छोटे से इश्यू को समंदर बना देना अनुचित

प्रतीकात्मक तस्वीर

छोटे इश्यू को समंदर बना देना बिल्कुल अनुचित हैं। समंदर की लहरों का शायद किसी को अंदाजा नहीं है एक-एक करके सबको बहाकर ले जाती हैं। ताजा उदाहरण, एक पंजाब की राजनीति परिवार से जुड़ा हैं। महिला विधायक के परिवार के इश्यू को जिस प्रकार से  समंदर बना दिया। इतना बड़ा भी नहीं था। मीडिया से लेकर राजनीतिक, सामाजिक वर्ग ने इस इश्यू को समंदर ही बना दिया। प्रति घर में पति-पत्नी का छोटा-मोटा इश्यू चलता हैं। उस इश्यू को बड़ा बना देना, समाज के किसी वर्ग का अधिकार नहीं बनता हैं। मीडिया तो वर्तमान में सामाजिक तमाशा बन चुकी हैं। उन्हें तो सिर्फ टीआरपी बढ़ाने के लिए बस मुद्दा चाहिए। शायद, वे लोग इस बात का परिणाम नहीं लगा कर चलते की कि उनका तमाशा दो परिवारों का चैन उड़ा देता, शायद, इस बात का भी संकोच नहीं किया जा सकता है कि हंसते-खेलते परिवार, इनकी टीआरपी के चक्कर में उजड़ जाते हैं। किसी हद तक मीडिया की सीमाएं होनी चाहिए, उस पार लांघने पर एक मापदंड होना चाहिए। 

तह तक सोचा जाए तो मीडिया भी बड़े घरानों के मामलों को उठाने में अपनी दिलचस्पी दिखाती हैं। उसे मालूम है कि अगर ऐसा कर दिखाया तो उन्हें फायदा पहुंच सकता हैं। वर्तमान में फायदा भी ले रहे हैं। लेकिन, किसी घर के अंदरूनी मामले को दुनिया के समक्ष तमाशा दिखाना, उसका कोई अधिकार नहीं हैं। देश में 60 फीसद के करीब पति-पत्नी के झगड़े आम तौर पर होते हैं। समय के मुताबिक, उन दोनों का प्यार भी बढ़ जाता हैं। क्योंकि , वे दोनों जीवन के हम सफर होते हैं। बात सोचने की है कि छोटे घरों में पति-पत्नी का झगड़ा चलता है तो वहां पर मीडिया क्यों नहीं दिलचस्पी दिखाती हैं। शायद, उन्हें पता है कि उन मामलों में टीआरपी नहीं मिलनी हैं। इसलिए, आवश्यकता के बावजूद उस सच को दिखाना बिल्कुल असंभव कर दिया  जाता हैं। 

तमाशा देखने के बजाय, बल्कि, दायित्व की पालना होनी अति आवश्यकता हैं। उस राह की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए, जिसमें दोनों तरफ समझौता हो जाए। अगर ऐसा संभव हो जाए तो शायद मामला कभी तूल नहीं पकड़ता हैं। लेकिन, जिन लोगों की रोजी-रोटी ही इस प्रकार का कार्य करने से ही चलती है वे लोग सुधर नहीं सकते हैं। समाज के एक समझदार तथा युवा वर्ग को अपने शिक्षित होने का अनुभव, समाज में बदलाव लाने के लिए अग्रसर होना चाहिए। 

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