ढोल-नगाड़ों समर्थकों सहित पूर्व पार्षद दंपत्ति (गिरिश तथा मोनिका शर्मा) वार्ड नंबर 25 में प्रचार करने के लिए निकल रहे है। लेकिन, इस बार खेल कुछ उल्टा ही चल रहा है। चर्चा का बाजार गर्म है कि वार्ड के मतदाता इस दंपत्ति से इतना खुश नहीं दिखाई दे रहा है। उनका मानना है अब यह ढोल का झोल इस बार बिल्कुल उनके आगे नहीं चलने वाला है। किसी एक वादे को तो उन्होंने पूरा किया नहीं, सिर्फ तो सिर्फ अपने आसपास मंडराने वाले चमच्चों को ही खुश किया है। इसलिए, प्रचार के दौरान दंपत्ति को मतदातों का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। जीत के लिए नेता जी ने पूर्व में कयास लगाने शुरु कर दिए है कि हवा का रुख उनकी तरफ है, लेकिन, राजनीति हवा उनकी हार की तरफ संकेत दे रही है। भीतरघात से इस बात के संकेत भी मिल रहे है कि उनकी हार के लिए बेहद खास भी विपक्ष के साथ हाथ मिला चुके है। उन्होंने ठान लिया है कि वे उनकी जीत को हार में बदल कर ही सांस लेंगे।
एक समय यह दंपत्ति पूर्व सरकार के मंत्री सिद्धू का खास रहा है। सिद्धू दंपत्ति के लिए उन्होंने खूब सेवा की। सेवा के बदले ही पिछली बार एक कद्दावर नेता की टिकट काट कर उन्हें टिकट दिया गया। जीत हासिल करने के उपरांत दंपत्ति जनता से एकदम दूर हो गया। कई उनके बेहद खास थे, उन्हें दरकिनार किया जाने लगा। वह रूठ गए। उनके जख्मों पर मरहम लगाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) ने हाथ पकड़ लिया। वे लोग अब इस दंपत्ति को हराने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है। पता चला है कि उनके पास उक्त दंपत्ति के राजनीति से जुड़े कई राज है जो उनकी इस पारी को हार में बदलने में काफी सहायक सिद्ध हो सकते है। इस बार दंपत्ति में भी कोई जोश नहीं दिखाई दे रहा है। सिर्फ तो सिर्फ जनता तथा अपने समर्थको को जीत वाला चिन्ह दिखाकर इस बात का अहसास कराया जा रहा है कि खेल की कमान तो उनके हाथ है, हार की तो सिर्फ अफवाह ही चल रही है। उनके मनोबल को कोई नहीं तोड़ सकता है। क्योंकि, उन पर श्री भोलेनाथ का आर्शीवाद है। अब तो भोलेनाथ ही तय करेंगे कि इस नेता दंपत्ति ने कितने अच्छे कार्य किए और कितना को फायदा पहुंचाया।
अटकलें, इस बात की भी लगाई जा रही है कि नेता जी एक बार कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी (आप) की टिकट से चुनाव लड़ना चाहते थे। उनकी आप के एक माझा में सबसे बड़े नेता से बातचीत हुई। दोनों के बीच मोटे पैसे की डील फाइनल भी हो गई। लेकिन, अहम अवसर पर आप के संगठन ने पुराने जुड़े नेता को ही टिकट देना बेहतर समझा। उधर, कांग्रेस की भी मजबूरी थी कि वह सिर्फ तो सिर्फ इस दंपत्ति पर दांव खेलने की, क्योंकि, कोई भी प्रत्याशी कांग्रेस की टिकट पर इस वार्ड में चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं था। अगर कुछ ने दिलचस्पी दिखाई भी तो उनके पास टिकट के लिए टक्कर देने की इतनी हिम्मत नहीं थी। फिलहाल, इस वार्ड में चुनाव दंगल ने काफी रोचक मोड़ ले लिया है, क्योंकि, दंपत्ति को टक्कर वाले आगे से सवा शेर आ चुके है। अब देखना होगा कि कैसे दंपत्ति मतदाताओं की नाराज़गी को दूर कर पाता है या फिर ऐसे ही मैदान में जुटने का फैसला लेता है। यह सब बातों के एक प्रकार से कयास है कि जीत हार का तो फैसला 21 दिसंबर वाली तारीख ही तय करेंगी कि कौन प्रत्याशी मतदाताओं का असल हीरो है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा की कलम से………………………..।