं चिंता है कि इसके पीछे क्या कारण है। कैसे इसमें सुधार किया जाए। मगर सची खबर को प्रकाशित नहीं कर, उन्होंने अपनी बेइमानी तथा पैसे के पीछे बिकने के तो पूरे सबूत दे दिया है। 

देश की प्रथम स्थान पर अपनी अख्बार होने का दावा करने वाली , एक अख्बार का बड़ा संपादक हमेशा ही पत्रकारों को खबर मिसिंग को लेकर सुबह-सुबह उनकी डांट फटकार लगा देता है। इतना ही नहीं, पत्रकारों की मंशा पर तक सवाल खड़ा कर देता है। अपने कार्यालय बुलाकर जलील कर देता। फिर , उन्हें दायरे से बाहर निकालने की धमकी भी देता है। मगर, उस संपादक पर सवाल खड़ा होता है कि आप तो हमेशा ही दावा करते है कि खबर के प्रमाण दें तो मैं, उसे पूरे हिंदोस्तान के पेज पर प्रकाशित करुंगा।

सच्ची खबर प्रमाण के साथ सामने आई तो आपके दायरे ने क्यों नहीं इसे प्रकाशित करने की जहमत नहीं उठाई ?सवाल उठता है कि क्या आपको इस खबर को नहीं प्रकाशित करने के लिए , उस पार्टी के प्रत्याशी या फिर दिल्ली हाईकमान ने बड़ा विज्ञापन देकर खरीद लिया ? सवाल इस बात का भी उठता है कि शायद नोयड़ा से इस खबर को नहीं प्रकाशित करने का निर्देश जारी हुआ होगा ? इतना ही नहीं, एक दायरा साफतौर पर अपने पेपर पर पाठकों को संदेश देता है कि सच्चाई के लिए वह किसी से भी समझौता नहीं करता। हमारा पेपर पूर्ण रुप से सच्चाई को लिखने के लिए संवतंत्र है। सवाल उठता है कि इस खबर को लेकर अब आपकी सच्चाई ने क्या जवाब दे दिया या फिर आपको भी बड़ी आफर मिल चुकी है।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने तथा पत्रकारों की शहदत के बारे दावे करने वाला एक अख्बार का ग्रुप के पत्रकारों ने तो हद कर दी है। उसके स्थानीय पत्रकार ने तो साफ कह दिया है कि इस खबर को प्रकाशित करने के लिए 1000 रुपए लगता है। बड़ा सवाल यह है कि इन लोगों ने पैसे के समक्ष अपना इमान बेच दिया है। सवाल , इस बात का भी है क्या इनके संपादक को इस खबर के बारे कोई जानकारी नहीं थी। या फिर जानबूझ कर इस खबर के साथ समझौता या विज्ञापने लेकर मुद्दे को ही समाप्त कर दिया । 


प्रधान संपादक एसएनई न्यूज विनय कोछड़।

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