HIGH-COURT…यह मामला असंवैधानिक घोषित…..रद्द कर दिया गया

PUNJAB & HARYANA HIGH COURT SNE IMAGE

वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़। 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अन्य बातों के अलावा, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 3जी और 3 जे के तहत अनिवार्य मध्यस्थता प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करते हुए उन्हें रद्द कर दिया है। यह निर्णय भूमि अधिग्रहण के मामलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में मुआवजा विवादों से जुड़े मामलों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। आपको यह जानना चाहिए:

चुनौती के तहत कौन से प्रावधान थे?

राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 3जी और 3 जे राजमार्ग निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवजा प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। यदि भूमि मालिक या भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित मुआवज़े से असहमत होते हैं, तो मामले को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेज दिया जाता है। हालांकि, मध्यस्थ अक्सर सरकारी अधिकारी होता था, जिससे निष्पक्षता पर चिंताएँ उठती थीं। अधिनियम में अन्य भूमि अधिग्रहण कानूनों के तहत मिलने वाले अतिरिक्त मुआवजे और ब्याज को भी शामिल नहीं किया गया है।

अदालत ने क्या फैसला सुनाया?

न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति विकास सूरी की खंडपीठ ने इन प्रावधानों को असंवैधानिक पाया और कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता तंत्र स्वाभाविक रूप से अनुचित था। मध्यस्थता का उद्देश्य सहमति से होना था, फिर भी भूमि मालिकों को बिना किसी विकल्प के इसके लिए मजबूर किया गया।

भूमि मालिकों को उन लोगों की तुलना में कम मुआवजा मिला, जिनकी जमीन अन्य कानूनों, जैसे कि 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम और 2013 के भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम के तहत अधिग्रहित की गई थी। इसके अलावा, सॉलिटियम और अतिरिक्त ब्याज को छोड़कर एक मनमाना वर्गीकरण बनाया गया, जिससे भूमि मालिकों को उनके उचित मुआवजे से वंचित होना पड़ा।

इस फैसले का भूमि मालिकों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

न्यायालय के निर्णय का अर्थ है कि जिन भूस्वामियों की भूमि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत अधिग्रहित की गई थी, वे अब 1894 अधिनियम के अनुसार 30 प्रतिशत की दर से क्षतिपूर्ति तथा 9 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की दर से ब्याज के हकदार होंगे। इन धाराओं के तहत सभी लंबित मध्यस्थता मामले अप्रभावी हो गए हैं। उचित मुआवजा सिद्धांतों के आधार पर नए मुआवजे के पुरस्कार जारी किए जाएंगे।

इस निर्णय का कानूनी आधार क्या है?

न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें पुष्टि की गई थी कि 1956 अधिनियम के तहत भूमि स्वामियों को अन्य भूमि अधिग्रहण कानूनों के तहत मुआवजे के समान लाभ मिलना चाहिए।  राजमार्ग परियोजनाओं से प्रभावित भूमि स्वामियों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए एक समान मुआवजा मानक की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

आगे क्या होगा?

अब भारत संघ और देश भर के अन्य प्राधिकरण इन प्रावधानों को निरस्त करके प्रभावित भूमि स्वामियों को उचित मुआवजा प्रदान करना सुनिश्चित करेंगे। यह निर्णय अन्य राज्यों में इसी तरह की चुनौतियों के लिए एक मिसाल भी स्थापित करता है, जहां भूमि स्वामी 1956 अधिनियम के तहत दिए गए मुआवजे पर फिर से विचार कर सकते हैं।

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