EDITOR-IN-CHIEF VINAY KOCHHAR.चंडीगढ़/दिल्ली।
देश की मोदी सरकार पर एक बड़ा घोटाला करने का संगीन आरोप लगा है। मामला, एक निजी टेलीकॉम को फायदा पहुंचाने से जुड़ा है। बताया जा रहा है कि देश की कैग रिपोर्ट में 1757 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014 से लेकर अब तक सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल के पूरे देश में जगह-जगह स्थित टावर को निजी कंपनी जियो को बेच दिया गया। इतना ही नहीं, उक्त कंपनी ने अब तक सरकारी कंपनी को भुगतान तक नहीं किया। इसके अलावा लाइसेंस तथा जीएसटी की अतिरिक्त फीस लगभग 70 करोड़ का भी बकाया है।
किसी समय सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल पूरे देश में टेलीकॉम के नाम पर राज करने वाली के अब मौजूदा हालात काफी दयनीय हो चुकी है। जबकि, जियो इस धोखाधड़ी से 40 करोड़ यूजर्स के साथ प्रथम स्थान पर पहुंच चुकी है। वहीं, बीएसएनएल के सिर्फ 9 करोड़ यूजर्स के साथ सबसे निचले स्थान पर पहुंच चुकी है। घोटाले ने इस बात का पक्का सबूत दे दिया है कि अंबानी ग्रुप तथा केंद्र की भाजपा सरकार का आपस में कुछ गहरा ही संबंध है, जिस वजह से इन पर इतनी बड़ी मेहरबानी की जा रही है। माना जाता है कि कैग वो संस्था है जो सरकार के वित्तीय हिसाब के लेखा-जोखा देखती है। कैग की रिपोर्ट में ही इस बात का खुलासा हुआ है कि 1757 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ।
….कहां से हुई शुरुआत
सरकारी, विश्वसनीय सूत्रों से इस बात का पता चला है कि वर्ष 2014 में जब केंद्र में BJP नेतृत्व वाली मोदी सरकार दिल्ली की सत्ता में आई थी। तब अंबानी ग्रुप तथा सरकार के बीच सरकारी टेलीकॉम कंपनी (बीएसएनएल) के साथ अनुबंध हुआ था। अनुबंध में बीएसएनएल के सभी टावर जियो कंपनी को इस्तेमाल करने के लिए दे देगी। साथ ही साथ बदले में जियो कंपनी द्वारा 1757 करोड़ देना होगा। जीएसटी तथा लाइसेंस फीस के अलग से 70 करोड़ देना था। 10 साल बीत गए, लेकिन, जियो कंपनी ने एक पैसा तक नहीं दिया। यह सब कुछ कैग की रिपोर्ट में पता चला है। अब चर्चा, इस बात की चलने लगी है कि देश के पीएम अंबानी परिवार के एक घनिष्ट मित्र है, इसलिए, उन्होंने अपने मित्र को फायदा पहुंचाने के लिए यह सब कुछ किया।
निष्पक्ष जांच होनी चाहिए
कैग रिपोर्ट के उपरांत विपक्ष ने भी इस मुद्दे को काफी गंभीरता से उठाना आरंभ कर दिया। सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे पर केंद्रीय सरकार को घेरते हुए पूरे मामले की जांच निष्पक्ष करवाने के लिए मांग की। लेकिन, लगता नहीं है कि इस मामले पर केंद्र सरकार कुछ करके दिखाए। क्योंकि, अमेरिका में पिछले समय अडानी ग्रुप के खिलाफ टेंडर हासिल करने के बदले रिश्वत देने के आरोप में केस किया था। तब मामला, विपक्ष ने लोकसभा तथा राज्यसभा में काफी गंभीरता से उठाया था। तब भी इस मसले को लेकर बीजेपी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी। उल्टा सरकार के सूत्रों के हवाले से पता चला कि अडानी को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने पूरा जोर लगा दिया तथा केस को फिलहाल कमजोर कर दिया।
आम-जनता को हुआ नुकसान
बताया जाता है कि इस टेलीकॉम घोटाले की वजह से आम जनता को काफी नुकसान पहुंचा है। क्योंकि, पूर्व में जियो कंपनी ने सभी को निशुल्क डाटा देकर अपनी तरफ कर लिया। अब वर्तमान में आम जनता (ग्राहक) से कंपनी दोगुना दाम वसूल कर रही है। एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि किसी समय जियो कंपनी घाटे में चल रही थी, अब कुछ समय में कंपनी ने अपनी महंगी सेवा से कई गुणा फायदा हासिल कर लिया है। आईटी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि अब कंपनी यदि पैसे के बिना कुछ साल भी WORK करें तो भी फायदे में ही रहेगी। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि देश की आम जनता से सरेआम लूट की गई। इस पूरे प्रकरण में सरकार तथा निजी कंपनी भी शामिल थी।
…क्या अब इसकी होगी जांच या फिर डाल दिया जाएगा ठंडे बस्ते में
लोगों की समस्या के साथ जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला तो काफी गंभीर है, क्योंकि, देश की एक सरकारी संस्थान (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 1757 करोड़ का घोटाला हुआ। फायदा देश की एक निजी टेलीकॉम कंपनी को पहुंचाया गया। वो भी सरकारी संस्थान की सुविधाएं को आगे एक निजी कंपनी को बेचा गया। बेचने के उपरांत उनसे अनुबंध की गई राशि को अब तक नहीं लिया गया या फिर कह सकते है कि किसी प्रकार से उनसे मांग तक नहीं की गई। इसकी जांच अगर किसी निष्पक्ष तरीके से की जाए तो माना जा सकता है कि इसमें कईयों के नाम सामने आ सकते है। ऐसा होने से सरकारी खजाने से लेकर आम जनता को भी फायदा होगा। लेकिन, सत्ताधारी पार्टी यह कुछ करने वाली नहीं हैं, क्योंकि, उसे पता है कि उसकी पोल खुल जाएगी। ऐसे में जांच ठंडे बस्ते में डाल देने के अवसर ज्यादा दिखाई दे रहे है।
विपक्ष इतना मजबूत नहीं
देश की राजनीति से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया कि यह मामला बहुत बड़ा है। इससे राजनीति में बड़ा भूचाल तो आ गया है। लेकिन, बात यहां नहीं समाप्त हो जाती है। इस मुद्दे को कैसे आगे की तरफ बढ़ाना है, उसके लिए विपक्ष के पास कोई बड़ा नेता नहीं है। अगर राहुल गांधी या अखिलेश यादव इस मुद्दे को उठा भी लेते है तो उन्हें शांत करने के लिए केंद्र के पास कई दाव पेंच है। इसलिए यह मुद्दा ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा। हां, अगर विपक्ष एकजुटता के साथ चट्टान की तरह मुद्दे को उठाता है तो सरकार को निश्चित तौर पर हिलाया भी जा सकता है। ध्यान, इस बात की तरफ देना होगा कि विपक्ष को आम जनता तथा एनजीओ को भी साथ लेकर चलना होगा। फिर जाकर इस मुद्दे के प्रति सरकार के खिलाफ परेशानी खड़ी की जा सकती है।
सत्ताधारी पार्टी का कोई नहीं बयान आया सामने
इस घोटाले ने राजनीति रंगत तो ले ली है, लेकिन, विडंबना इस बात की है, अभी तक सत्ताधारी पार्टी या सरकार से जुड़े तंत्र का कोई बयान सामने नहीं आया। विशेषज्ञ, इस बात को भी मानते है कि यह मुद्दा सरकार के खिलाफ बड़ी समस्या भी खड़ी कर सकता है। क्योंकि, देश के पीएम से लेकर पार्टी से जुड़ा हर नेता ईमानदारी की बात करता है, जबकि, उनकी सरकार की एक बड़ी संस्थान की रिपोर्ट ने घोटाला होने की बात की पुष्टि कर दी। अब आगे यह देखना होगा कि सरकार अपनी साख को बचाने के लिए कुछ करती है या फिर खामोश रह कर मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देती है।