वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़।
न्यायिक अधिकारी की मृत्यु के बाद उनके परिवार के साथ सम्मान के साथ व्यवहार नहीं होने पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने हाईकोर्ट को प्रशासनिक स्तर पर और पंजाब सरकार पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया है। एक पूर्व सिविल जज की विधवा को पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति बकाया जारी करने में देरी के लिए खंडपीठ ने यह आदेश जारी किया है।
पंजाब के पूर्व सिविल जज गुरनाम सिंह की पत्नी प्रीतम कौर ने याचिका दाखिल करते हुए फैमिली पेंशन व अन्य बकाया लाभ जारी करने की मांग की थी। गुरनाम सिंह ने 1973 में पंजाब सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा पास कर न्यायिक सेवा में आ गए। 1996 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया था, लेकिन एक विभागीय जांच के कारण इसे खारिज कर दिया गया। इस दौरान उन्हें निलंबित भी कर दिया गया।
1999 में सेवानिवृत्त होने के बाद, 2001 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि, 2018 में हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ चार्जशीट, जांच रिपोर्ट और उनके खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया। कोर्ट ने पाया कि मार्च 2018 से मार्च 2024 तक जज और उनकी पत्नी को पेंशन न मिलना न केवल गैरकानूनी था, बल्कि कानून की पूरी तरह से अवहेलना भी थी।
अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारी और उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार को सम्मान और गरिमा के साथ नहीं रखा गया। यह तय कानून है कि जैसे रिटायरमेंट होती है पेंशन व वित्तीय लाभ तुरंत जारी किया जाना चाहिए।
2018 रद्द कर दी थी बर्खास्तगी की सजा
गुरनाम सिंह की सेवानिवृत्ति लाभ उनके खिलाफ लंबित जांच के कारण रोकी गई थी। 2021 में उनके निधन के बाद उनकी पत्नी ने 2022 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें पेंशन और बकाया राशि जारी करने की मांग की गई। हाईकोर्ट प्रशासन ने पंजाब महालेखाकार को इसकी जानकारी दी और 2024 में पेंशन व ग्रेच्युटी को मंजूर की गई। कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि जब 2018 में ही बर्खास्तगी की सजा रद्द कर दी गई थी, तो फिर पेंशन क्यों रोकी गई।
कोर्ट ने पाया कि गुरनाम सिंह गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे और 2021 में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उन्हें कोई अंतरिम या नियमित पेंशन नहीं मिली। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पेंशन और परिवार पेंशन के बकाया पर ब्याज के साथ भुगतान किया जाए। साथ ही ग्रेच्युटी की राशि पर भी ब्याज दिया जाए। इसके अलावा, राज्य सरकार और हाईकोर्ट प्रशासन पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि सेवानिवृत्ति लाभ और पेंशन किसी भी व्यक्ति की संपत्ति के समान हैं और बिना किसी कानूनी अधिकार के उन्हें रोका नहीं जा सकता।