शहरनामा—-सिविल अस्पताल की दाल में कुछ तो है काला……भ्रष्टाचार की भूख है सबसे ज्यादा

सिविल अस्पताल में आरोप प्रत्यारोप का खेल कोई नया नहीं है बल्कि यू कह सकते है इसका नाता आपस में काफी पुराना चला आ रहा है। कुछ लोग इस सिस्टम में रह कर शासन-प्रशासन आम जनता की आंख में धूल झोंक रहे है। ऐसा नहीं है कि इस बारे प्रशासन-सरकार को मालूम नहीं है, सब कुछ वे भली-भांति जानने के बावजूद कुछ नहीं कर पाना उनकी अब मजबूरी बन चुकी है। क्योंकि, इस सिस्टम की चेन नीचे से लेकर ऊपर तक चल रही है। तोड़ना तो अब असंभव माना जा रहा है। लेकिन, हिलाना कोई बड़ी बात नहीं है। बस, ऊपर से हरी झंडी मिलने का बेसब्री से इंतजार है। 

दवा एजेंट या फिर फर्जी 26 बनाना कोई नया काम सिविल अस्पताल में नहीं चल रहा है। इसका नाता काफी लंबे से जुड़ा है। समय के साथ नाम-चेहरे ही बदले है। कई बार इन मामलों ने तूल भी पकड़ा, लेकिन, दबाव के आगे सब कुछ ठंडा पड़ गया। क्योंकि, भीतरघात का सिस्टम ही एक-दूसरे की मदद कर रहा है। हर किसी को भयं सताता है कि कहीं इस झमेले में पड़ने से उन्हें नौकरी से हाथ न धोना पड़ जाए। इसलिए, वे लोग चुप बैठना ही ठीक समझते है। इस प्रकार की चुप्पी ही शायद सिस्टम को गंदा कर रही है। इसलिए, यह बात कहनी ठीक होगी कि सिविल अस्पताल की दाल में कुछ काला है, भ्रष्टाचार की भूख बहुत ज्यादा है। 

चर्चा का बाजार में इस बात की खूब गहमागहमी चल रही है कि सिविल अस्पताल अमृतसर में फर्जी 26 बनाने का गौरखधंधा खूब तेजी से प्रफलित हो रहा है।  फर्जी 26 बनाने के लिए फीस तय की गई है। खेल 1 लाख से आरंभ होकर 5 लाख तक चल रहा है। हैरान करने वाली बात है कि सिविल अस्पताल से लेकर सिविल सर्जन तक इस खेल की आहट सुनाई देने के बावजूद कोई एक्शन नहीं हो रहा है। लाजमी है कि इस खेल को खत्म करने वालों ने भी प्रण कर लिया है। पत्र प्रदेश की सरकार से लेकर विभागीय प्रमुख तक पहुंच चुका है। बस इंतजार एक्शन होने का। यू तो खेल 25 साल पुराना बताया जाता है, लेकिन, इसमें एक परिवार के 2 सदस्यों के नाम भी सामने आ रहे है। यू इस खेल के मास्टरमाइंड माने जा रहे है। अटकलों का बाजार गर्म है कि उनके खिलाफ कार्रवाई करना किसी के बस की बात नहीं है। क्योंकि, उनके पास शिकायत करने वाले की एक कुंडी भी है। 

दवा एजेंट सिविल अस्पताल को अपनी जागीर मानते है। यह भी धंधा कोई अब से नहीं, बल्कि बहुत पुराना चल रहा है। चिकित्सकों के सामने बैठकर रोगियों को दवा लिखना इनके बाएं हाथ का खेल बन चुका है। तीसरी आंख सब कुछ देख रही है। लेकिन, वो कुछ नहीं कर सकती है। क्योंकि, धंधा तो आपस की सहमति से चल रहा है। अफवाह, इस बात की खूब चल रही है कि इस धंधे का कमीशन आपस में बराबर हिस्से में बंट जाता है। इसलिए, हर किसी की जुबान में ताला लग चुका है। यहां पर यह कहावत एकदम सटीक बैठती है कि  बाप से बढ़कर रुपया भैया….।

ईमानदारी , भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के शायद कान में ये मुद्दा अभी तक गूंजा नहीं है।या फिर पहुंचने से पहले ही ठंडा कर दिया गया। क्या करे भैया, चुनाव का बिगुल बजने वाला है, सत्ता को कैसे बचाना है, सरकार को पहले उस तरफ ध्यान देना पड़ रहा है। इसलिए, कमान निचले स्तर को मिल चुकी है जो कि आग को बुझाने में लगी है। उन्हें शायद यह नहीं मालूम आग को जितना मर्जी ठंडा कर लीजिए, धुंआ तो उठेगा ही।  आप नहीं तो विपक्ष इस मुद्दे को उठाकर दोबारा सत्ता हासिल करने में रास्ता ढूंढ लेगी। 

विनय कोछड़……………प्रधान संपादक (एसएनई न्यूज़) 

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