वरिष्ठ पत्रकार.मोगा।
जिला मोगा के एक नजदीकी गांव का किसान काफी सुर्खियों में है। दरअसल, उनकी दाल तथा साग काफी चर्चा में चल रही है। पता चला है कि वह कुदरती बर्तन में इसे तैयार करते है तथा बाद में फरीदकोट तथा लुधियाना जैसे क्षेत्र में बेचते है। लोगों के खाने की भीड़ इतनी लग जाती है कि कईयों की तो बारी दूसरे दिन जाकर आती है। खाने का स्वाद चखने वाले किसान चमकौर सिंह से फोन पर अपना नंबर जल्दी लगवाने के लिए बुकिंग करवा देते है। किसान चमकौर के मुताबिक, इतने लोगों को मैनेज करना खासा आसान नहीं है, लेकिन वाहेगुरु की कृपा से सभी को उनके व्यंजन का स्वाद चखने का मौका अवश्य मिलता है। अगर कोई एक बार इसका स्वाद चखता तो है वह हमेशा के लिए उसका दीवाना हो जाता है। किसान चमकौर कुदरती खेती की वजह से पूरे पंजाब में जाने जाते है। उनके पास लगभग 5 एकड़ खुद की जमीन है। जमीन को अपनी मां से अधिक प्यार देते है। इस काम में उनका परिवार पूरा सहयोग करता है। वह अन्य किसानों को भी कुदरती खेती करने के लिए प्रेरित कर चुके है। एक अनुमान के मुताबिक, उनकी कला से प्रभावित होकर कई किसानों ने कुदरती खेती करनी आरंभ कर दी।
कुछ इस प्रकार से जिंदा रखा है बिरसे को
घोलिया कलां का किसान चमकौर सिंह कुदरती खेती कर सब्जी और फल पैदा कर रहे हैं। इसके साथ ही वह पंजाबी बिरसे को जिंदा रखने के लिए घर की रसोई में मिट्टी के चूल्हे और घड़े में सब्जी-सांग बनाकर मोगा, फरीदकोट और लुधियाना में अड्डा लगाकर रोटी खिलाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। वह सब्जी और साग में प्रयोग होने वाला मसाला पुदीना, चिबड़, हरी मिर्च की चटनी को पत्थर पर रगड़कर तैयार करते हैं। खाने के साथ चाटी की लस्सी ग्राहकों को देता है। साल 2019 में पंजाब के राज्यपाल द्वारा उन्हें पंडित दीनदयाल अंत्योदय कृषि अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
खेती में भी हो जाता है अच्छा मुनाफा
किसान चमकौर सिंह के मुताबिक, उनके पास पौने पांच किल्ले जमीन है। करीब 12 साल से सीजनल फसल के अलावा कमाद, बेल वाली सब्जियों के अलावा अरबी, हल्दी, बैंगन, लहसुन, देसी प्याज, चुकंदर, मूली, शलजम, पालक, भिंडी पैदा करते आ रहे है। उन्हें बाजार में बेचकर मोटी कमाई करते आ रहे हैं। उनके मुताबिक, काफी चिंता का विषय है कि अब पंजाब में करीब 64 प्रतिशत किसान बहुत कम जमीन के मालिक शेष रह चुके हैं। मजबूरी में वह जमीन ठेके पर लेते हैं।
परिवार देता उनके कार्य में सहयोग
बेटे वरिंदर पाल सिंह ने महाराष्ट्र के पुणे से इंजीनियरिंग की डिग्री ली। इसके बाद वडोदरा एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई थी। बहू मनप्रीत कौर को जीएम का कोर्स करने के बाद जालंधर में नौकरी मिल गई थी। दोनों ने नौकरी छोड़कर उनके साथ खेती में हाथ बंटाते हैं। रसोई में इस्तेमाल होने वाले सभी मसाले खेतों में पैदा कर इस्तेमाल में लाए जाते हैं। घर में मिट्टी के बर्तनों में मिट्टी के चूल्हे पर सभी प्रकार की दाल और सब्जियां तैयार करके 8 साल से वह 2 दिन मोगा, 2 दिन फरीदकोट और रविवार को लुधियाना में रसोई लगाकर ग्राहकों को सामान बेचते हैं।