विनय कोछड़/नितिन धवन/अमनदीप सिंह ढोट/विकास कौड़ा /अमृतसर/चंडीगढ़/दिल्ली।
वैश्विक स्तर पर भारत को पहचान के लिए किसी से मोहताज नहीं होना पड़ा है। भारत ने हमेशा ही वैश्विक स्तर पर अपना कदम बढ़ाया है। इस बार भारत ने अफगानिस्तान के लिए 50 हजार टन गेहूं भेजने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया। पहली खेप अटारी सीमा के सड़क मार्ग के माध्यम से 2 हजार टन गेहूं रवाना हो चुका है। सीमा पर भारत के सचिव हर्ष वी श्रृंगला तथा अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्दर्जइ पहुंच चुके है।
देर रात भारत की तरफ से ट्रक अंतरराष्ट्रीय चेक पोस्ट पर पहुंच गए थे। पता चला है कि अफगानिस्तान के लगभग 40 ट्रक पाकिस्तान सीमा पर पहुंच चुके है। भारत के सराहनीय कदम के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र को काफी क्रेडिट जाता है। क्योंकि, उनकी कूटनीति की वजह से पाकिस्तान को मात मिली है। दरअसल, पाकिस्तान इस सारे मामले पर अपना क्रेडिट हासिल करना चाहता था। जबकि, यूएन के समक्ष भारत ने कूटनीतिक सहारा लेते हुए इटली में भारतीय राजदूत तथा यूएन के साथ समझौता किया कि पाकिस्तान किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगा।
भारत को आश्वस्त किया गया कि पाकिस्तान किसी प्रकार से कोई अड़चन नहीं डालेगा। इसके लिए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को कहा गया कि वह पाकिस्तान की सीमा पर अपने ट्रक लेकर पहुंचे। उसने यूएन की बात को मानते हुए मंगलवार को पाकिस्तान की सीमा पर अपने ट्रक रवाना कर दिए। उधर, खबर सामने आ रही है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग की भरपूर प्रशंसा की।
अफगानिस्तान में भुखमरी जैसे हालात
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में भुखमरी के हालात है। इसके पीछे तालिबान सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालत काफी दयनीय है। व्यापार से लेकर दुकानदार काफी चिंतित है। तालिबान की नीतियों काफी झुल्मकारी है। लोगों को दो वक्त का खाना भी नहीं नसीब हो रहा है। इसलिए, भारत ने अफगानिस्तान को 50 हजार टन गेहूं दिया। अब देखना होगा कि भारत की मदद का तालिबान क्या मूल चुकाता है।
कुछ समय भीतर शेष खेप पहुंचेगी अफगानिस्तान
बताया जा रहा है कि 48 हजार टन गेहूं को अफगानिस्तान को भारत कुछ समय के भीतर पहुंचाने में जुट गई है। संभावना जताई जा रही है कि पूरी खेप एक माह के भीतर अफगानिस्तान पहुंचा दी जाएगी। इस खेप से अफगानिस्तान की भुखमरी को हटाने में काफी मददगार साबित होगी। वैसे भी अफगानिस्तान में गेहूं की खेती नहीं होती है तथा उसे अन्य देशों पर आयात के लिए निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन, इस बार भारत के सहयोग ने उसकी मुसीबतें काफी समय के लिए टाल दी है।