कालाबाजारी…50 के भाव का बिक रहा है 200-250 के दाम में सेब………ग्राहकों से हो रही कितने बड़े स्तर की ठगी….बड़ा सवाल…सरकार-सरकारी विभाग क्यों है खामोश….।

विनय कोछड़.अमृतसर /चंडीगढ़। 

सेब फलों का राजा माना जाता है। यह मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए सबसे लाभदायक होता है। लेकिन, हैरान करने वाली बात है कि 50 के भाव का सेब मार्केट में 200 से 250 के दाम पर बिक रहा है। कुल मिलाकर सेब के नाम पर बाजार में खूब कालाबाजारी हो रही है। जांच-पड़ताल में सामने आया कि कालाबाजारी जैसे संगीन अपराध को अंजाम देने वाला एक समूह बाजार में खूब सक्रिय है। वर्तमान में सेब की खेप हिमाचल-प्रदेश के कुल्लू -शिमला तथा श्रीनगर से आ रही है। बताया जा रहा कि सेब की खेती करने वालों को पूरा मूल्य नहीं मिल रहा है, जबकि, कालाबाजारी करने वाले इस सेब को काफी अधिक दाम पर बेच कर अपनी जेबों को गर्म कर रहे है। इतने बड़े गोरखधंधे पर सरकारी विभाग भी लगाम नहीं कस रहा है। यू कह सकते है कि कालाबाजारी करने वालों ने विभाग के अधिकारियों से लेकर बाबू लोगों को पैसे के दम पर अपनी जेब में डाल रखा है, जिस कारण उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। 

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बीमार से लेकर ,बच्चों की परवरिश के लिए सेब जैसा फल अहम भूमिका निभाता है। लेकिन, सेब के आसमान जैसे दाम ने ग्राहकों को दूर से ही देखने के लिए मजबूर कर दिया है। यू कहें कि इसके ग्राहक तो सिर्फ अमीर लोग ही रह चुके है। क्योंकि, वे लोग पैसे खर्च कर आसानी से खरीद लेते है। मध्यम वर्ग से लेकर गरीब तपका तो खाली उसके स्वाद का सिर्फ तो सिर्फ स्वप्न ही देख सकता है। क्योंकि, महंगाई के जीवन में घर चलाना हर किसी के लिए काफी कठिन हो चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्व में सेब की कभी कालाबाजारी नहीं हुई। तब सेब कभी 50 के दाम से ऊपर नहीं गया। हर कोई इसे काफी आसानी से खरीद लेता था। उनके मुताबिक, तब विभाग में ईमानदार अधिकारियों सहित बाबूओं की एक सेना काम किया करता थी। ड्युटी से बढ़कर उनके लिए कुछ बड़ा नहीं हुआ करता था। वक्त के बदलने के साथ विभाग में तेजी से सब कुछ बदल गया। अब तो हालात यह बन चुके है कि इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना भी इतना आसान नहीं हैं, क्योंकि, इस तंत्र में एक बहुत बड़ा भ्रष्टाचार का तंत्र कार्य कर रहा है। मुसीबत में बचने के लिए उनके पास हर हथकंडा है। जिसे आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया जाता है। 

जानिए, कैसे चलती है कालाबाजारी की प्रक्रिया

सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि कैसे कालाबाजारी का कारोबार बढ़ रहा है। कौन-कौन लोग इसमें शामिल है। जांच-पड़ताल में सामने आया कि एक कालाबाजारी चलाने वाला गिरोह सस्ते दाम पर सेब की खेप खरीद लेता है। उसके बाद उसे बड़े-बड़े गोदाम में रख दिया जाता है। मांग को देखते हुए, उसे उस हिसाब से मार्केट का दाम तय कर लिया जाता है। एक अफवाह का सहारा यह भी लिया जाता है कि उत्पादन काफी कम है, जबकि, खरीदार अधिक है, इसलिए दाम को अपने पसंद के हिसाब से बढ़ा दिया जाता है। बात यहां तक नहीं समाप्त नहीं होती है, आगे छोटे-छोटे फल विक्रेता भी इस धंधे में मोटी कमाई कर रहे है। वे लोग सेब 50 का खरीद आगे 200 से 250 के दाम पर ग्राहक को बेच देते है। ऐसे कालाबाजारी मार्केट खूब चलती है। लेकिन, पिस जाती है आम जनता। 

90 फीसद लोगों की पसंद है सेब

एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 90 फीसद लोग सेब को खाने के लिए पसंद करते है। शेष 10 फीसद में मधुमेह बीमारी से ग्रस्त रोगी ही इस फल से थोड़ा परहेज करते है। पता चला है कि इस फल के लिए सरकार ने मार्केट के मुताबिक कोई नीति नहीं बनाई है। जिसका फायदा वर्तमान में सेब की कालाबाजारी करने वालों को मिल रहा है। पता चला है कि ये मुद्दा राजनीति गलियारे में आज तक किसी राजनीतिक पार्टी ने नहीं उठाया।  सूत्र , इसके पीछे सत्तारूढ़ पार्टी को 2 नंबर में पैसा पहुंचाने की बात को मानते है। सच्चाई, इस बात की भी है अगर इस फल की सरकारी नीति को पारित कर दिया जाए तो शायद ये फल स्वप्न देखने वालों के मुंह में पड़ सकता है। 

केमिकल का हो रहा इस्तेमाल

हैरान करने वाली बात है कि सेब में केमिकल का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। सेब को बढ़िया शक्ल तथा अक्ल देने के लिए एक माफिया इस पर जोर शोर से काम कर रहा है। सोशल मीडिया में तेजी से प्रसारित हो रही वीडियो इस बात का पक्का सबूत है, लेकिन, इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग उन तक पहुंच नहीं कर पाया। अफवाह, इस बात की भी है कि विभाग के कई अधिकारी उनसे रिश्वत लेकर उन्हें छोड़ देते है। शायद, उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं कि केमिकल वाला सेब मनुष्यता के स्वास्थ्य पर कितना हानिकारक साबित हो रहा है। स्वास्थ्य से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि आगे जाकर व्यक्ति कैंसर जैसी बीमारी से जूझना पड़ सकता है। इसकी रोकथाम होना अति आवश्यक है। 

जानिए, कितने साल में कितनी बढ़ी कालाबाजारी

एक अनुमान के मुताबिक, पिछले 6 साल से सेब की मार्केट में 70 फीसद कालाबाजारी देखने को मिल रही है। हैरान करने वाली बात यह है कि प्रतिवर्ष इसका इजाफा काफी तेजी से हो रहा है। कोई एक्शन तथा रिएक्शन किसी प्रकार से नहीं हो रहा है। सरकार से लेकर विभाग चुप है। इतना ही नहीं, संबंधित विभाग तो इस रिपोर्ट पर कुछ भी बोलने से डरता है। उनका भयं इस ओर इशारा करता है कि दाल में कुछ काला है। शोधकर्ताओं का मानना है कि 10-15 साल पहले कभी भी सेब फल में कालाबाजारी नहीं होती थी। कुछ फीसद लोग शायद करते होंगे, लेकिन, उसमें कोई मार्केट को इतना फर्क नहीं पड़ता था। अब तो कालाबाजारी करने वालों ने तो सारी सीमाएं ही लाघ दी है।

….ग्राहक रहें कुछ इस तरह से सचेत

अगर आप सेब खाने के शौकीन है तो इसके लिए आपको कुछ बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है, सेब खरीदने के लिए पूर्व में मार्केट का सर्वे करें, देखें कि जिस सेब को आप खरीद रहे है कि वाक्य में सही है। फिर बाद में उसके दाम का अंतर देख लें। अगर आपको सेब के दाम में किसी प्रकार से गड़बड़ी नजर आती है तो इसके लिए स्वास्थ्य विभाग या फिर मार्केट विभाग को शिकायत पत्र अवश्य दीजिए। उस शिकायत को आपके द्वारा समय-समय पर उसका फीडबैक लेना भी अति आवश्यक है, ऐसा करने से कार्रवाई करने वाले अधिकारी पर भी दबाव बना रहता है कि उसे किसी न किसी निष्कर्ष पर काम को पहुंचाना है। अगर, फिर भी कोई शिकायत पर अमल नहीं करता है तो चंडीगढ़ के प्रमुख कार्यालय को भी शिकायत की जा सकती है। मानकर चलिए, आपके सही कदम की वजह से कई जिंदगियां बच भी सकती है तथा गोलमाल करने वालों को भविष्य के लिए सबक में मिल सकता है। 

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