पत्रकार शब्द जो कि पल भर में हर परिस्थितियों को बदलने का काम कर देता है। अपनी जान की न परवाह करते हुए बुराई को दुनिया को सामने लाने के लिए हर चुनौती को मात देने के लिए तत्पर रहता है। किसी समय पत्रकार के लिए दुनिया उनके सम्मान में पलकें बिछा देती रही है। वे किसी पहचान के मोहताज भी नहीं रहें। अब परिस्थितियां कुछ प्रतिकूल चल रही है। जोकि पत्रकार शैली के जीवन को काफी प्रभावित कर रही है। ऐसा मानना है कि पत्रकारों के प्रति कुछ भीतरघात के लोगों ने ही समाज के प्रति गलत धारणा को पेश कर दिया। उनका मंसूबा सिर्फ तो सिर्फ खुद को आगे कर अपनी जिंदगी को आसान तथा ऐश्वर्य भरी करना है। जो कि बिल्कुल गलत हो रहा है। एक वर्ग इसके पीछे का कारण पत्रकारों के अध्यक्ष लोगों को गलत मानता है। उनके मुताबिक, ये लोग खुद को समाज में अमीर करने में एकदम कामयाब रहे है, जबकि, अन्य पत्रकार तो सिर्फ तो सिर्फ खबरें ढूंढकर दायरों को परोस रहा है। काम के नाम पर तो कोई पैसा नहीं मिल रहा, बल्कि, बदनामी अलग से खट रहे है। हालात, इन लोगों के इतने बुरे है कि कई बार तो इनके परिवार में आटा तक समाप्त हो जाता है। कितने शर्म की बात है कि फिर भी इन पत्रकारों की समाज के प्रति गलत धारणा को पेश किया जा रहा है।
सही लिहाजे में जाना जाए तो पत्रकार को वर्तमान में शिक्षित होना काफी अनिवार्य हो चुका है। एक वर्ग तो यह भी मानता है कि 80 फीसद पत्रकारी पेशे से जुड़े 10-12 क्लास पास है। वे लोग इस क्षेत्र में काम कर रहे है। इतना ही नहीं, उन्हें पत्रकारिता से जुड़े बड़े घराने ब्यूरो चीफ तथा संपादक तक की पोस्ट देकर बैठे है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये लोग पत्रकारिता को गलत दिशा की तरफ लेकर जा रहे है। उनके लिए सिर्फ तो सिर्फ येलो जर्नलिज्म ही ठीक है। मोटी-मोटी कमाई कर आलीशान घर बना रखे हैं। हैरान करने वाली बात तो यह है पिछले पर्दे से इन्हें पत्रकारों का एक वर्ग सहयोग भी देता है। क्योंकि, गोल कमाई बाद में बराबर हिस्से में बंट जाती है। ऐसा नहीं कि उनके गोरखधंधे के बारे दायरा तथा वरिष्ठता वर्ग अवगत नहीं है, यू कहें कि उन्हें सब कुछ मालूम है, क्योंकि, दायरों को काफी संख्या में विज्ञापन भी तो इन लोगों से हासिल होते है। देखा जाए तो सच्ची पत्रकारिता तो बिल्कुल समाप्त हो चुकी है। अब तो वो लोग ही चल सकते है, जिनके पास येलो जर्नलिज्म करने की कला है, शेष तो सिर्फ मूकदर्शक ही बन कर रह गए है, क्योंकि, भाई, उन्हें तो अपना परिवार को पालना है। अगर उनके खिलाफ कुछ बोले तो दायरे से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसी भयं से तो कई पत्रकारों ने अपनी जुबान पर ताला लगा दिया है।
पिछले समय में कई पत्रकार ऐसे भी सामने आए है, जिन्होंने समाज तथा सरकार की बुराई के खिलाफ आवाज उठाई। मगर उलटा उनके खिलाफ सरकार के इशारे पर पुलिस ने झूठे पर्चे डाल दिए। कुछ तो बेचारे बिना वजह किसी कसूर के बिना जेल की हवा भी खा कर आए। बड़ी बात तो यह सामने आई कि जो प्रेस-क्लब तथा प्रेस संगठन इस बात का दावा करती रही कि वह हमेशा पत्रकारों के साथ सदैव खड़े है। वे लोग भी चुप कर बैठ गए, किसी ने कोई आवाज नहीं उठाई। किसी प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया तक नहीं जाहिर की। ऐसे लोगों को तो पत्रकारों के अध्यक्ष बनने का अब कोई औचित्य भी नहीं रह चुका है। उनमें अगर जरा सा भी जमीर बचा है तो अपने-अपने पद को छोड़ देना ही अच्छा होगा। एक वर्ग तो यह भी कहता है कि ये लोग सरकार के पीठु बन चुके है। सरकार के खिलाफ बयानबाजी करना तो एक प्रकार से इनके द्वारा रचाया गया ड्रामा है। कई ऐसे अध्यक्ष है, जिन्होंने सरकार से हाथ मिलाकर कई फायदे लिए। लेकिन, पत्रकारों की सच्चाई को बीच में ही डुबो दिया।
एक जमाना था पत्रकार को देश का हर वर्ग एक सम्मानजनक नजर से देखता था लेकिन, अब तो हर जगह इस पेशे की किरकिरी करने से पीछे भी नहीं हटता है। उनके मुताबिक, सभी पत्रकार अपने इमान को बेच चुके है, उनके मुताबिक, पैसे के दम पर वह पत्रकार को खरीद लेते है। उनके द्वारा गढ़ी खबर को जैसे-तैसे लगवा लेते है। मगर शायद उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि पत्रकारों की मिसाल वर्तमान में भी जिंदा है, जिनका कार्य खबर को प्रकाशित करना है तथा समाज के सामने सच्चाई को सामने लाना है। उनकी एक-एक खबर समाज में चर्चा बनती है। गरीब तथा दुबले-कुचले लोगों की वह आवाज बन कर उन्हें इंसाफ दिलाता है। विडंबना इस बात की सच्ची पत्रकारिता आम बाजार में नहीं दिखाई देती है, उन्हें तो ढूंढना पड़ता है। सवाल तो इस बात भी खड़ा होता है कुछ लोग सच्चाई का प्रमाण देकर खुद में मुकर जाते है। ऐसे लोगों के लिए पत्रकार भविष्य में आवाज उठाने में आवश्यक संकोच करेंगा।
समाज में कोई बदलाव आता है, उसके लिए एक सच्ची पत्रकारिता का अहम रोल रहता है। हमें इस बात की तरफ भी गौर करना होगा। लेकिन, समाज का अधिक हिस्सा अपना मतलब निकाल कर पत्रकार की भावना को ही भूल जाता है। उसके मुताबिक, यह तो पत्रकार की मौलिक ड्यूटी बनती है जो उसे पूरा करना होता है। लेकिन, उन लोगों को यह भी नहीं भूलना चाहिए, कि पत्रकार आपके लिए बिना जान की परवाह कैसे अपनी जिंदगी को जोखिम में डाल देता है। वह एक पल यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि समाज के साथ धक्का हो रहा है, कैसे इसके खिलाफ आवाज उठानी है। पता नहीं शायद कि पत्रकार को कई बार अपनी लाइन को क्रॉस कर समाज के लिए आवाज बन जाता है। इसके उपरांत किस प्रकार के परिणाम निकल कर सामने आते है, उसने इस बारे कभी नहीं सोचा होता है।
वर्तमान में भी पत्रकारों के कई अधिकारों को इससे वंचित रखा जा रहा है। इसमें कसूरवार प्रेस क्लब, प्रेस संगठन तथा उनके पद्दाकिरी जिम्मेदार हैं, क्योंकि, उन्हें सिर्फ तो सिर्फ अपने पद की ही हमेशा चिंता लगी रहती है कि कई नीचे से खिसक न जाए। इसी चिंता को लेकर वे पत्रकारों के अधिकारों के बारे कभी बोलते नहीं है। किसी ने पत्रकार की पगार को लेकर मुद्दा नहीं उठाया। सरकारी सुविधाएं के बारे पत्रकारों को अवगत नहीं कराया। पता चला है कि यह सब सुविधाएं पदाधिकारी ही लेते है। क्योंकि, उन्हें तो सिर्फ तो सिर्फ आम पत्रकार की भावनाओं से खिलवाड़ करना है। लेकिन जो भी हो रहा है वह सब कुछ गलत हो रहा है। इसके लिए पत्रकारों को एक बार आपसी सहयोग से समझना होगा, अन्यथा भविष्य में उनके लिए कई चुनौतियां मुसीबत खड़ी कर सकती है।
विनय कोछड़———————-प्रधान संपादक (एसएनई न्यूज)