सिविल अस्पताल के डॉक्टर एक षडयंत्र का हिस्सा थे……..असल वजह कुछ और थी

बड़ा सवाल—-क्या एक डॉक्टर का जन्मदिन नहीं मनाया जा सकता, क्या उन्हें अपने अधिकारों के इस्तेमाल करने की कोई अनुमति नहीं 

चंद मिनटों में रिपोर्ट को नकारात्मक बनाने के लिए कई मीडिया जगत को पैसे के दम पर खरीद लिया गया

लेखक विनय कोछड़.अमृतसर/चंडीगढ़। 

पंजाब के सिविल अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं को रोगियों तक पहुंचाने तथा उन्हें बढ़िया इलाज देने में चिकित्सकों की भूमिका काफी सक्रिय नजर आ रही है। खासकर, पंजाब के सिविल अस्पताल, अमृतसर के चिकित्सक इस मिसाल को कायम रखने में बढ़िया भूमिका निभा रहे है। लेकिन, सवाल अब यह खड़ा होता है कि उन्हें कुछ लोगों की वजह से षड्यंत्र का हिस्सा बनना पड़ रहा है। ऐसा एक मामले में उन्हें किसी अन्य गुट की साजिश ने बुरी तरह से फंसाने तथा बदनाम करने में अहम भूमिका निभाई। ड्यूटी के उपरांत एक चिकित्सक का जन्मदिन अस्पताल में मनाया गया। इसमें सभी डाक्टर तथा स्टाफ ने हिस्सा लिया। लेकिन, चंद मिनट में पैसों के दम पर खरीदी गई मीडिया ने डॉक्टर की खुशियों पर पानी फेर दिया। यहां पर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या एक सरकारी डॉक्टर को अपना जन्मदिन मनाने की कोई अनुमति नहीं है , क्या वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते है। उन्होंने क्या इतना बड़ा जुल्म कर दिया कि मीडिया ने उनका जुलूस ही निकाल दिया। 

शायद हमें एक बात पर गौर करना चाहिए कि यहीं डॉक्टर भगवान का दूसरा स्वरूप माने जाते है। अगर किसी रोगी को परेशानी होती है तो अपना सब कुछ छोड़ कर उनके इलाज में जुट जाते है। इतना ही नहीं कई बार तो ये लोग मरने वाले मरीज को नया जीवनदान देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते है। मीडिया तो इस समय एक तमाशा बन चुका है। अब उनमें सही गलत का फर्क समझने की सोच ही समाप्त हो चुकी है, सिर्फ तो सिर्फ उन्हें टीआरपी की चिंता होती है, इसके लिए चाहे उन्हें किसी भी हद तक जाने की जरूरत पड़े तो वे लोग पीछे भी नहीं हटते है। इस एपिसोड के बाद डॉक्टर किसी की नजरों में नजर डालने से भी डर रहे है। मन ही मन वे लोग पछतावा कर रहे है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। ऐसा करके उन्होंने कौन सा बड़ा अपराध कर लिया। सोचने की बात है कि वर्तमान में हर विभाग में हर कर्मचारी तथा अधिकारी का जन्मदिन फ्री समय में मनाया जाता है। लेकिन पता नहीं सिविल अस्पताल में डॉक्टर के जन्मदिन को क्यों इतना बड़ा इश्यू बना दिया गया। आखिर, इसमें उनकी क्या गलती रही, जिसे मीडिया ने बढ़ा चढ़ा कर दिखाया। खैर मीडिया को इस न्यूज़ को चलाने के लिए एक बार सोचना चाहिए था, क्योंकि, उनकी एक गलती डॉक्टरों की जिंदगी को बर्बाद कर सकती है।

सरकारी आंकड़े की बात कीजिए तो सरकारी अस्पतालों में पहले से ही डाक्टर तथा अन्य स्टाफ की बहुत कमी चल रही है। इसके पीछे की वजह पर गौर किया जाए तो यह सामने निकल कर आई है कि डॉक्टरों को बेवजह ही प्रताड़ित किया जाता है, इसलिए वे लोग सरकारी अस्पताल में नौकरी करने से डरते है। वे निजी क्षेत्र में नौकरी करना बेहतर विकल्प मानते है।  रही कसर मीडिया पूरी कर देती है, जानबूझकर सरकारी डॉक्टरों को बदनाम कर देती है। यहीं प्रमुख कारण है कि डॉक्टरों का मनमोह सरकारी अस्पतालों में लगने से दूर हो रहा है। अगर स्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ तो एक दिन आएगा कि सरकार को अन्य राज्यों से डॉक्टरों को अपने अस्पताल में लगाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 

दवा से लेकर इलाज तक फ्री

जिन डॉक्टरों को वर्तमान की मीडिया बदनाम कर रही है।  शायद, उन्हें इस बात का पता होना चाहिए कि ये डाक्टर हर किसी का इलाज तथा दवा फ्री प्रदान करते है। चाहे , उसमें सरकार पैसा लगा रही है , कहीं न कहीं एक डॉक्टर की कार गुजरी भी अहमियत रखती है। कई बार उन्हें अपने परिवार तथा समाज को नजरअंदाज कर एक मरीज के इलाज में जुटना पड़ता है, तब इनके कार्य को कोई मीडिया घराना अपने जहां सुर्खियां नहीं बनाता है। उसकी एक गलती को ऐसा दर्शाया जाता है कि जैसे उसने कोई संगीन अपराध कर दिया होता है। एक बात गौर करने वाली है कि यहीं मीडिया निजी क्षेत्र से जुड़े प्रईवेट अस्पताल की कोई खबर को प्रकाशित नहीं करते है, हालांकि, सबसे अधिक झोल निजी क्षेत्र के अस्पतालों में हो रहा है। वहां पर मरीजों के साथ जो व्यवहार किया जाता है, शायद कोई कसाई भी नहीं ऐसा करता होगा। पता है मीडिया को वहां से विज्ञापन मिलते है, इसलिए, उनके खिलाफ आवाज उठाने से पहले ही जुबान दब जाती है। 

डाक्टरों पर हो रहे हमलों का जिक्र दूर-दूर तक नहीं

पिछले समय सरकारी डाक्टरों पर इतने हमले हुए कि उन्हें अपनी जान भाग कर बचानी पड़ी। इन वारदात को मीडिया ने प्रकाशित भी नहीं किया। उसमें एक बात सामने आई, उस दौरान डाक्टरों को खुद के शीर्ष अधिकारियों का भी साथ नहीं मिला। पुलिस प्रशासन ने तो पहले हाथ खड़े कर दिए। लेकिन, डाक्टरों की चेतावनी के उपरांत कुछ कार्रवाई हो पाई। ऐसे में हम सब को समझना होगा कि कैसे डाक्टर अपनी जान को जोखिम में डाल कर मरीज को बचाता है, लेकिन, फिर भी कुछ लोग डाक्टरों पर बिना वजह हमला कर देते है। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक की तरह सभी को कर्तव्य का पालन करना चाहिए। 

मीडिया को मिलती है प्राथमिकता

यहां पर गौर करने वाली बात है कि सिविल अस्पताल में मीडिया से जुड़े पत्रकारों को डाक्टर तथा प्रशासन की तरफ से हर मामले में प्राथमिकता दी जाती है। अगर उन्हें किसी प्रकार से इलाज की आवश्यकता पड़ती है तो यहां के डाक्टर उन्हें प्राथमिकता के तौर पर हर सुविधा को प्रदान करते है। इतनी लंबी लाइनों में उन्हें प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। सबसे पहले उनका इलाज किया जाता है। इतना ही नहीं डाक्टर के पास किसी कंपनी की दावा के सैंपल हो तो वे उन्हें बांट भी देते है। इतना कुछ करने के बावजूद मीडिया द्वारा डाक्टरों को बदनाम करना कोई औचित्य नहीं बनता है। इससे एक बात साफ साबित हो जाती है कि मीडिया के लिए वर्तमान में पैसा ही सब कुछ है जो इसे दें दे तो उसी प्रकार से प्रकाशित या फिर प्रसारित कर दिया जाता है। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए।      

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