PUNJAB….न बाजार, न- शराब ठेके रहें बंद सभी प्रतिदिन की तरह खुले…..यहां पर किसानों का बंद रहा नाकाम

OPEN SHOP AT PUNJAB

कई जगह किसान-आम-जनता हो गए आमने-सामने, सिर्फ रेत-यातायात, बस परिवहन का ही थमा पहिया

वरिष्ठ पत्रकार.चंडीगढ़। 

सोमवार की सुबह करीब 7 बजे पंजाब की सड़कों पर सन्नाटा तो नजर आया, लेकिन बाजार, शराब ठेके प्रतिदिन की तरह खुले दिखाई दिए। यह देखकर किसानों की उम्मीदों पर पानी तो एक बार अवश्य फिर गया। लेकिन, उनकी अलग-अलग टीमें उन्हें बंद करने के लिए पहुंच गई। आम-जनता तथा किसानों के बीच बहस का मंजर भी देखने को मिला। लेकिन, पुलिस ने बीच बचाव करते हुए टकराव की स्थिति को पहले ही टाल दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत सारे शहरों में किसान आंदोलन के बंद को इतना समर्थन नहीं मिला। वहां पर सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान आम दिनों के तरह खुल गए। सड़कों पर आम जनता की चहल पहल भी शुरू हो गई। सिर्फ तो सिर्फ रेल तथा बस परिवहन का पहिया आज के दिन थमा रहा। जिला गुरदासपुर के व्यापारियों ने किसानों के बंद का पूरा समर्थन किया। उन्होंने अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रखने के अलावा किसानों के धरना स्थल पर पहुंच कर उनका साथ दिया। बंद का समय सुबह 7 बजे से लेकर शाम तक का निर्धारित किया गया। ऐसे में किसान यह मान कर चल रहे है कि उनका विरोध अब केंद्र सरकार को एक बार हिलाने के लिए मजबूर कर देंगे। लेकिन, यह इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि, केंद्र सरकार इनकी सभी शर्तें को मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। किसान नेता डल्लेवाल की स्वास्थ्य परिस्थितियां कुछ अच्छी नहीं है। उन्हें चिकित्सकों द्वारा जल्द से जल्द उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा जा रहा है। जबकि, नेता जी शर्तों को पूरा होने तक आमरण अनशन पर बैठे रहने का फैसला कर चुके है। 

OPEN WINE THEKA DURING THE FARMERS CALL THE BANDH

आंदोलन के लिए सोमवार को सुबह से ही किसान संगठन के नेता तथा पदाधिकारी सड़कों पर उतर आए। बंद करने के लिए उन्होंने किसी तरह से प्यार भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। कुछ तस्वीरें सामने आ रही है कि उसमें किसान आम जनता के साथ उलझते हुए साफ दिखाई दे रहे है। बठिंडा की तस्वीर ने आम जनता की चिंता को बढ़ा दिया है। तस्वीर में दिखाई दे रहा कि कैसे एक राहगीर किसानों के समक्ष उसे पैदल जाने के लिए कह रहा है, लेकिन, किसान नेता तथा पदाधिकारी उसके साथ उलझ पड़ते है। इतना ही नहीं उसके साथ अभद्र भाषा से लेकर गलियों तक का इस्तेमाल किया जाता है। फिर पुलिस बीच में आकर मामले को सुलझा लेती है। यह मामला सोशल मीडिया में खूब तेजी से प्रसारित हो रहा है। क्योंकि, लोगों का मानना है कि बहस करने वाली किसान छवि के नहीं हो सकते है, बल्कि, इनका रवैया देखकर ऐसा महसूस होता है कि ये लोग किसी शरारती तत्व के साथ जुड़े हों। उधर, इस मामले को लेकर अभी तक किसी किसान संगठन का बयान नहीं आया है।

पंजाब के सबसे बड़े शहर लुधियाना, जालंधर, अमृतसर में भी बंद का असर इतना नहीं दिखाई दिया। क्योंकि, यहां के व्यापारियों ने पहले ही तय कर लिया था कि वे लोग किसानों के बंद के समर्थन में नहीं है। ऊपर से व्यापार का हाल इतना बुरा हो चुका है कि घर के गुजारा भी काफी मुश्किल से चल रहा है। अब इन लोगों का काम हो चुका है कि हर दूसरे-तीसरे दिन पंजाब को बंद करवाने का। पंजाब में और भी कई मसले है, उन पर ये लोग क्यों नहीं बोलते है। सरकार की तरफ से उन्हें सुविधा मिल रही है। जबकि, व्यापारियों को हर चीज का सूद सहित टैक्स देना पड़ता है। इतना ही नहीं शराब के ठेके सुबह 5 बजे ही खुलने आरंभ हो गए। वहां पर शराब लेने वालों की काफी संख्या देखी गई। जब शराब के ठेकेदारों से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि बंद करने का ऊपर से कोई आदेश नहीं मिला, इसलिए खोलना ही बेहतर होगा। 

सूबा सरकार ले रही मज़ा

जानकार मान कर चल रहे है कि ये मुद्दा सरकार के लिए राजनीति करने का सबसे बेहतर विकल्प है, इसलिए , वे लोग किसानों के समर्थन में हर बात को हां-में -हां मिला कर चल रहे है। भीतरघात सूबा सरकार को पता है कि उनकी मांगों को पूरा करना कोई आसान काम नहीं है। कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन में सरकार ही आग में घी डालने का काम कर रही है। वह बिल्कुल नहीं चाहती है कि यह किसान आंदोलन का कोई समाधान निकलें। ये बातें उस तरफ इशारा कर रही है कि वाक्य सरकार इसमें पूरी तरह से मज़ा ले रही है। 

अदालत चिंतित

देश की सर्वोच्च न्यायालय हमेशा ही किसानों की भावनाओं को समझती आई है, इसलिए किसानों की अपील पर उन्होंने पूरे ध्यानपूर्वकता से साथ सुना तथा एक समिति का भी गठन किया। समिति में पंजाब, हरियाणा तथा केंद्र की तरफ से उन अधिकारियों तथा लोगों को शामिल किया गया जो किसानों की भावनाओं को समझते हों। उन्होंने जब किसानों की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुना तो उस रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि सूबा सरकार ही इस मसले को आग में घी का काम कर रही है। वह बिल्कुल ही नहीं चाहती है कि मसले का कोई हल निकल  कर बाहर आए। ऊपर से किसान नेता डल्लेवाल की स्वास्थ्य हालत को भी काफी हल्के से ले रही है। सरकार को कोर्ट ने फटकार लगाई तथा अगले आदेश तक समस्या का हल निकालने की भी चेतावनी दे डाली। 

सूबे की पुलिस रही मुस्तैद

आज के दिन पुलिस की प्रशंसा जितनी की जाए उतनी ही कम होगी। क्योंकि, कई जगह पुलिस ने अपनी मुस्तैदी के साथ बड़ा बवाल होने से पहले ही टाल दिया। पुलिस का एक पहलू यह भी दिखा कि उन्होंने हर जगह काफी नरमी के साथ अपना व्यवहार जताया। ये आम जनता के बीच पुलिस के प्रति अच्छा संदेश गया। पुलिस के लिए किसान संगठनों ने कई जगह लंगर तथा चाय की व्यवस्था की। संगत को लंगर छकने का अवसर हासिल हुआ। 

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