लेखक विनय कोछड़.चंडीगढ़।
आम-चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है। इसके लिए भाजपा ने प्रत्येक राज्य में अपनी कमर कस ली। इस बीच पंजाब में उस समय देश के गृह मंत्री अमित शाह ने उन सब बातों पर विराम लगा दिया, जिसमें चर्चा चल रही थी कि पंजाब में आम-चुनाव में भाजपा-अकाली दल का गठबंधन हो सकता है। इसके लिए खबरें आ रही थी कि शिअद के अध्यक्ष सुखबीर बादल , पीएम मोदी तथा अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात कर सकते है। लेकिन, शाह के इस बयान ने गठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि कोई भी भाजपा के परिवार में शामिल होना चाहता है, उसके लिए सभी दरवाजे खुले है। दिल से उनका स्वागत है। उनका इशारा साफ था कि भाजपा किसी से खुद गठबंधन नहीं करने वाली नहीं है। गौर हो कि किसान आंदोलन के उपरांत अकाली दल एनडीए से अलग हो गया। गठबंधन को तोड़ दिया था। विधानसभा चुनाव में अकाली दल सिर्फ 3 सीट पर सिमट गई।
पंजाब में भाजपा तथा अकाली दल अपने खुद के दम पर चुनाव लड़ने में इतना सक्षम नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि, दोनों पार्टियों का मत बैंक अलग-अलग हिस्सों में बंट चुका है। ग्रामीण क्षेत्र में अकाली दल की स्थिति मजबूत तो है, लेकिन, शहरी क्षेत्र में वोट हासिल करने में इतना कामयाब नहीं रहा। इस बात का प्रमाण विधानसभा चुनाव में साफ पता चल गया था। इसी प्रकार भाजपा का हाल भी ऐसे ही है। वह शहरी क्षेत्र में मजबूत तो है, लेकिन, ग्रामीण क्षेत्र में उनका जनाधार काफी कमजोर है। कई सिख चेहरे भाजपा का दामन थाम चुके है। उसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा कोई कुछ खास नहीं कर पाई। सूत्रों से पता चला है कि भाजपा इसके लिए अपने कई विंग को इस काम में लगा दिया है कि कैसे ग्रामीण क्षेत्र के मत को अपनी तरफ खींचा जा सकें। पार्टी की नीतियों से लेकर उनकी मांग तथा नब्ज को टटोलने का काम भी जारी है।
एक सूत्र से पता चला है कि इन सबके बावजूद भाजपा को कोई खास फायदा नहीं हुआ। दरअसल, किसान आंदोलन के उपरांत पंजाब में भाजपा अपनी पकड़ को मजबूत नहीं कर पाई। पंजाब का अधिकतम मत ग्रामीण क्षेत्र में रहता है। वे लोग मोदी को इतना पसंद भी नहीं करते है। उन्हें अपनी तरफ खींचना पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बन चुकी है। खास बात यह है कि भाजपा में शामिल सिख नेता भी उन्हें समझाने में कामयाब नहीं रहे, इसलिए उन्होंने जोर लगाना बंद कर दिया।
इसी प्रकार शिअद भी शहरी वोटरों को अपनी तरफ खींचने का बड़ा प्रयास कर रही है। पार्टी सुप्रीमो सुखबीर बादल तथा उनकी सारी लीडरशिप को पंजाब बचाओ यात्रा में इस बात का संदेश देना पड़ रहा है कि यह इकलौती क्षेत्रीय पार्टी है , जिसके माध्यम से पंजाब को खुशहाल बनाया जा सकता है। दिल्ली के दरबार से चलने वाली पार्टियों का हाल बुरा है। आप सरकार को देख कर आपने इस बात का अंदाजा लगा लिया। फिलहाल, शहरी वोटर शिअद के समर्थन में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। चुनाव निकट आने पर पता चल सकता है कि वोटर किस पार्टी का बटन दबा कर आया। क्योंकि, कई बार कयास ही फेल हो जाते है।
भाजपा के बड़े नेता अमित शाह का बयान सामने आने से अब शिअद को भी कदम फूंक-फूंक कर रखने के लिए मजबूर कर दिया। क्योंकि, कयास इस बात के लगाए जा रहे थे कि सुखबीर बादल एनडीए के बड़े नेता से मुलाकात कर उनसे गठबंधन के लिए अपनी राय रख सकते है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा-शिअद का गठबंधन बन पाता है या फिर दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ने का बिगुल बजाती है।