वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़।
विश्व में लोकतंत्र की आवाज बुलंद करने तथा उसकी सुरक्षा करने के लिए , चौथे स्तंभ पत्रकारिता का जन्म हुआ था। लेकिन, अब की परिस्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल हैं। क्योंकि, जो पत्रकार सच्चाई की आवाज उठा रहे हैं, उन्हें प्रशासन तथा डंडा प्रशासन द्वारा दबाया जा रहा हैं। यह एक प्रकार से बड़ी चिंता एवं दुखदायक बात हैं, लेकिन, इस पर मंथन करने की अलावा कोई कुछ नहीं कर पाता। ताजा मामला पंजाब की अख्बारों की राजधानी जालंधर से जुड़ा हैं। वहां पर अपनी कलम से सच्चाई की लड़ाई लड़ने वाले वरिष्ठ पत्रकार के साथ स्थानीय थाना (रामामंडी) के दरोगा द्वारा थाना में बुलाकर , उनके (पत्रकार) के मुंह पर दस्तावेज फेंकने तथा बुरी तरह से जलील करने के संगीन आरोप लगा है। स्थानीय पुलिस कमिश्नर इस मामले में चुप्पी तान कर बैठे है , जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता हैं, कि विश्व के चौथे स्तंभ पर लोकतांत्रिक रूप से बड़ा हमला हुआ।
जिन वरिष्ठ पत्रकार पर हमला हुआ है, शायद उन्हें अपनी पहचान के लिए किसी प्रकार से मोहताज नहीं कहा जा सकता हैं। डेली नेट पोस्ट (विश्व प्रसिद्ध) डिजिटल मीडिया के प्रधान संपादक अमित भारद्वाज को किसी मामले को लेकर स्थानीय थाना रामामंडी के दरोगा (प्रभारी) ने बुलाया। आरोप लग रहे है कि थाना में वरिष्ठ पत्रकार ( एक डिजिटल मीडिया साइड के प्रधान संपादक) को 2 घंटा बैठाए रखा। जब, वरिष्ठ पत्रकार ने थाना के मुंशी को पूछा, कि साहब कितना समय लगेगा तो मुंशी बोले, अभी 1-2 घंटा और लग सकते हैं। इतने में हुटर वाली सरकारी कार में दरोगा जी का पुलिस थाना में एंट्री होती हैं। दरोगा से अपने कार्यालय के भीतर चले जाते है तथा वरिष्ठ पत्रकार को फिर से भीतर नहीं बुलाया जाता हैं।
ठीक एक घंटा उपरांत थाना प्रभारी घंटी बजाकर , वरिष्ठ पत्रकार भीतर बुला लेते हैं। वरिष्ठ पत्रकार ने दरोगा पर आरोप लगाए कि उन्होंने एक पुराने मामले को लेकर, उनसे समझौता करने के लिए दबाव डाला, जबकि, वरिष्ठ पत्रकार ने ऐसा करने से साफ इनकार किया गया। हैरान करने वाली बात , यह है कि मामला तो न्यायालय में विचाराधीन है, फिर, दरोगा जी ने किस बात पर समझौता करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार पर दबाव डाला। थाना प्रभारी (दरोगा) पर आरोप लगा कि, उन्होंने पत्रकार को उकसाया कि आप इस मामले के साथ जुड़े दस्तावेज के सूत्रधार बताए। सूत्रधार के बारे में अदालत नहीं पूछ सकती, फिर दरोगा जी के पास कौन सी शक्ति या फिर कानून है कि वह यह बात पूछने लग पड़े। जबकि, वरिष्ठ पत्रकार ने इस बात का भरोसा दिया कि साहब मैं आपको इस मामले के साथ संबंधित प्रमाण दे सकता हूं, लेकिन, दरोगा जी सिर्फ, इस बात पर अड़े रहे कि उन्हें तो सिर्फ इस मामले में दूसरे पक्ष की बात मानकर मामले को रफा दफा करना हैं।
आरोप लगे कि जब, दरोगा जी कोई बात नहीं बनी तो उन्होंने पत्रकार साहब को अपनी बातों में उलझाकर कर, उन्हें गुस्सा दिलाने का प्रयास किया। लेकिन, वरिष्ठ पत्रकार अमित भारद्वाज जैसे, इन बातों को पूर्व में भांप लेते है। अंत में थाना दरोगा ने उनके मुंह पर दस्तावेज मार दिए।
वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक, उन्होंने तब मामले को लेकर चुप्पी साधी रखी। किसी प्रकार से कोई बहसबाजी नहीं की तथा अपने घर लौट आए। बताया जा रहा है कि दरोगा ने जवाब देने के लिए कुछ समय दिया। वरिष्ठ पत्रकार ने अपने डिजिटल मीडिया पेज पर लाइव होकर पुलिस तथा अपने साथ हुई धक्काशाही से लेकर धमकियां मिलने की बात को उजागर किया। पता चला है कि वरिष्ठ पत्रकार लंबे समय से बीमार भी चल रहे है तथा इन सबके बावजूद वह अपनी सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे हैं।
…..चेताया, अगर कुछ हो जाता है तो पंजाब सरकार तथा पुलिस प्रशासन होगा जिम्मेदार
सूत्रों से इस बात का पता चला है कि वरिष्ठ पत्रकार अमित भारद्वाज को कई बार फोन धमकियां भी आ चुकी हैं। इस बारे पुलिस के पास भी शिकायत है, लेकिन, हमेशा ही उनकी बात को नजरअंदाज कर देती है, क्योंकि, सच्चे पत्रकार की शायद पुलिस को आवश्यकता नहीं हैं। वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि पिछले दिनों, उनके व्हट्सऐप मोबाईल पर किसी अज्ञात फोन पर जान से मारने की धमकी दी थी। पुलिस ने उस मामले में भी अब तक कुछ नहीं किया। ऊपर से उनकी शिकायत के मामले दूसरे पक्ष के साथ समझौता करने का दवाब डाली रही हैं। यह कैसा प्रशासन तथा शासन है, जिसमें फरियादी की सुननें की बजाय, उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा हैं। उन्होंने चेताया कि अग भविष्य में उनकी जान-माल या फिर किसी परिवार के सदस्य के साथ कुछ भी हो जाता है तो उसके लिए राज्य सरकार तथा पुलिस प्रशासन जिम्मेंदार होगा।
जिम्मेदारी से भाग रही पुलिस
जालंधर पुलिस पर आरोप लग रहे है कि वह पत्रकार के मामले को लेकर अपनी जिम्मेदारी से भाग रही हैं। सूत्रों से पता चला है कि पुलिस पर दूसरे पक्ष की तरफ से दबाव बन रहा है कि इस मामले को लेकर जल्द से जल्द रफादफा किया जाए। पत्रकार पर समझौते के लिए दबाव डाला जाए। लेकिन, पुलिस की मौलिक एवं नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह मामले को लेकर अपनी संजीग्ता दिखाए। सच्च को सच की तरह तथा झूठ को झूठ की तरह पेश करें। अगर, ऐसा पुलिस कर देती तो पुलिस के चरित्र का संदेश एक बार फिर से जनता के बीच अच्छा जाएगा।
गिले-शिकवे छोड़कर अन्य पत्रकारों को अपनी साथी की करनी चाहिए मदद
प्रैस से जुड़े वरिष्ठ जानकारों ने बताया कि वरिष्ठ पत्रकार अमित भारद्वाज वाक्य ही अपनी कलम के धनी हैं। उन्होंने हमेशा सच्चाई की आवाज को बुलंद किया। देश-विश्व की मीडिया से जुड़े पत्रकार, उनकी कलम को सलाम करते हैं। बताया जाता है अमित भारद्वाज लगभग 20 साल से इस लाइन के साथ जुड़े हैं। न्यूयार्क टाइम्स , हिंदुस्थान टाइम्स तथा विश्व की मानी न्यूज एजेंसी के साथ बड़े पद पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में देश के उच्च न्यायालय के न्यायापूर्ति से लेकर बड़े-बड़े अधिवक्ताओं से जानकारी लेकर बड़े-बड़े लेख लिखते हैं। उनका एक लिखा हुआ लेख हर कोई ध्यानपूर्वक तथा दिलचस्पी के साथ पढ़ता है, मगर पंजाब सूबे के एक जिला पुलिस द्वारा उन्हें इस प्रकार से प्रताड़ित किया जाए, यह समाज कताई माफ नहीं कर सकता हैं। इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग हो रही हैं। अब देखना होगा, इस मामले में क्या पत्रकार को इंसाफ मिल पाता है या फिर सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन का रास्ता एहतियात किया जाता हैं। जानकार, यह भी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है कि इस मामले में राज्य से लेकर जिला के पत्रकार तथा पत्रकार संगठन को अमित के साथ जुड़ना चाहिए, तथा सच्चाई का साथ देते हुए एक मिसाल कायम करनी चाहिए।
यह थी पूरी सच्चाई
भारद्वाज हमेशा ही अपने बड़े-बड़े लेख लिखते है। इस बीच दूसरे पक्ष ने उनके खिलाफ मनगढ़त एवं झूठी कहानियां बनाकर उन्हें फंसाया। फंसाने वाला बताया जा रहा है कि बहुत बड़ा जालसाज है, वह न्यायालय में अपनी ऊंची पहुंच होने की धौंस जमाता हैं। इसी वजह से पिछले समय वरिष्ठ पत्रकार , पिता तथा उनके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए गए। कहते है सच्चाई की हमेशा ही जीत अटल होती है, इसलिए पत्रकार ने न्यायालय पर भरोसा जताया तथा उन्हें इंसाफ मिला। मगर बड़ी दुखदायक बात है कि इस बीच पत्रकार के दिवंगत पिता हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह चुके है। पत्रकार मुताबिक, वह चुप नहीं बैठने वाले सच्चाई के लिए लड़ाई जारी है, निरंतर जारी रहेगी। भरोसा न्यायालय पर एक दिन उनकी जीत सुनिश्चित होगी।
सीपी ने साधी चप्पी
मालूम हुआ है कि इस मामले को लेकर स्थानीय सीपी एकदम चुप्पी साध दी। इस बात का संकेत मिल रहा है कि उन्हें इस मामले में अन्य पक्ष की तरफ से भारी दबाव डाला जा रहा हैं। कई बार संपर्क किया, लेकिन बार फोन नहीं उठाया। फोन पर संदेश भी भेजा गया। उसके प्रति कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। इससे साफ हो जाता है कि वरिष्ठ पत्रकार के मामले को लेकर पुलिस के बड़े अधिकारी भी नहीं सुनना चाहते है, इसलिए, वह कोई दिलचस्पी लेने के बदाय खाना पूर्ति कर रहे हैं।
उच्च-न्यायालय में दायर करेगें पुलिस के खिलाफ याचिका
वरिष्ठ पत्रकार अमित भारद्वाज ने साफ कर दिया है कि वह अपनी सच्चाई को लेकर बिल्कुल चुप नहीं बैठने वाले हैं। क्योंकि, स्थानीय पुलिस अपने कार्यालय में बैठाकर, उसे प्रताड़ित करती हैं। उसकी कोई बात नहीं सुनी जाती हैं। जिनके खिलाफ आरोप या फिर झूठी शिकायत साबित हुई है, उन्हें पुलिस को बुलाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं करके इस बात का सबूत तो जरुर दे दिया कि पुलिस ने अब कुछ नहीं करना हैं। इसके लिए अब वह पुलिस के खिलाफ जल्द पंजाब एवं हरियाणा उच्च-न्यायालय में याचिका दायर करने जा रहा हैं।
थाना बुलाने का मतलब नहीं बनता—अधिवक्ता
वरिष्ठ अधिवक्ता रमन भारद्वाज ने बताया कि इस मामले में अदालत ने थाना प्रभारी से रिपोर्ट तलब की थी, नाकि, किसी के बयान दर्ज या फिर केस से संबंधी सूत्रधार बारे पूछने की जानकारी। एक प्रकार से कानून की उल्लंघना हैं। जरुरत पड़ी तो अदालत में याचिका दायर की जाएगी।