AMRITSAR………..सिविल अस्पताल में तो इलाज करवाना ही गुनाह हो चुका है, इमरजेंसी सेवाएं चला रहें अंडर ट्रेनिंग छात्र, डेथ रेट में हुआ इजाफा

वरिष्ठ पत्रकार.अमृतसर। 

एक जमाना था, जलियांवाला बाग शहीदी स्मारक सिविल अस्पताल, (अमृतसर) बेहतर इलाज के लिए जाना जाता रहा है। अब परिस्थितियों बिल्कुल प्रतिकूल चल रही है। इलाज के लिए कोई चिकित्सा अधिकारी नहीं है, सिर्फ तो सिर्फ अंडर ट्रेनिंग छात्रों की बदौलत ही इमरजेंसी सेवाएं चल रही है। पिछले एक हफ्ते में अस्पताल या फिर सरकार की नाकामी कह दें तो सिविल अस्पताल में मरीजों का डेथ रेट भी बढ़ा है। इसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि शीर्ष चिकित्सक अधिकारी अपनी ड्य़ुटी को सही तरीके से नहीं निभा रहे है। ऊपर से अस्पताल के शीर्ष चिकित्सा अधिकारी उन्हें बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। यह एक प्रकार से काफी चिंता का विषय है, तथा जांच होना भी आवश्यक बनता है। शिकायत तो यह भी सामने आ रही है कि चिकित्सक अपनी ड्युटी को भी नहीं सही ढंग से निभा रहे है। रोगी से लेकर उनके तीमारदार माथापच्ची कर बिना इलाज के वापस लौटने के लिए मजबूर हो रहे है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस सरकारी अस्पताल में तो इलाज करवाना ही गुनाह हो चुका है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान से आम जनता इन चिकित्सकों की लापरवाही के लिए जवाब मांग रही है। 

प्रदेश का जलियांवाला बाग शहीदी स्मारक सिविल अस्पताल, (अमृतसर) एक समय बेहतर इलाज तथा चिकित्सकों की बढ़िया कार्यप्रणाली की वजह से अहम स्थान रखता था। रोगी इलाज के लिए बेझिझक होकर आते थे, उन्हें चिकित्सकों की टीम द्वारा स्वस्थ कर घर भेजा जाता रहा है। अपनी बढ़िया कार्यप्रणाली की वजह से राष्ट्रीय अवार्ड हासिल करने में शीर्ष स्थान भी अस्पताल हासिल कर चुका है। लेकिन, कुछ समय से अस्पताल की आपातकालीन सेवाएं सबसे बेकार चल रही है। जांच पड़ताल में सामने आया कि अंडर ट्रेनिंग छात्र मरीजों की देखभाल करते है , जबकि, आम चिकित्सक अनुपस्थिति पाए जाते है। अगर, रोगी का तीमारदार शिकायत लेकर पहुंच जाता है तो उन्हें बेइज्जत कर वहां से भगा दिया जाता है।

कुछ चौंकाने वाले तथ्य यह सामने आए है कि अस्पताल में कुछ समय से इलाज की लापरवाही की वजह से डेथ रेट भी बढ़ा है। इस बारे पूछने पर शीर्ष अधिकारियों ने चुप्पी साध ली, उलटा  अपने लापरवाह डॉक्टरों की फौज को बचाने का पूरा-पूरा प्रयास किया जा रहा है। उनके मुताबिक, अस्पताल में सब कुछ ठीक चल रहा है, किसी को घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन, शायद उन्हें यह पता नहीं कि सच्चाई का पर्दा कभी न कभी तो ऊपर उठेंगा। तब जाकर एक-एक की मिलीभगत सामने आ जाएगी। 

हैरान तो करने वाली बात यह है कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए मेडिकल औजार भी नहीं इस्तेमाल किए जा रहे है। उलटा मरीजों के तीमारदारों को बाजार से महंगे औजार तथा दवा लिख, उन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हालांकि, राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर सख्त हिदायत दे रखी कि पर्ची पर बाजार की दवा लिखना पूर्ण रूप से प्रतिबंध है, लेकिन, सिविल अस्पताल के डॉक्टर को शायद राज्य सरकार के आदेश की कोई परवाह नहीं है, इसलिए, नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। 

ओपीडी 4 हजार , इलाज करने वाले नामात्र

प्रतिदिन सिविल अस्पताल करीब 4 हजार ओपीडी होती है। उन्हें देखने वाले चिकित्सक नामात्र है। वार्ड में अंडर ट्रेनिंग छात्रों से काम लिया जाता है। यहां तक तो सब ठीक है, लेकिन, आपातकालीन सेवाएं के लिए इन्हें आगे करना बिल्कुल गलत है। क्योंकि, वहां पर अधिकतर मरीज नाजुक स्थिति में आते है। तब शीर्ष चिकित्सा अधिकारी का होना काफी आवश्यक है, लेकिन, वे लोग वहां पर मौजूद ही नहीं होते है। यहीं मेन वजह है कि कुछ समय से सिविल अस्पताल में मरीजों की डेथ रेड में काफी इजाफा हुआ है। फिलहाल, इस लापरवाही का किसी के पास कोई जवाब नहीं है, बल्कि, आंकड़ो को छुपाया जा रहा है। जो कि एक प्रकार से एक जांच कमेटी द्वारा उचित जांच होना अति आवश्यक है। 

तथ्य तक नहीं पूरे भेजे जाते

अस्पताल के एक विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि अस्पताल का रिकॉर्ड गोलमाल करके मुख्यालय भेजा जाता है। इसमें कई ऐसे तथ्य है, जिन्हें पूर्ण तौर पर छुपाया जाता है।  इसके पीछे अस्पताल के कई अधिकारी आपस में मिले हुए है जो सच को दबा लेते है। बताया जा रहा है कि कई बार मामला ऊपर तक गर्माया भी, लेकिन, बाद में उसे राजनीतिक दबाव डाल कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। पिछले समय तो दवाओं को लेकर बड़े स्तर पर गोलमाल होने की चर्चा काफी तेजी से फैली थी, लेकिन, बाद में मामले को शांत करवा लिया गया। बताया जा रहा है कि इसमें कुछ अधिकारियों की ऊपर तक सांठगांठ है जिन्होंने मामले को समय पर ही दबा लिया। 

ऑपरेशन थियेटर में भी होता है बड़ा गोलमाल

सूत्रों से पता चला कि अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में बहुत गोलमाल होता है। कई सरकारी औजार को बाहर ही बेच दिया जाता है। मरीज के तीमारदारों को जानबूझ कर तंग कर उन्हें बाजार से खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे मामलों की कई बार अस्पताल के शीर्ष चिकित्सा अधिकारी को लिखित शिकायत पहुंची , लेकिन किसी ने कोई अमल तक नहीं किया। इससे एक बात साफ साबित हो जाती है कि इस गोलमाल में कई चिकित्सा अधिकारी शामिल है, जिन्हें समय-समय पर अपना हिस्सा रिश्वत के तौर पर पहुंच जाता है। आम जनता ने सीएम भगवंत मान से अपील की कि मामले की जांच होनी चाहिए। सच्चाई सामने आने पर किसी को नहीं बख्शा जाना चाहिए। क्योंकि, यह जनता के कर से अस्पताल चल रहा है। 

…..अब गरीब से छीन गया अस्पताल का इलाज

गरीब के पास तो सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए बड़ी मुश्किल से पैसे का जुगाड़ होता है। ऐसे में अगर उसे कोई बीमारी या फिर गंभीर रोग से गुजरना पड़ा तो उसकी इलाज की प्राथमिकता सिविल अस्पताल होती है। उसे उम्मीद होती है कि वे लोग अस्पताल में जाकर सस्ता इलाज करवा लेंगे, लेकिन, उनकी उम्मीदों पर तब पानी फिर जाता है , जब उनके इलाज के लिए अंडर ट्रेनिंग की टीम खड़ी होती है। उसके बाद बारी आती है शीर्ष डाक्टरों के टीम की जो कि मरीज के तीमारदारों को इतना तंग करते है कि पूछिए कुछ नहीं, तरह-तरह के टेस्ट, इसके अलावा बाजार की महंगी दवा लिख दी जाती है।  गरीब जेब से जब पैसे खत्म हो जाते है तो उन्हें वापस घर लौटने के लिए बोल दिया जाता है। मरीज बच गया तो राम-भरोसे नहीं तो सब कुछ खू खाते। 

अस्पताल में सब कुछ ठीक चल रहा, शिकायत मिलेगी तो होगी कार्रवाई

सिविल अस्पताल के शीर्ष चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि अस्पताल में उनके मुताबिक, सब कुछ ठीक चल रही है। किसी प्रकार से कोई समस्या नहीं है। अगर किसी को कोई शिकायत है तो लिखित तौर पर दें अवश्य कार्रवाई होगी। 

….फिलहाल, मुझे कुछ खास नहीं पता

सिविल सर्जन महिला अधिकारी ने बताया कि मैंने अभी -अभी चार्ज लिया है। मुझे कुछ नहीं पता है कि क्या चल रहा है। फिर भी मैं शीर्ष चिकित्सा अधिकारी को बोल देती हूं आपसे बात कर लेते है।   

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