लेखक विनय कोछड़।

स्वतंत्रता से पूर्व देश में एक समुदाय के राजा रजवाड़े अंग्रेजों के पिठु हुआ करते थे। हिंदुस्तानियों पर जुल्म ढाने वाले बर्तानियां सरकार के अधिकारियों को दावत पर बुलाकर खूब खिदमत किया करते थे। इस बात को वर्तमान में भी कोई दरकिनार नहीं कर सकता हैं। यहीं लोग अब विदेश में अंग्रेजों के पिठु बनकर भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। यह लोग खालिस्तानी होने का दावा करते हैं। देश में आतंक की फिर जड़े मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। विदेश में भारत के खिलाफ सबसे ज्यादा हां- हां कर भी यहीं मचा रहे हैं। विशेषज्ञ मानते है कि इनका अंत बिल्कुल निकट हैं। क्योंकि, सही सिख खुद ही इनकी मूवमेंट के खिलाफ है तथा वे लोग सच्चे भारतीय होने का कई बार सबूत भी दे चुके हैं। खैर विदेशी धरती इन्हें संरक्षण देकर कोई अच्छा काम नहीं कर रही हैं। उसके लिए वर्तमान काफी मुसीबतों से भरा हैं। इस बात का दावा तो विदेश में बैठे विपक्षी नेता भी कर चुके हैं। वे लोग वर्तमान सरकार के कामकाज तथा खालिस्तानी मूवमेंट को संरक्षण देने के बिल्कुल खिलाफ हैं। एक तरह से कनाडा में तो आर्थिक संकट आ चुका हैं। लोग सड़कों पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
एक बात तो साफ है कि भारत के साथ पंगा लेना किसी के बस के बात नहीं है। आर्थिक, व्यापारिक तौर पर भारत पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुका हैं। कोई भी देश भारत के साथ संबंध नहीं बिगाड़ना चाहता हैं। वे लोग भली भांति जानते है कि ऐसा करने से उनके विरुद्ध फैसला जा सकता हैं। वैश्विक तौर पर किसी देश के समर्थन या असमर्थन में भारत का मत काफी महत्वपूर्ण माना जाता हैं। चंद मिनट में भारत खेल बदलने की अहमियत रखता हैं। इस बात का कई बार सबूत मिल भी चुका हैं। किसी समय भारत को हलके में लेना हर किसी के लिए आसान होता था। लेकिन. जब से देश की भागदौड़ मजबूत नेतृत्व के हाथ में आई है तब से हर प्रकार के समीकरण ही बदल गए। कुछ विदेशी धरती चाहे भारत विरोधियों का साथ दे रही हैं, लेकिन, वर्तमान उनके लिए कई प्रकार दिक्कतें पैदा होने जा रहे हैं।

मांग, इस बात की भी उठ रही है कि भारत को देशविरोधी ताकतों का साथ देने वाले देशों का हाल भी पाकिस्तान की तरह करना चाहिए। उन्हें वैश्विक तौर पर कूटनीति के साथ अलग-थलग कर देना चाहिए। इसके लिए बड़े स्तर पर अब से तैयारियां आरंभ कर देनी चाहिए। अधिक से अधिक देशों को एकजुट कर राष्ट्रविरोधी ताकतों का साथ देने वाले देशों को नीचे गिराने का प्रयास आरंभ होना चाहिए। भारत को कई देशों से समर्थन मिल जाएगा। क्योंकि, वे लोग खुद भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि भारत एक ऐसा देश किसी के आपात स्थिति में सबसे पूर्व मदद के लिए हाथ आगे करता हैं। पिछले समय अफ्रीकी देशों को भारत ने मदद के लिए आगे हाथ बढ़ाकर, इस बात का सबूत भी दिया।
खालिस्तानी मूवमेंट पंजाब का माहौल खराब कर रही हैं। कई बार मंचों में खुलेआम खालिस्तान की मांग की गई। देश में खालिस्तान मूवमेंट एक प्रकार से प्रतिबंध हैं। 1980 के दशक में इस मूवमेंट ने पंजाब को काले दौर में धकेल दिया था। कई बेकसूर हिंदू तथा सिख युवाओं ने जान गांवाई। कई आतंकियों की गोली का शिकार हुए। व्यापार से लेकर जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। पटरी पर जीवन आते-आते कई साल बीत गए। जिन्होंने हालात को सुधारा, उन्हें खालिस्तानी आतंकियों ने गोलियों से भून डाला। अब फिर से यहीं ताकतें पंजाब का माहौल बिगाड़ने की फिराक में हैं। जिनकी मदद अंग्रेजी एजेंसियां तथा विदेश कर रहे हैं। शायद लगता है, कि उन देशों में राष्ट्रविरोधी आग नहीं लगी है, तभी उन्हें तमाशा देखना अच्छा लग रहा हैं।
अगर भारत रिश्तों में थोड़ी से कड़वाहट दिखा दे तो इसका खासा असर कनाडा, अमेरिका में देखने को मिल सकता हैं। भारत आयात तथा निर्यात की नीति को इन देशों के खिलाफ सख्त कर दे तो उसमें भी भारत को काफी फायदा मिल सकता हैं। उन देशों को पता लग जाएगा कि भारत के साथ दुश्मनी या फिर उसके दुश्मनों को संरक्षण देना कितना महंगा पड़ता हैं। चर्चा इस बात की भी चल रही है कि विदेश में खालिस्तानी रेफरेंडम चला रहे हैं। वे लोग पंजाब को खालिस्तानी बनाने का स्वप्न देख रहे हैं। इतना ही नहीं पंजाबी युवाओं के ब्रेन वाश कर उन्हें देश विरोधी बनाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी जा रही हैं। भविष्य को अंधकार में डाला जा रहा हैं। पंजाब में बसे उनके मां-बाप बच्चों के लिए देश का नाम ऊंचा करने का स्वप्न सजाए बैठे हैं। कुल मिलाकर खालिस्तानी मूवमेंट पंजाब की युवा पीढ़ी का बेड़ागर्क कर उनकी सोच को अलगाववादी बनने में जुटी है। पता चला है कि उक्त युवाओं को डॉलर का लालच देकर उन्हें बुरे जंजाल में फंसाया जा रहा हैं।

1947 से पूर्व कई सिख यह चाहते थे कि पंजाब को एक अलग देश बना दिया जाए। वह लोग तब से खालिस्तान की मांग कर रहे थे। लेकिन, अधिक संख्या में सिख इस मूवमेंट के खिलाफ थे। वे लोग जानते थे कि यह खालिस्तान कभी उन्नति नहीं कर सकता हैं। यह सिर्फ तो सिर्फ एक अलगाववादी सोच है, अन्य कुछ नहीं। देश की राजनीति में सिखों ने काफी उन्नति किया। देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, प्रमुख न्यायाधीश, चुनाव-आयुक्त से लेकर कई बड़े पदों पर सिख समुदाय काम कर चुका हैं। इन सबके बावजूद खालिस्तान की मांग करना कोई औचित्य नहीं हैं।
आरंभ से ही रहा है कि पंजाब पर कईय़ों की बुरी नजर रही हैं। लेकिन, हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देकर उन्हें मिटाया गया। वर्तमान में पंजाब का युवा राज्य में रह कर आगे बढ़ रहा हैं। शिक्षित सोच के साथ हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। कई लोग उनकी उन्नति को सह नहीं कर पा रहे है, इसलिए, सोशल मीडिया के माध्यम से उनके ब्रेन वॉश कर उन्हें राष्ट्रविरोधी बनाने का काम चालू कर दिया। कई बार भटके युवा इनके नक्शे कदम पर चल पड़े तथा उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। परिवार दुख में रहकर अपने आपको को कोस रहे है कि क्या परवरिश में कोई कमी रह गई या फिर उन्हें अच्छी तालीम नहीं दे पाए। विदेशी खालिस्तानी तो अपने मंसूबों को कामयाब करने के लिए पंजाब के युवाओं को ढाल बनाकर यह साबित करना चाहते है कि उनकी लहर पंजाब में चल पड़ी हैं। लेकिन, यह तो उनकी सबसे बड़ी भूल है क्योंकि, पीड़ित लोग अब इनका साया तक देखना नहीं पसंद करते हैं।
पंजाब में कुछ धार्मिक प्रवृत्ति से जुड़े लोग अलगाववादी सोच को पैदा कर रहे हैं। उनके लिए बेहतर होगा कि वे लोग युवाओं तथा संगत को धार्मिक सोच तक ही सीमित रखें। क्योंकि, कई अलगावादी सोच ही माहौल को खराब कर देती हैं। ताज्जुब की बात है कि सरकार से लेकर पुलिस प्रशासन तक इनके खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करने से डरता हैं। लेकिन, उन्हें इस बात का पता होना चाहिए कि कानून से बड़ा कोई कुछ नहीं है। कानून तोड़ने वाले के खिलाफ कार्रवाई को संभव बनाना चाहिए। शिक्षित लोगों को इस प्रकार की अलगाववादी सोच रखने वालों से परहेज ही करना चाहिए।