पुरुष प्रधान देश भारत में वर्तमान समय में भी नारी की आंखों में खौफ है। शहर के बाजारों,गलियों में गंदी नज़रों से बचते हुए उसे कई दौर से गुज़रना पड़ता है। मासूम आंखों में यहीं बात का डर लगा रहता है कि कोई हैवानियत का दरिंदा उसके साथ छेड़छाड़ जा फिर उसके रास्ते में रुकावट न डाल दें। एक बात तो साफ है कि भारत के कानून ने देश की नारी के समर्थन में कई प्रकार के कानून पारित कर दिए है, जबकि सच्चाई यह है कि इन कानून का समाज में सही ढंग से सिस्टम चलाने वाला इस्तेमाल नहीं करता। परिणामस्वरुप , पीड़ित नारी को इंसाफ पाने के लिए काफी लंबे समय तक जद्दोजहद करनी पड़ती है।
एक बच्ची या फिर नारी का अंधेरी रात की गलियों में निकलना इतना मुश्किल हो चुका है कि अब उसे अपने घरों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है। समय के बदलाव के अनुसार लोगों की सोच में बदलाव होना बहुत जरूरी है। क्योंकि समाज का हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति बाजार से गुज़रने वाली नारी को अपनी गलत निगाहों से देखता है। इसलिए नारी के भीतर खौफ , उसे हमेशा ही तंग करता है कि वह अकेली घर से बाहर निकलती है तो मन ही मन के भीतर कई प्रकार के विचार आते है। इंतजार, इस बात का रहता है कि वह सही समय पर बिना रुकावट के सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाए।
रात में सुनसान सड़क पर अगर किसी नारी या बच्ची को किसी आवश्यक कार्य के लिए बाहर निकलना ही पड़ जाए तो सिर्फ जहन में उस दौरान एक सवाल मन में दौड़ता रहता है कि समाज में गंदी नजर रखने वाले के साथ उसके रास्ते में कोई बाधा न बन जाए। नारी का आत्मसम्मान ही जिंदगी की अहम पूंजी है। उसे बचाने के लिए नारी अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक देश में प्रतिदिन 77 के करीब महिलाओं तथा बच्चियों के साथ रेप जैसी घिनौनी हरकत होती है। इस पुरुष प्रधान देश में नारी को हर प्रकार के अधिकारों का दावा करने वाली सरकार तथा अदालतों पर भी सवाल खड़े होते है कि वर्तमान में नारी के आत्मसम्मान के खिलाफ क्यों इतने बड़े स्तर पर अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है।
कानून के जानकारों के मुताबिक , नारी के समर्थन में भारत में कई कानूनों का प्रावधान पारित किया गया, जबकि आवश्यकता पड़ने पर नारी के विरोधी उंची पहुंच वालों के आगे सिमट जाता है। इंसाफ की ख्वाहिश रखने वाली नारी शक्ति तक पहुंच ही नही बन पाती। अंत में समाज की नजरो से बचने के लिए उसे गलत कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है।
एसएनई न्यूज़ प्रधान संपादक-विनय कोछड़।