एक दौर था, न्याय-प्रणाली सबके लिए एक समान थी, वक्त गुजरा। न्याय-प्रणाली में बदलाव हुआ। पैसे की भूख ने सबको अंधा कर दिया। खासकर, न्याय करने वाले , इन पैसों के आगे झुक गए। गरीब, बेसहारा लोगों का अब न्याय-प्रणाली से विश्वास टूट चुका हैं। उनके लिए सिर्फ तो सिर्फ न्यायालय में धक्के रह चुके हैं। बड़ी मुश्किल से अधिवक्ता के लिए, उनकी फीस जुटा पाते है, जबकि, पैसे वाली पार्टी न्यायाधीश तक अपनी पहुंच कर, इंसाफ को खत्म कर दिया जाता हैं। कुल मिलाकर न्यायालय में सिर्फ पैसे का ही झोल रहा हैं। शेष, सब खोखला होता जा रहा हैं। एक सुप्रीम न्यायाधीश ने बड़ी अच्छी बात कही थी कि समय के मुताबिक, सच्ची पत्रकारिता की अति आवश्यकता हैं। बात तो बिल्कुल ठीक कहीं। लेकिन, शायद, उन्हें यह मालूम होना बहुत जरुरी है कि सच्ची पत्रकारिता को सच्ची पत्रकारिता को दबाने के लिए धनी लोगों के पैसे के समक्ष कानून से लेकर न्यायालय तक सरेआम बिक रहे हैं। जब तक, इन पर शिकंजा नही कसा जाता है, तब तक शायद ही कुछ सुधार हो सकता हैं।
वर्तमान में भी पुलिस से लेकर न्यायालय तक पैसे के आगे झुक चुकी हैं। उन्हें, सच्चाई कम पैसा अधिक नजर आ रहा हैं। देश की सरकार, कई मंच पर इस बात को दोहरा चुकी है कि न्याय प्रणाली में सुधार होना जरूरी है कि लेकिन पैसे खाने वाले शायद इन बातों को सिरे से नजरअंदाज कर अपनी ही चला रहे हैं। वक्त की जरूरत के मुताबिक, देश के हर भाग में न्याय-प्रणाली की समीक्षा करने के लिए एक समिति गठित होनी चाहिए। समिति के पास रिपोर्ट होनी चाहिए कि न्याय में कितने सुधार की जरूरत है तथा इसके पीछे कौन-कौन लोग इस प्रणाली को खत्म करने में भूमिका निभा रहे हैं। इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरुरत भी हैं। फिर जाकर देश में कानून का कुछ हद तक सुधार हो सकता है।
हैरान करने वाली बात है कि कुछ लोगों के खिलाफ फर्जी पर्चे दर्ज किए जा रहे हैं। जिनका मामले से कोई लेन देन तक नहीं हैं। बात यहीं सामने आ जाती है कि इसमें पैसा ही बलवान हो रहा हैं। पैसे हर किसी को झुका रहा हैं। बिना प्रमाण तथा गवाह उन लोगों को बनाया जा रहा है , जिनके खिलाफ पूर्व में कई अपराधिक मामले दर्ज हैं। यह भी एक प्रकार से जांच का विषय हैं।
यहां पर सरकार पर भी बड़े सवाल खड़े होते है कि जो समाज में ईमानदारी का ढंढोरा जोर-जोर से पीट रही हैं। मगर , भीतरघात, उनके ही विधायक-मंत्री पैसे तथा सत्ता का बल लगाकर, वर्तमान में पर्दे के पीछे सच्चे लोगों को फंसाने का प्रयास कर रहे हैं। आखिरकार, इन लोगों की मंशा क्या हैं, क्या साबित करना चाहते हैं। इनसे एक बात साबित हो जाती है कि प्रदेश सरकार सच्चाई से कई गुणा परे चल रही हैं। शायद, उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि यह दुनिया है, सब कुछ देख रही हैं। दुनिया तो मतदान के दिन तमाशा दिखाती हैं। वह घड़ी आने से पूर्व ही सरकार के लिए सुधर जाना , उसके लिए अच्छा संकेत हो सकता हैं। अन्यथा, गलत काम का परिणाम दुनिया ही साक्षी बनती हैं।