किसी समय पाकिस्तान-अफगानिस्तान में जाता था खेती में इस्तेमाल उपकरण…अब गिन रहे आखिरी सांसे
उद्यमियों ने समय-समय की सरकार की गलत नीतियों को ठहराया जिम्मेदार
नितिन धवन.विशाल आनंद.बटाला (गुरदासपुर)।
भारत-पाक सरहद से सटा बटाला एक समय टूल्स इंडस्ट्री के लिए दुनिया में विख्यात था। यहां बने खेती में इस्तेमाल होने वाले उपकरण देश के अन्य राज्यों के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक जाते थे। युवाओं के लिए रोजगार की अच्छी खासी व्यवस्था थी। मगर अब वह निराश हैं। क्योंकि, पाकिस्तान से रिश्ते बिगड़ने की वजह से बटाला की इंडस्ट्री के बुरे दिन आ गए। आज हालत यह है कि अधिकतर इंडस्ट्री या तो बंद पड़ी है या बंद होने के कगार पर हैं। बंद पड़ी औद्योगिक इमारतों में परिंदों ने बसेरे बना लिए हैं। जहां कभी मशीनों की खटखटाहट गूंजती थी, वहां अब पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है।
बटाला में बंद पड़े कारखानों के दरवाजों पर लगे ताले और खंडहर बन चुकी इमारत बदहाली की तस्वीर बयां करने के लिए काफी हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण क्षेत्र में बड़े प्लांट नहीं लगाए गए और लघु कुटीर उद्योग आखिरी सांसें गिन रहे हैं। यहां के उद्योगों में 90 के दशक में 40 हजार मजदूर काम करते थे, अब यह संख्या घटकर 15 हजार रह गई है। जो उद्योग शेष भी हैं वह कच्चे माल की कीमतें आसमान पर पहुंचने से बेहाल हैं। उद्योगपति इस स्थिति के लिए केंद्र और सूबे की सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
खेती बाड़ी टूल्स उद्योग हुए मंदी के शिकार
उद्योगपति इंद्र सेखड़ी का कहना है कि बटाला में खेती बाड़ी टूल्स उद्योग, मशीन टूल्स उद्योग और फाउंडरी उद्योग हैं। तीनों में लगभग एग्रीकल्चर टूल्स उद्योग बंदी के कगार पर है। जबकि बटाला का मशीन टूल्स उद्योग लगभग 70 फीसदी बंद हो गया है। फाउंडरी उद्योग करीब 40 प्रतिशत चल रहा है। उन्होंने बताया कि 1991 से बटाला के बने खेती बाड़ी टूल्स पाकिस्तान भेजे जाते थे। जिसकी वजह से बटाला एक बड़ा औद्योगिक शहर माना जाता था। इसके बाद भारत के पाकिस्तान से संबंध बिगड़े तो दोनों देश के बीच व्यापार बंद हो गया। व्यापार बंद होते ही बटाला से पाकिस्तान जाने वाले खेती बाड़ी टूल्स के दरवाजे भी बंद हो गए। उधर, सरकार की नई औद्योगिक नीतियों के कारण लघु और कुटीर उद्योग वैसे ही मंदी की मार झेल रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से यहां कोई बड़ा उद्योग लगाने को तैयार ही नहीं है। हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों की सरकारें कई तरह के लाभ दे रही हैं, उन्हें विशेष पैकेज दिए जा रहे हैं, विभिन्न प्रकार सब्सिडी दी जा रही है। जबकि बटाला का उद्योग इन सभी सहूलियतों से वंचित है। इसलिए यहां से उद्योग पलायन कर रहे हैं।
1991 में खत्म की गई फ्रेट इक्विलाइजेशन की पॉलिसी से इंडस्ट्री का हुआ नुकसान
उद्यमी वीएम गोयल ने बताया कि फ्रेट (किराया) इक्विलाइजेशन की पॉलिसी खत्म होने से बटाला के उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सारा कच्चा माल दार्जिलिंग, बिहार, उड़ीसा और बंगाल आदि राज्यों से आता है। यह पॉलिसी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बनाई थी, जिसके तहत तय हुआ था कि पूरे देश में फ्रेट इक्विलाइजेशन पॉलिसी को लागू किया जाए। फैसला किया गया था कि पूरे भारत में कच्चा माल भेजने का किराया सभी जगह पर एक सा होगा, चाहे वह क्षेत्र प्लांट के पास हो या फिर दूर। पूरे भारत में एक मूल्य पर कच्चा माल मिलेगा। इस पॉलिसी से उन उद्योगपतियों को बहुत लाभ मिला जो दूर-दराज के इलाकों से थे। इसके बाद 1991 में फ्रेट इक्विलाइजेशन की पॉलिसी को खत्म कर दिया गया। इससे बटाला को ओडिशा और बंगाल से आने वाले कच्चे माल के किराए की कीमत बहुत अधिक चुकानी पड़ती है। इस वजह से भी बटाला की इंडस्ट्री का भारी नुकसान हुआ है।
महंगा मिल रहा सामान
फ्रेट इक्विलाइजेशन पॉलिसी के खत्म होने से अब उन्हें दूसरे शहरों के मुकाबले काफी महंगा सामान मिल रहा हैं। क्योंकि, बटाला क्षेत्र इन राज्यों से काफी दूर है, जिन राज्यों से कच्चा माल आता है। बटाला की इंडस्ट्री उन यूनिटों का मुकाबला नहीं कर सकती जो कच्चा माल तैयार करने वाले प्लांट के पास हैं। पंजाब की इंडस्ट्री को इतने इन्सेंटिव नहीं दिए गए, जितने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और हरियाणा को दिए जा रहे हैं। पंजाब में जितनी भी सरकारें आईं, उन्होंने उद्योगों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान नहीं दिया। उद्योग सहूलियतों के अभाव के कारण दिन-ब दिन गिरावट की ओर जा रहा है।