वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़।
पर्याप्त सबूत के अभाव से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अपराध चाहे घिनौना हों, लेकिन, उसके लिए पर्याप्त सबूत होना अनिवार्य बनता है। तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के उपरांत हत्या को अंजाम देने वाले याचिकाकर्ती की अपील पर बड़ा फैसला सुनाते हुए उसे बरी कर दिया। वर्ष 2012 में गुरप्रीत सिंह को जालंधर की अदालत ने दोषी करार देते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस मामले में कई साक्ष्य का अभाव पाया जाने पर अपराधी के समर्थन में फैसला चला गया।
मृतक नाबालिग का शव खेत से मिला था। पीड़ित परिवार ने गुरप्रीत के खिलाफ पुलिस को बयान दर्ज कराया था कि उसकी बेटी का रेप तथा हत्या गुरप्रीत सिंह ने की। वह उसे तंग करता था। इस मामले में गवाह के तौर पर नंबरदार को भी बनाया गाया। स्थानीय अदालत ने कथित अपराधी को इस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाते हुए टिप्पणी की थी कि अपराध एक तरह से जघन्य हैं। दोषी की सजा को कम नहीं किया जा सकता है।
इस फैसले को दोषी ने पंजाब एवं हरियाणा में चुनौती देते कहा कि उसे जानबूझकर झूठा फंसाया गया। मृतका के अपने जीजा साथ अवैध संबंध थे। जीजा एक पुलिस अधिकारी के यहां काम करता रहा। इसकी मदद से पुलिस में उसके खिलाफ झूठा पर्चा दिया गया। गवाह नंबरदार अदालत में उसके खिलाफ गवाही नहीं देने गया। किसी प्रकार से कोई मेडिकल रिपोर्ट तक नहीं लगाई गई।
उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करते कहा कि अपराध काफी जघन्य है। अपराधी के खिलाफ कोई पर्याप्त सबूत भी तो नहीं है। जो साबित कर दें कि अपराधी ने अपराध किया। पीड़िता की मृत्यु हो चुकी है। मेडिकल रिपोर्ट भी नहीं है, अपराधी को सबूतों के आधार दोषी ठहराया जा सकता है, जबकि केस में सब कुछ गायब है। इसलिए दोषी को बरी किया जाता है।