मोदी, शाह को नापसंद आया वरुण, मेनका गांधी का विरोध, नहीं दिया गया नड्डा की नई टीम में अहम रोल

कहते है कि सच्चाई एक ऐसी बहुमूल्य चीज़ है, हर किसी को पसंद नहीं आती है। जैसा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह को सांसद वरुण गांधी तथा मेनका गांधी का लखीमपुर खीरी में अपनी सरकार का विरोध नापसंद आया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत पाल नड्डा ने इन दोनों (मेनका, वरुण) को नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अहम रोल नहीं दिया गया। इससे एक बात तो साफतौर पर स्पष्ट हो जाती है कि भाजपा पार्टी का विरोध करने वाले को पार्टी में अहम स्थान मिलना अब संभव नहीं है।  

भाजपा वैश्विक तौर पर अपनी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी तथा अनुशासन पसंद , ईमानदारी-सच्चाई के लिए लड़ाई लड़ने वाली एक अंतरराष्ट्रीय तौर पर मजबूत पार्टी होने का दावा करती है, जबकि सच्चाई कुछ और बयां करती है। पार्टी चापलूसी, दबंग नेताओं की फौज के नाम से पहचान बनाने में लगी है। सीनियर तथा वरिष्ठ नेताओं को पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है। जानकारी इस बात की मिल रही है कि भाजपा में अब आरएसएस का दबदबा बिल्कुल ना के बराबर हो चुका है। 

जिन-जिन नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी जानी है, उससे पहले ही पार्टी में एक सक्रिय समूह नामों का चयन करता है। अब कोई सीनियर, वरिष्ठ पद का दावेदार नेता की कोई अहमियत नहीं रह चुकी है। सिर्फ तो सिर्फ चापलूसों की सुनवाई ज्यादा हो रही है। भीतर खाते भाजपा काफी हद तक कमजोर होने लगी है। अंदाजा, इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा शासित राज्यों में अन्य पार्टियों की स्थिति मजबूत हो रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण, पार्टी में मजबूत तथा निपुण नेता की संख्या काफी कम हो रही है। एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि उन्हें बिल्कुल पार्टी से अलग-थलग कर दिया गया। उन नेताओं का समूह खामोश रह कर अपना राजनीतिक जीवन शांत करना चाहता है।

मगर, भाजपा को इस बात का शायद बिल्कुल अहसास नहीं है कि अगर इन नेताओं को नजरअंदाज किया गया तो इनके लिए भविष्य में चुनौतियां बढ़ सकती है।कहते है कि अटल जी के शासन दौरान भाजपा , उस मुकाम तक पहुंच चुकी थी कि जिसका किसी ने भी शायद उस बात का अनुमान नहीं लगाया था। अटल जी की एक खास बात थी कि वह हर पार्टी के नेता को अपने साथ लेकर चलते थे। इतना ही नहीं, भाजपा संगठन को शिखर तक पहुंचने में अटल जी का अहम रोल रहा है। अब तो अटल जी के बताए मार्ग को एक समूह डटकर नजरअंदाज कर रहा है।

 अटल ने भाजपा में शुरुआत उस दौर में की, जब संसद में भाजपा के गिने-चुने ही सांसद थे। उनकी हिम्मत , सच्चाई, बुलंद आवाज ने पार्टी को देश-विदेश में नई पहचान दी। कई दौर आए, किंतु अटल जी ने उन दौर में हर चुनौती का सामना डट कर किया। आरएसएस की हर बात को अटल जी ने मानी । यहीं बड़ा कारण था, कि आरएसएस-भाजपा का तालमेल एकदम अच्छा था।

 अब जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भारत के गृह मंत्री अमित शाह का युग शुरू हुआ तो भाजपा में कई तब्दीलियां देखने को मिली। पहले अटल जी के खास तथा वरिष्ठ नेताओं के एक समूह को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया गया। फिर पार्टी में जिस-जिस नेता ने गलत चीज का विरोध किया तो उन्हें पार्टी में अहम रोल देने से किनारा कर दिया गया।  एसएनई न्यूज़ प्रधान संपादक-विनय कोछड़।

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