दुनिया का चौथा स्तंभ कहलाने वाली प्रेस की स्वतंत्रता की परिभाषा भारत में बिल्कुल अधूरी हैं। दबे-कुचलों की आवाज उठाने वाली प्रेस को समय-समय पर दबाया जा रहा हैं। लिखने एवं बोलने वाली सच्ची पत्रकारिता की कलम को धमकाया तथा उसका खून किया जा रहा हैं। इसके पीछे जिम्मेदार शासन से लेकर प्रशासन हैं। स्वतंत्रता से पूर्व एवं बाद तथा वर्तमान में पत्रकारिता को भारत देश में कुछ लोगों ने गुलाम बनाकर रख दिया। इस गुलामी की जंजीरों से बाहर तभी ही निकला जा सकता है, जब सब पत्रकार एकजुटता की परिचयता दे सकें।
कुछ समय से पत्रकारों तथा उनके स्वजनों पर हमलों ने इस बात की चिंता पैदा कर दी है कि अब सच्ची पत्रकारिता का जीवन सुरक्षित नहीं रहा। हालात, यह पैदा हो चुके है कि अब निडर, निष्पक्ष पत्रकारों का घरों से निकलना अपनी जान को जोखिम में डालने से कम नहीं हैं। कितनी अजीब बात है कि वीआईपी, नेता तथा बड़े अधिकारियों को बेवजह इतनी बड़ी सुरक्षा काफिला मुहैया करा दिया जाता है, जबकि, इसके विपरीत बेबाक, जांबाज पत्रकारों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैं। इन बातों के पीछे भी एक बड़ी बात चंद नेताओं के दुमशले कहलाने वाले पत्रकार साथी है, वह लोग नेताओं के पाव की जूती बन चुके हैं। अपने आरामदायक जीवन व्यतीत करने वाले उक्त पत्रकारों की मंडली का सारा खर्च नेता लोग भर रहे हैं। नेता का गलत काम भी इन मंडली पत्रकारों को सही लगता हैं। अगर, इन मंडली पत्रकारों की सोच में जरा सा बदलाव आ जाए तो शायद पत्रकारिता को कोई दुनिया की ताकत नहीं गुलाम बना सकती।
प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया भी इस बात की चिंता जता चुका है कि पत्रकारों की एकजुटता ही उन्हें पीछे धकेल रही हैं। यहां पर एक बात ध्यान योग्य है कि एक पत्रकार की समस्या को अन्य पत्रकार यह समझकर नजरअंदाज कर देता है कि उन्हें इस बात से क्या लेना देना हैं। इस प्रकार की सोच रखने वाले पत्रकारों की .यह सबसे बड़ी भूल हो सकती है. क्योंकि , समस्या पत्रकार के पास कोई संदेश नहीं लेकर आती, यह तो कभी भी उस पर टूट सकती हैं। इन सब पर मंथन करना समय की जरूरत हैं।
समय-समय पर शीर्ष पत्रकारों की पूर्ण स्वतंत्रता को लेकर लंबी चर्चा चली, लेकिन, विडंबना इस बात की रही कि इस पर कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जा सका। अगर, ऐसा संभव हो जाए तो शायद पत्रकार को लिखने तथा कलम चलाने की स्वतंत्रता मिल सकती हैं। लेकिन, शर्म की बात यह है कि पत्रकारों में ही कुछ ऐसा वर्ग है जो नहीं चाहता कि पत्रकारिता को स्वतंत्रता हासिल हो सके। इसके लिए पूर्व में ही खलल डालने की योजना बन जाती हैं।
इन दिनों चर्चा, इस बात की भी है कि कुछ नेताओं एवं निजी क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों ने पत्रकारिता में अपना रौब जमा लिया हैं। वह ही नहीं चाहते कि पत्रकारिता की कलम को स्वतंत्र किया जाए। पत्रकारों को अलग-थलग करने में वह अपनी राजनीति दबाव की साख बिछा रहे हैं। उनका एक ही मकसद है कि वह लोग पत्रकार को अपने पांव के नीचे रख सकें। स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजों ने पत्रकारों को दबाने के लिए काफी कुछ किया। अब स्वतंत्रता के उपरांत देश की राजनीति एवं उच्च घरानों से जुड़े लोग पत्रकारिता को समाप्त करने का पूरा-पूरा प्रयास कर रहे हैं।
पत्रकारिता का स्तर ऊंचा उठाने के लिए सबसे बड़ी पहल देश के शीर्ष पत्रकारों को करनी होगी। इसके लिए एक मापदंड तथा रूपरेखा तैयार करनी होगी। इसमें देश के हर हिस्से से पत्रकारों को एकजुट करने के लिए अहम कदम उठाना होगा। उन्हें पत्रकारिता की सच्ची कलम के बारे समझाना होगा। पत्रकारिता के तौर तरीके एवं निडरता से अपनी कलम चलाने के लिए जागरूक करना होगा। अगर ऐसा संभव हो जाता है तो पत्रकारिता में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता हैं।
शीर्ष पत्रकार अमरेंद्र सिंह की कलम से