मोतियाबिंद मुक्त अभियान का बहिष्कार करेंगे पंजाब ओफ्थाल्मिक ऑफिसर एसोसिएशन.लंबित मांगों को लेकर नजरअंदाज कर रही राज्य सरकार

 फोटो कैप्शन---पंजाब ओफ्थाल्मिक ऑफिसर एसोसिएशन के संयोजक  डॉक्टर राकेश शर्मा।

इस फैसले से पंजाब सरकार के अभियान पर पड़ेगा असर…..सत्ता पक्ष कांग्रेस को होगा बड़ा नुकसान

एसएनई न्यूज़.अमृतसर/चंडीगढ़। 

पंजाब ओफ्थाल्मिक ऑफिसर एसोसिएशन ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह द्वारा गांवों में मोतियाबिंद मुक्त अभियान का बहिष्कार करने का फैसला लिया। एसोसिएशन के संयोजक (कनवीनर) सिविल अस्पताल के डॉक्टर राकेश शर्मा ने एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक दौरान यह निर्णय लिया गया। 

 
डॉक्टर राकेश शर्मा ने बताया कि उनका काडर पिछले चालीस वर्ष से विभिन्न गांवों में उपस्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में आंखों की भयानक बीमारियों प्रति अपनी स्वास्थ्य सेवाएं निभा रहा है। वह अपनी ड्यूटी को ईमानदारी तथा बेबकता से लंबे समय से निभा रहे है, जबकि हैरान करने वाले बात है कि सरकार ने अब तक पदोन्नति करने का निर्णय नहीं लिया। 

वर्ष 2014 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस काडर के डॉक्टरों के समर्थन में फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्य सरकार तथा पंजाब स्वास्थ्य विभाग इन्हें इनकी वरिष्ठता के मुताबिक पदोन्नति दें। जबकि सरकार ने अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए, उस पर कोई संशोधन नहीं किया। 


उनके मुताबिक, सिर्फ पंजाब में भर्ती दौरान लिए गए ओफ्थाल्मिक ऑफिसर को  लंबे समय की अपनी स्वास्थ्य सेवाएं देने के बावजूद भी , उन्हें इसी पद पर सेवानिवृत्त होने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

इस अवसर पर सलाहकार सदस्य हरपाल सिंह, जरनैल सिंह, सचिव जसविंदर सिंह, सदस्य परविंदर सिंह, अशोक कुमार, जसविंदर, नमिंदर पाल सिंह, आज्ञापाल सिंह, बलजिंदर सिंह, बिक्रमजीत सिंह, अमराजपाल सिंह, संजय मन्नण इत्यादि शामिल रहें। 

जानिए……..कानून (सर्विस) प्रणाली क्या कहती है

कानून तथा सर्विस प्रणाली के मुताबिक भर्ती हुए ओफ्थाल्मिक ऑफिसर की हर पांच वर्ष के बाद प्रमोशन होना अनिवार्य है। प्रत्येक पांच वर्ष उपरांत, उसे वरिष्ठ (सीनियर) ओफ्थाल्मिक ऑफिसर फिर पांच-आठ वर्ष उपरांत प्रमुख ओफ्थाल्मिक ऑफिसर बनना अनिवार्य है। किंतु, सरकार इन नियमों को ताक पर रखकर, इस प्रणाली की सरेआम धज्जियां उड़ा रही है। 

जानिए……किस राज्य में यह प्रणाली है लागू

जांच-पड़ताल के उपरांत पता चला है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश में , वहां की सरकार ने इस नियम को पूरी कड़ाई के साथ लागू किया। उन्हें नियमों के मुताबिक, अपने-अपने पद वरिष्ठता के हिसाब से उन्नति मिल रही है, जबकि इसके विपरीत पंजाब सरकार , इन नियमों की सरेआम उल्लंघन कर रही है। बताया जा रहा है कि इसी विषय को लेकर पंजाब ओफ्थाल्मिक ऑफिसर एसोसिएशन ने राज्य-सरकार तथा पंजाब स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ अदालत में केस दायर किया। अभी फैसला आना शेष है। 

समझिए….इनकी सेवाएं , जिसे जानकर आप-सब हैरान हो जाएंगे

इस श्रेणी के डॉक्टर पंजाब के ग्रामीण क्षेत्र में उपस्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में आंखों की बीमारियों संबंधी अपनी स्वास्थ्य सेवाएं निभा रहा है। एक सर्वे की रिपोर्ट मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्र में सबसे अधिक मोतियाँ बिंद के रोगी पाए जाते है।

उनके इलाज में इन डॉक्टरों की तत्परता की वजह से अब वहां पर मोतिया बिद जैसी भयानक बीमारी पर रोकथाम लगाने में काफी सफलता हासिल हासिल हुई है। इतना ही नहीं, इन्ही डॉक्टरों के कोविड-19 जैसी महामारी में अपनी जान की भी कोई परवाह नहीं करते हुए जी-तोड़ से परिश्रम किया था। अगर वर्तमान में हालात काबू में आए है तो इस बात का श्रेय भी इन्हें जाता है। 

पगार भी मिल रही है कम

नियमों के मुताबिक, इस श्रेणी के पूरे पंजाब में तैनात डॉक्टरों को सरकार प्रतिमाह पगार भी काफी कम दे रही है। इतना ही नहीं, पंजाब सरकार नए रिवाइज किए वेतनमान के मुताबिक भी नहीं खरा उतर पाई है। इस प्रकार की लंबित तथा जायज मांगों पर भी सरकार विफल साबित हो रही है।  

अदालत का फैसला दरकिनार

वर्ष 2014, में पंजाब एवं हरियाणा की सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पंजाब सरकार तथा पंजाब स्वास्थ्य विभाग को फटकार लगाते हुए तुरंत पंजाब ओफ्थाल्मिक ऑफिसर की योग्यता मुताबिक, वरिष्ठता देने के लिए बोला था, जबकि सरकार ने अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए इसे लागू तक नहीं किया।

इससे साफ प्रतीत होता है कि सरकार के सामने अदालत का फैसला कुछ भी मायने नहीं रखता है।

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