नारी सशक्तिकरण की मिसाल संगीता विग….दूसरों की मदद करना अपने जीवन का रखा लक्ष्य

एसएनई नेटवर्क.अमृतसर /चंडीगढ़।

नारी सशक्तिकरण की मिसाल संगीता विग किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। 17 जनवरी 1978 को मां स्वर्ण लता की कोख से जन्म लिया। पिता बैंक में अधिकारी थे। बचपन से ही पढ़ाई एवं डांस तथा दूसरों की मदद करना अपने जीवन का लक्ष्य रखा। शिक्षा के क्षेत्र में स्नातक, स्नातकोत्तर, बीएड, एमएड में अच्छे अंक के साथ परीक्षा पास की। वैवाहिक जीवन में पति विक्रम विग हर मुकाम में साथ दिया। वर्तमान में डीडी हाई स्कूल में बतौर प्रिंसिपल हैं। स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र सरकारी एवं निजी क्षेत्र में काफी अच्छे पद पर तैनात हैं। वर्तमान में भी मैडम संगीता के बताए मार्ग पर चलकर अपने अगली पीढ़ी के लिए मार्ग बन रहे हैं।

संगीता विंग के मुताबिक, प्रतिदिन के व्यस्त जीवन में समय निकालना, खासकर दूसरों के लिए काफी असंभव सा लगता हैं। लेकिन, अगर जिंदगी को अपनों के अलावा दूसरों के लिए कुछ करने के बारे सोचा लिया जाए तो प्रत्येक कार्य संभव हो जाता हैं। इस धारण को अपनाया तथा हर मुश्किल कार्य को संभव किया। प्रतिदिन सुबह 5 बजे उठकर भगवान के चरणों में शीश झुका कर, भक्ति में एक घंटा लीन हो जाती हैं। थोड़ा-बहुत योग करने के उपरांत घर कामकाज कर स्कूल की तरफ निकल जाती हैं। स्कूल में प्रिंसीपल की ड्युटी के अलावा कक्षा में बच्चों को शिक्षा भी देती हैं। 

दिलचस्प पहलू है कि विग अपने स्कूल का कामकाज निपटने के उपरांत सायं स्कूल में निर्धन बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी देती हैं। उनके मुताबिक, बच्चों को शिक्षा देने से उनकी आत्मा को स्कूुन मिलता हैं। वह समझती है कि बाबा ने उन्हें जिस चीज के लिए बनाया है, उसे सही ढंग से करना ही जीवन का एक कर्म हैं, जिसे पूरा करके अपने जीवन की पारी को नया आयाम दिया जा रहा हैं। हैरान करने वाली बात है कि संगीता सिर्फ रात को 5 घंटा ही नींद लेती हैं। उनके मुताबिक, मनुष्य को नींद के बजाय भगवान द्वारा दी गई जीवनशैली को अपने कार्य में व्यतीत करनी चाहिए, खासकर भले काम में। तब जाकर मनुष्य का जीवन सफल हो पाता हैं। 

बच्चों का पूरा-पूरा सहयोग

संगीता के मुताबिक, उनके एक बेटा तथा एक बेटी हैं। बेटी विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है, जबकि, बेटा पंजाब में पढ़ रहा हैं। दोनों बच्चे मां के आज्ञाकारी हैं। इनका प्यार एक घने मित्र की तरह हैं। हर बातचीत तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिए मां से हर परामर्श करते हैं। इसी वजह से इन सबका सफल जीवन चल रहा हैं। बेटी तानिया विग कनाड़ा में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ भारत का नाम विदेश में भी कर रही हैं। इसके पीछे मां संगीता का आर्शीवाद बेटी के साथ हैं। संगीता के मुताबिक, उनके हर कार्य में बच्चों का पूरा-पूरा सहयोग रहा है, इसलिए, उनके राह में कभी भी कांटे नहीं आए। अगर आए भी है तो वह चंद समय में ही हट गए। 

पिछले 15 वर्ष से मिल रहा बेहत्तर अध्यापक का सम्मान

संगीता विग को पिछले 15 वर्ष से बेहत्तर अध्यापक का सम्मान मिल रहा हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सुधारत्मक कदम की बदौलत, इन्हें शिक्षा विभाग से लेकर कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका हैं। इसके पीछे का श्रेय वह सांस, पति तथा बच्चों को देती हैं। उनके मुताबिक, अगर इनका सहयोग नहीं होता तो शायद वह इस मुकाम तक नही पहुंच पाती। भविष्य में भी शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने का लक्ष्य निर्धारित किया हैं। इसके लिए मापदंड तैयार किया जा रहा हैं। जिसके लिए उन्हें परिवार से लेकर हर वर्ग का सहयोग तथा तय दिशा मिल रही हैं। 

देश-विदेश में बनाया अपना नाम

पिछले दिनों, दिल्ली के कानौट प्लेस में स्थित कंस्टीटूशन क्लब (दिल्ली)  होलिस्टिक हीलिंग ट्रीटमेंट एंड ट्रेनिंग विग द्वारा (भारतीय सरकार द्वारा पंजीकृति संस्था) ने दीपावली के उपलक्ष्य को लेकर भारतीय संस्कृतिक परिधान प्रतिस्पर्धा (वर्ष-2022) का आयोजन किया। इस प्रतिस्पर्धा में देश-विदेश से महिलाओं ने हिस्सा लिया।

संगीता विग के अलावा दो अन्य महिलाएं संगीता शर्मा तथा ऊमा तेजी ने भी हिस्सा लिया। इन तीनों ने प्रथम स्थान हासिल कर देश ही नहीं विदेश में भी भारत का नाम रोशन किया। दिलचस्प पहलू यह रहा कि इस प्रतिस्पर्धा में भारतीय संस्कृतिक परिधान के अलावा, उनसे हर वो सवाल पूछे गए, भारतीय संस्कृति के साथ जुड़े हुए थे। 

एक-एक करके संगीता विग ने सभी सवाल का जवाब पूरे आत्मविश्वास के साथ देकर जज सहिबान का दिल जीत लिया। उन्हें प्रथम स्थान के रुप में ट्राफी एवं सर्टिफिकेट भी दिया गया। यह सम्मान बीएएमएस डाक्टर भूपिंद्र (अध्यक्ष एचएसओ) शेस्ता खान (उपाध्यक्ष एचएसओ) द्वारा प्रदान की गई।

अध्यापिका शेस्ता खान को मानती अपनी प्रेरणास्रोत

संगीता विंग के मुताबिक, रेकी एक प्रकार से परंपरागत प्रणाली हैं। अध्यापिका शेस्ता खान को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं। क्योंकि, उनके सिखाए मार्ग पर चलकर रेकी प्रक्रिया को आफलाइन एवं आनलाईन ढंग से चलाया जा रहा हैं। इस प्रणाली से प्रत्येक बिमारी से छुटकारा पाने के अलावा जड़ से समाप्त किया जाता हैं।   

जानिए, रेकी का अर्थ एवं इसका मानव जीवन को कितना है फायदा  

संगीता विग के मुताबिक, रेकी एक आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है। रेकी शब्द में रे का अर्थ है वैश्विक, अर्थात सर्वव्यापी है। विभिन्न लोगों द्वारा किये गये शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है जिसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार खोजा जाता है।

समग्र औषधि के तौर पर रेकी को बहुत पसंद किया जाता है। रेकी की मान्यता है कि जब तक कोई प्राणी जीवित है, ‘की’ उसके गिर्द बनी रहती है। जब ‘की’ उसे छोड़ जाती है, तब उस प्राणी की मृत्यु होती है। विचार, भाव और आध्यात्मिक जीवन भी ‘की’ के माध्यम से उपजते हैं।

साधारण विधि

रेकी एक साधारण विधि है, लेकिन इसे पारंपरिक तौर पर नहीं सिखाया जा सकता। विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है। इसे आध्यात्म आधारित अभ्यास के तौर पर जाना जाता है। चिन्ता, क्रोध, लोभ, उत्तेजना और तनाव शरीर के अंगों एवं नाड़ियो में हलचल पैदा करते देते हैं, जिससे रक्त धमनियों में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं। शारीरिक रोग मानसिक रोगों से प्रभावित होते है। रेकी बीमारी के कारण को जड़ मूल से नष्ट करती हैं, स्वास्थ्य स्तर को उठाती है, बीमारी के लक्षणों को दबाती नहीं हैं। रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है और शारीरिक तनाव, बैचेनी व दर्द से छुटकारा मिलता जाता हैं। रेकी गठिया, दमा, कैंसर, रक्तचाप, पक्षाघात, अल्सर, एसिडिटी, पथरी, बवासीर, मधुमेह, अनिद्रा, मोटापा, गुर्दे के रोग, आंखों के रोग , स्त्री रोग, बाँझपन, शक्तिन्यूनता और पागलपन तक दूर करने में समर्थ है।

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