एसएनई नेटवर्क.अमृतसर।
इन दिनों सिविल अस्पताल काफी चर्चा में आ चुका है। एक कोरा सच इस बात का सामने आया है कि अंडर ट्रेनर स्टाफ यहां के सरकारी डॉक्टरों को छोड़ कर निजी डॉक्टर से इलाज के लिए मरीजों को विवश कर रहे हैं। शायद, उन्हें अस्पताल की डाक्टरों की काबिलियत पर शक है या फिर कह सकते है कि उनकी निजी डॉक्टरों के साथ सैटिंग है। इस बात का भी संकोच नहीं किया जा सकता है कि कोई बड़ा रैकेट सक्रिय है। खैर, इस विषय को हलके में भी नहीं लिया जा सकता है। इसके लिए एक उचित कमेटी बैठा कर जांच भी होनी चाहिए, ताकि सच्चाई का पता लग सकें। अन्यथा , सिविल अस्पताल पर बड़ा दाग भी लग सकता है। अगर ऐसा संभव होता है तो इतने वर्ष की मेहनत से देश में उच्च मुकाम हासिल करने वाले सिविल अस्पताल की पहचान झट से धूमिल भी हो सकती है। सोच के साथ कार्रवाई करना भी जरूरी होगा।
सिविल अस्पताल अपनी स्वास्थ्य सेवाएं बढ़िया देने की वजह से सरकारी अस्पताल की सूची में शीर्ष स्थान पर आता है। लेकिन, जिस प्रकार से अस्पताल का अंडर ट्रेनिंग स्टाफ मरीजों के रास्ते को भटका रहा हैं। उससे एक बात साफ स्पष्ट हो जाती है कि अस्पताल में कुछ अच्छा नहीं चल रहा हैं। लगता है कि अस्पताल प्रशासन से लेकर प्रमुख चिकित्सा अधिकारी मुंह पर उंगली रख खामोश होकर बैठ गए है या फिर सच पता होने के बावजूद उसे जानबूझकर छुपाया जा रहा हों। गौर करने वाली बात है कि अस्पताल के चौतरफा सीसीटीवी कैमरा की नजर दौड़ती है। हर गतिविधि चिकित्सा अधिकारी के पास लाइव दिखाई देती है। उसके बावजूद यह मामला आना एक प्रकार से हर किसी पर सवाल खड़े करता हैं।
नए स्टाफ को तमीज की शिक्षा की जरुरत
अस्पताल का नया स्टाफ मरीज तथा उनके तीमारदारों के साथ ऐसे पेश आता है कि जैसे वे लोग उन पर एहसान कर रहे हों। बात पूछने पर मरीज तथा तीमारदारों के ऊपर भटक उठते है। परेशान मरीज अपनी जुबान पर ताला लगाकर, उनकी बात को सहन कर लेते है। उन्हें मालूम है, अगर आगे कुछ बोला तो उनका ही नुकसान हो जाएगा। ऐसे में नए स्टाफ को तमीज सिखाने के लिए शिक्षा की काफी आवश्यकता है।
मास्क की शिक्षा देने वाले चिकित्सा-स्टाफ उड़ाते है सरेआम नियमों की धज्जियां
कोविड-19 की वजह से अब भी पंजाब के सभी सरकारी चिकित्सा केंद्र में चिकित्सक एवं मरीज तथा उनके तीमारदारों को मुंह पर मास्क लगाने के निर्देश जारी कर रखे है। लोगों ने तो इन नियमों की पालना सख्ती से करनी शुरु कर दी है, जबकि अधिकतम चिकितसक एवं स्टाफ कोई मास्क नहीं डालता है। हैरान करने वाली बात यह है कि मरीज-चिकित्सक की दूरी के बीच रस्सियां तो बांध रखी है, मगर नियमों की पूरी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। अब सवाल खड़ा होता है कि कैमरे में कैद इन तस्वीरों पर क्या चिकित्सा विभाग कोई बड़ी कार्रवाई करता है या फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल देता है।