नितिन धवन.चंडीगढ़।
पिछले दिनों सिंघु सीमा पर लखबीर सिंह की हत्या कुछ निहंग सिंहों द्वारा बेरहमी से कर दी गई थी। निहंग प्रमुख अमन सिंह के साथ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के साथ मुलाकात की पुरानी तस्वीरें सोशल मीडिया में खूब वायरल हुई। हर अखबार की सुर्खियों में इस बात की काफी चर्चा हुई, जबकि हैरान करने वाली बात तब सामने आई, एक हिंदी की राष्ट्रीय अखबार विश्व में प्रथम स्थान होने का दावा करने वाली की सुर्खियों से इस खबर को गायब कर दिया।
इतना ही नहीं वायरल तस्वीर में पंजाब के एक बर्खास्त पुलिस डीएसपी का निहंग प्रमुख के साथ होने की बात को एक चर्चा बना दी तथा राज्य सरकार से कोड लेकर इस मामले की जांच का हवाला डाल दिया गया। उस अखबार पर सवाल खड़े होते है कि एक राजनीतिक पार्टी की छवि को बचाने में आपका क्या स्वार्थ है, या फिर आपकी पत्रकारिता उस ताकतवर राजनीतिक पार्टी के समक्ष झुक गई। यह राष्ट्रीय अख़बार हमेशा ही अपने विज्ञापनों में दावा करती आई है कि सच्चाई को सामने लाना उनका दायित्व के साथ कर्तव्य भी है। किंतु, इस चर्चा के विषय ने इस अखबार की छवि तथा विश्वसनीयता पर कई प्रकार के सवाल खड़े कर दिए।
सलाम ,उस हिंदी की एक राष्ट्रीय अखबार को जिसने बेबाक, निडर होकर इस मुद्दे को सबसे पहले प्रकाशित किया तथा इतना ही नही खबर को हर पुख्ता प्रमाण के साथ हर उस शब्द को लिखा गया, जिसकी जानकारी हासिल करना प्रत्येक पाठक का मौलिक अधिकार है। इससे एक बात तो साफ साबित हो गई की कि देश में वर्तमान दौर में भी सच्ची पत्रकारिता करने वाले दायरे मौजूद है। जिनकी कलम को हर कोई सैल्यूट करना चाहेगा।
सवाल, इस बात का है कि लखबीर सिंह के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने वाली एक राष्ट्रीय अखबार के संपादक पर कौन सी ऐसी मजबूरी आ पड़ी कि अगले दिन जब एक राजनीतिक पार्टी के एक मंत्री की तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हुई तो उन्हें सच्चाई के मुद्दे को घुमाना पड़ा। यहां पर सच्चाई की तह तक पता लगाने की पूरी जरूरत है, क्योंकि अब यह मुद्दा दुनिया की आवाज बुलंद करने वाले एक मीडिया हाउस के साथ जुड़ने लगा।
लोगों तथा सच्चाई सामने लाने का दावा करने वाला यह मीडिया हाऊस अब सच्चाई को छुपाने का प्रयास कर रहा है। इसमें मीडिया हाउस में काम करने वाले पत्रकारों तथा राज्य ब्यूरो की कोई गलती नहीं मानी जा सकती। क्योंकि, उन्हें ऊपर से जैसा निर्देश मिलेगा, उन्हें उसी मापदंड के हिसाब से काम करना होगा।
इन जैसे चंद मीडिया हाउस की वजह से देश में पत्रकारिता का संपूर्ण तौर पर विनाश हो रहा है। मजे की बात तो यह है कि इन्हें तो सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि पैसे कमाने वाला बाबू चाहिए। एक समय था पत्रकार अखबार की छान होता था। उसकी एक खबर हर जगह तहलका मचा देती थी, जबकि अब परिस्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल है। अब जो बाबू , उन्हें पैसा कमाकर देता है, उसकी ही चर्चा होती है। शेष, सब उनके समक्ष जीरो है।